कोर्स 7 गतिविधि 2 : अपने विचार साझा करें
कोर्स 07 : प्राथमिक कक्षाओं में बहुभाषी शिक्षण
गतिविधि
2 : मेरी कक्षा की भाषा संबंधी परिस्थिति - अपनी समझ साझा करें
आपकी कक्षा के
बच्चे जो भाषा/भाषाएँ दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते-समझते हैं, वह
पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से किस प्रकार अलग है? लगभग
100 शब्दों में अपना उत्तर लिखें और उदाहरण के साथ समझाएँ।
जहां तक मेरी कक्षा की बात है तो मेरे स्कूल में बैगा जनजाति के बच्चे पढ़ने आते हैं जो अपने घरों में अपनी अलग भाषा बोली में बात करते हैं और विद्यालय में हिंदी में पढ़ाई और हम शिक्षकों द्वारा छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई कराई जाती है जो उनके लिए बाधक बनती है परंतु धीरे-धीरे उनमें सुधार आते जा रहा है और वह अब छत्तीसगढ़ी बोली को भी अपने अच्छे से समझ बना लेते हैं साथ ही साथ अब हिंदी में भी उनकी पकड़ बनती जा रही है
ReplyDeleteMeri shala me bachche chhattisgarhi me hi baaten karte hai vo hindi samaghte to hai par bolne me ghighakte hain unke sath mitrata purn mahol banane ke liye mai bhi chhattiagarhi me hi unse bate karti hun,unhe hindi me baat karne hetu prerit karti hun.
Deleteमैं तेलंगाना राज्य से हूं।यहां के बच्चों की मातृभाषा तेलुगु है। पाठशाला में पढ़ाने का माध्यम अंग्रेजी है। जब हिंदी सिखाया जाता है तो बच्चों को उनकी मातृ भाषा या तो अंग्रजी की सहायता से समझाया जाता है।जिससे बच्चें आसानी से और रुचि पूर्वक सीखते है।
Deleteमेरी कक्षा के बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा बोलते और समझते हैं परंतु साला की भाषा हिंदी है आता उन्हें पढ़ाते समय शब्दों के अर्थ छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्दों द्वारा भी समझा नहीं पड़ती है जैसे हिंदी में टमाटर को छत्तीसगढ़ी में पताल कहते हैं तभी बच्चे शब्दों के अर्थ को समझ पाते हैं
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के बच्चे सहज रूप से जिस भाषा का उपयोग करते है वह पाठयपुस्तक में लिखी गई भाषा से कुछ अलग है।क्योंकि बच्चे स्थानीय भाषा/मातृभाषा छत्तीसगढ़ी बोलते है जबकि पुस्तक में कुछ पाठो को छोड़ दे तो भाषा
Deleteहिंदी माध्यम में लिखी है।अत:बच्चो को पढ़ाते समय समझाने के लिए छत्तीसगढ़ी का प्रयोग करते है।
मेरे विद्यालय के बच्चे सहज रूप से जिस बोली भाषा में बात करते हैं वह बोली है बघेली एवं सेसरगुजिहा मिश्रित। हमारी पाठ पुस्तकें एवं साहित्य हिंदी भाषा में लिखी हुई होती हैं बच्चों को हिंदी समझने में कठिनाई होती है पहले हिंदी के वाक्यों को उनकी परिवेशीय बोली में बताना पड़ता है, तब वह समझ पाते हैं । फिर धीरे-धीरे हिंदी भाषा में लिखित सामग्री को समझ पाते हैं
Deleteमेरी साला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है
ReplyDeleteनाम -श्री खुशहाली सोनी
स्कूल प्राथमिक शाला ढाबाडीह
संकुल खजूरी
मेरी साला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता
ReplyDeleteमेरी शाला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से छत्तीसगढ़ी बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है।
ReplyDeleteतभी बच्चे पाठ को अच्छी तरह से समझ पाते हैं एवं प्रश्नों का उत्तर छत्तीसगढ़ी में ही देते हैं।
Hamare Vidyalay mein bacche Chhattisgarhi bolate hain aur ham Chhattisgarhi Mein unhen Samjhane ka Prayas Karte Hain
Deleteबच्चों की दैनिक जीवन में मातृभाषा का सहज रूप से बोलते और समझते है ।वह पाठ्यपुस्तक की भाषा से अलग है क्योंकि स्थानिय भाषा में पाटठ्यपुस्तक मुद्रित नहीं है।राज्यं भाषा में मुद्रित है।अलग-अलग क्षेत्रों की भाषा बोली अलग-अलग है ।
ReplyDeleteमेरा स्थानांतरण एक छोटी सी बसाहट में हुई ।वहाँ की बोली दंतेवाडा क्षेत्र की गोंडी है,वह बोली मेरे समझ से परे थी ।मैं एक बच्चे से कहा-बेटा आपका नाम क्या है।बच्चे ने कहा आपका नाम क्या है ।क्योंकि बच्चे को हिंदी भाषा कि समझ नहीं थी ।
पुस्तक की भाषा और दैनिक जीवन की भाषा में काफी अंतर है।
हमारे स्कूल के सभी बच्चों की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी है और बच्चे भी इसी भाषा/बोली का प्रयोग करते हैं जोकि पाठ्यपुस्तक की भाषा से भिन्न है हालाकि हिन्दी भाषी प्रदेश होने तथा शाला में पढाई की भाषा होने के कारण इनके व्याकरण मातृभाषा से भिन्न हैl
Deleteमेरी साला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है
ReplyDeleteमै जिस शाला में पढ़ाती हूं बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं पढ़ाते समय उनकी मातृभाषा का प्रयोग करने पर बच्चे आसानी से समझते हैं।
ReplyDeleteमेरी साला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है
Deleteमेरे विद्यालय के बच्चे सहज रूप से जिस भाषा का उपयोग करते है वह पाठयपुस्तक में लिखी गई भाषा से कुछ अलग है।क्योंकि बच्चे स्थानीय भाषा/मातृभाषा छत्तीसगढ़ी बोलते है जबकि पुस्तक में कुछ पाठो को छोड़ दे तो भाषा
ReplyDeleteहिंदी माध्यम में लिखी है।अत:बच्चो को पढ़ाते समय समझाने के लिए छत्तीसगढ़ी का प्रयोग करते है।
मैं ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षक हूँ हमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा ( बोली ) छत्तीसगढी है जबकि स्कूल की भाषा हिन्दी है इस लिए बच्चों को अध्यापन के समय हिन्दी में पाठ का अध्यापन कराकर स्थानीय बोली जोकि बच्चो की घर में बोली जाने वाली है उसमें अर्थ समझाया जाता है ताकि बच्चे आसानी से समझ सकें । इस तरह बच्चे रुचि के साथ सीखते हैं।
ReplyDeleteजिस विघालय मे हम पढ़ाते है वहां के बच्चे स्थानीय बोली का प्रयोग करते हैं।किताब मे दिये गये पाठ को जब उनकी बोली मे समझाया जाता है तभी वो अच्छे से समझ पाते है।
ReplyDeletevery nice
Deleteबच्चों की दैनिक जीवन में मातृभाषा का सहज रूप से बोलते और समझते है ।वह पाठ्यपुस्तक की भाषा से अलग है क्योंकि स्थानिय भाषा में पाटठ्यपुस्तक मुद्रित नहीं है।राज्यं भाषा में मुद्रित है।अलग-अलग क्षेत्रों की भाषा बोली अलग-अलग है ।
ReplyDeleteहमारी शाला के बच्चे जो भाषा (छत्तीसगढ़ी) दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है।
ReplyDeleteवैसे बच्चों के पाठ को अब छत्तीसगढ़ी में भी दिया गया है, पहले हिंदी में, फिर उसी पाठ को हूबहू छत्तीसगढ़ी में | किसी समान रचना को एक साथ दोनों भाषाओं में देखकर अर्थ ग्रहण में आसानी हो गई है |
मेरी शाला के बच्चे अपनी स्थानीय भाषा
ReplyDeleteभतरी भाषा बोलते है जबकि हमारे स्कूल में पुस्तक हिन्दी भाषा में हैं पर शाला में आने के बाद हिंदी भाषा समझ कर बोलते भी है , और समझकर पढ़ते भी है | शुरू में परेशानी आती है पर सीख जाते हैं |
बच्चों की दैनिक जीवन में मातृभाषा का सहज रूप से बोलते और समझते है ।वह पाठ्यपुस्तक की भाषा से अलग है क्योंकि स्थानिय भाषा में पाटठ्यपुस्तक मुद्रित नहीं है।राज्यं भाषा में मुद्रित है।अलग-अलग क्षेत्रों की भाषा बोली अलग-अलग है ।
ReplyDeleteमेरा स्थानांतरण एक छोटी सी बसाहट में हुई ।वहाँ की बोली दंतेवाडा क्षेत्र की गोंडी है,वह बोली मेरे समझ से परे थी ।मैं एक बच्चे से कहा-बेटा आपका नाम क्या है।बच्चे ने कहा आपका नाम क्या है ।क्योंकि बच्चे को हिंदी भाषा कि समझ नहीं थी ।
पुस्तक की भाषा और दैनिक जीवन की भाषा में काफी अंतर
हम जहाँ पढ़ाते हैं वहाँ स्थानीय बोली सादरी और कुड़ुख प्रचलित है हमे उन्ही की बोली मे समझाना पड़ता है।पर शिक्षित लोग हिन्दी का प्रयोग भी करते है जिससे कुछ बच्चे जल्दी समझ जाते है।
ReplyDeleteहम जहाँ पढ़ाते हैं वहाँ स्थानीय बोली सादरी प्रचलित है हमे उन्ही की बोली मे समझाना पड़ता है।पर शिक्षित लोग हिन्दी का प्रयोग भी करते है जिससे कुछ बच्चे जल्दी समझ जाते है।
ReplyDeleteबच्चे अपनी मातृभाषा से अलग शाला की भाषा को देखते है और टूटी फूटी भाषा में अपनी मातृभाषा को लेकर संवाद को पूरा करने में लगे हुए होते है और संवाद की बेझिझकी उन्हें टीचर से सहज जुड़ने में मदद तो करती हैं मगर जोड़ नहीं पाती क्योंकि कही न कही भाषा का अलगाव या मिश्रित संवाद को सहज बनाने में रुकावट डालता है।
ReplyDeleteउदाहरण - मेरी शाला में एक बच्चा हैं जो छत्तीसghari बोली का संवादी है जिससे उसे हिंदी में कहने में कठिनाई होती है और वह आज भी कुछ कहता है तो इस तरह से - १)मैडम तू क्या खाया।
२)मैडम तू मेरे को अच्छा लगता है तू अच्छी पढ़ता है। इत्यादि
Main jis shala me padata hu vahan ke bache sthaniy boly ko hi samjhaute hai. Bachcho ko padate samay unhe sthaniy bhasha me sajhane par hi samjhate hai
ReplyDeleteमेरे शाला के बच्चों की भाषा छत्तीसगढ़ी है। पाठ्यपुस्तक हिन्दी में है। इस कारण उनको समझने में कठिनाई होती है। कई चीजों के नाम पुस्तक में कुछ और होते है और उसको बच्चे अलग नाम से जानते हैं। इस तरह हम बच्चों को जो सिखाना चाहते हैं वो बच्चों तक पहुंच नही पाती है।
ReplyDeleteशाला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से छत्तीसगढ़ी बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है।
ReplyDeleteतभी बच्चे पाठ को अच्छी तरह से समझ पाते हैं एवं प्रश्नों का उत्तर छत्तीसगढ़ी में ही देते हैं।
मेरे स्कूल (कक्षा) के बच्चे दैनिक जीवन में छत्तीसगढ़ी भाषा सहज रूप से बोलते व समझते है । पाठ्यपुस्तक की भाषाएँ मानक हिन्दी भाषा मे है।अधिकांश बच्चे हिन्दी भाषा समझ लेते हैं,क्योंकि छत्तीसगढी बोली हिंदी भाषा की ही एक बोली है।कुछ बच्चों मानक भाषा समझने मे कठिनाई जरूर होता है।मेरे स्कूल के सभी शिक्षक स्थानीय हैअतः बच्चों को कठिनाई होने पर छत्तीसगढ़ी बोली मे समझाते हैं।
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ की पाठ्यपुस्तक जो स्कूल स्तर के होते है उसमे हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषा के पाठ संचालित किये जा रहे है। जिससे बच्चे दोनों भाषा के बीच समझ बना सके। बच्चे आपसी ताल मेल से भी अपने भाषा ज्ञान को एक दूसरे से सीखते है।
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Deleteमेरी कक्षा के बच्चे जो भाषा/भाषाएँ दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते-समझते हैं, वह भाषा छत्तीसगढ़ी है, अब हिंदी की पाठ्यपुस्तकों मे पाठ्य सामग्री को हिन्दी के साथ छत्तीसगढ़ी भाषा मे भी प्रकाशित किया गया है। हिन्दी पढ़ाने से पहले मै छत्तीसगढ़ी मे लिखी हुई पाठ्य सामग्रियों का अध्यापन कराती हूं दोनो भाषाएं काफी हद तक अलग हैं मुझे बच्चों से अध्यापन या वार्तालाप के दौरान बताना होता है कि किसी भी चीज को हिन्दी मे ऐसा कहते हैं उदाहरण के लिए कक्षा - 2 के हिन्दी पाठ्यपुस्तक का पाठ -1, तितली और कली मे डुंहरू को ही हिन्दी मे कली कहते हैं। उसी प्रकार अंग्रेजी भाषा के अध्यापन के दौरान जैसे बिल्ली को अंग्रेजी मे Cat और छत्तीसगढ़ी मे बिलई कहते हैं अध्यापन के दौरान तीनो भाषाओं का उपयोग करना होता है। गणित मे बच्चे अक्सर 2 को दू कहते हैं यहां भी अंतर आ जाता है मै हिन्दी के साथ बच्चों की भाषा का भी उपयोग करती हूं।
ReplyDeleteहमारा विद्यालय जिस क्षेत्र में हैं वहां के लोगों के घरों में और गांवों में मुख्यतः छत्तीसगढ़ी भाषा बोली जाती है। हमारे पाठ्यपुस्तक और शिक्षण का माध्यम हिंदी भाषा है । द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेज़ी का भी अध्यापन कराया जाता है । चूंकि सभी शिक्षक छत्तीसगढ़ी भाषी है तो शिक्षण में बच्चो से संवाद छत्तीसगढ़ी में ही करते हैं तो बच्चों को दिक्कत नहीं होती । दिशा निर्देश देते समय हम लोग हिन्दी का भी उपयोग करते है जिसे बच्चे आसानी से समझ जाते है। लेकिन संकोच वश बच्चे हिंदी में संवाद नहीं कर पाते , हम सभी बच्चों को हिंदी में बोलने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है।
ReplyDeleteहमारी स्कूल की भाषा हिन्दी है जबकि बच्चे घर से छत्तीसगढ़ी भाषा ही सीखकर आते हैं तो उनको स्कूल की भाषा सीखने में कठिनाई होती है,हमको उनकी समझ को देखते हुए अध्ययन कराना चाहिए ।
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के बच्चे सहज रूप से जिस भाषा का उपयोग करते है वह पाठ्य-पुस्तक में लिखी गई भाषा से कुछ अलग है। क्योंकि बच्चे स्थानीय भाषा बोलते हैं जबकि पुस्तक में कुछ पाठ को छोड़ दें तो भाषा हिन्दी माध्यम में लिखी गई हैं अतः बच्चों को पढ़ाते समय समझाने के लिए छत्तीसगढ़ी का प्रयोग करते हैं।
ReplyDeleteमेरी शाला के बच्चे छत्तीसगढ़ी बोलते हैँ व समझते हैँ जबकि स्कूल में पढ़ाई की भाषा हिंदी है l इस स्थिति में हिंदी के शब्दों को छत्तीसगढ़ी में बताना पड़ता है l जिससे हिंदी के शब्दों को समझने, समझाने में समय लगता है l
ReplyDeleteसंचार के साधनों में वृद्धि के फलस्वरूप अब उतना ज्यादा परेशानी नहीं होती है l
हमारी शाला के बच्चे जो भाषा (छत्तीसगढ़ी) दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है।
ReplyDeleteवैसे बच्चों के पाठ को अब छत्तीसगढ़ी में भी दिया गया है, पहले हिंदी में, फिर उसी पाठ को हूबहू छत्तीसगढ़ी में | किसी समान रचना को एक साथ दोनों भाषाओं में देखकर अर्थ ग्रहण में आसानी हो गई है |
Sharad Kumar Soni
Primary School Mahora
Sankul - H.S.S.Jamgahana A
Baikunthpur
मै जिस शाला में पढ़ाती हूं बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं पढ़ाते समय उनकी मातृभाषा का प्रयोग करने पर बच्चे आसानी से समझते हैं।
ReplyDeleteREPLY
मे ह छतीसगढ़ीया भाखा म लइका मन ल उखर कक्षा के सबो बिसय के बारे म समझाथों त झट ले समझ जाथे ।
ReplyDeleteफिर पढ़ैया मन पुस्तक के धारा म बड़ जल्दी ढलत जाथे अउ अपन मुकाम ल हासिल करथे ।
मेरी शाला के अधिकांश बच्चे छत्तीसगढ़ी बोलते है जबकि स्कूल की भाषा हिंदी है। कक्षा में पढ़ाते समय कुछ चीजों को छत्तीसगढ़ी में ही बताना पढ़ता है तब बच्चो को समझने में आसानी हो जाती है ।
ReplyDeleteबच्ची अपनी स्थानीय बोली के आधार पर अपने आसपास के वस्तुओं का नाम स्थानीय बोली के आधार पर जानते हैं परंतु वही वस्तुओं का नाम जब वह पाठ्य पुस्तकों में देखता है सुनता है तो वह अलग रहता है तो इसको समझाने के लिए हमें स्थानीय बोली को कहे गए शब्द और पाठ्यपुस्तक में आए शब्द को हमें बताना पड़ता है कि इसे क्या कहा जाता है जैसे हम साधारण सी भाषा ले छत्तीसगढ़ी में गिलहरी को चिटरा बोला जाता है नीलकंठ पक्षी को टेहर्रा बोला जाता है गौठान को बरदी बोला जाता है तालाब को तरिया बोला जाता है पशुओं को गरवा बोला जाता है इस प्रकार से ऐसे अनेक उदाहरण है जिसे बच्चे स्थानीय भाषा या बोली में जानते हैं जिसे अचानक पाठ्यपुस्तक में देखने पर उसे समझ में नहीं आता जिसको हम को पढ़ाते या समझाते समय बताना पड़ता है और बच्चे समझ भी जाते हैं जब हम पुस्तक में पाठ को दोहराते हैं और उसको पूछते हैं कि जैसे मंदरस को क्या बोला जाता है तो बच्चे बताते हैं शहद आदि।
ReplyDeleteबच्चे अपनी क्षेत्रीय भाषाओं की ज्यादा उपयोग करते हैं इसलिए उन्हें भाषाओं की समझ विकसित करने के उनके गांव की भाषा के साथ साथ पाठ्य पुस्तकों की भाषा प्रयोग करेंगे तभी भाषा सिखाने में आसानी होगी
ReplyDeleteमेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा बोलते और समझते हैं परंतु शाला की भाषा हिंदी है। अतः उन्हें पढ़ाते समय सब्दों के अर्थ छत्तीसगढ़ी भाषा के सब्दो द्वारा भी समझानी पड़ती है, बायां को डेरी , दायां को जोनी ,रास्ता को डहार आदि ।
ReplyDeleteमेरे विद्यालय के बच्चों का मातृभाषा हल्बी हैं, जबकि सभी बच्चे आपस में घर परिवार हल्बी बोली बोलते और समझते हैं। परंतु विद्यालय की भाषा हिन्दी हैं। अत:हिन्दी भाषा पढ़ाते समय हल्बी में समझाना पडता हैं जैसे टमाटर को टमाट दाल को दार इस प्रकार।
ReplyDeleteबच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में बोलते , समझते हैं,उनमें निम्न प्रकार से पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा अलग होती है 1.वस्तुओं के नाम में अंतर :जैसे-हल -नांगर,कद्दू- कोहड़ा 2.वाक्य रचना में अंतर:जैसे -मैं जा रहा हूँ-जाथ अउ 3.बोलने का ढंग:जैसे-मुझे भूख लगी है-मम्मी खाना दे 4.व्याकरणीय अंतर :जैसे-रात में नींद आ रही थी- रात के उँघात रहेंव
ReplyDeleteमै बच्चो से हमेशा उन्ही की बोली मे बात करने की कोशिश करती हूं जिसके कारण मै अपनी बात, रख पाती हूँ
ReplyDeleteमेरी शाला में आने वाले अधिकतर बच्चे छत्तीसगढ़ी का ज्यादातर प्रयोग करते है|अतः पाठ्यपुस्तक की भाषाएं छत्तीसगढ़ी से मिलती जुलती है परंतु कई शब्द पाठ्यपुस्तक के ऐसे होते हैं जिनके अर्थ बच्चे समझ नहीं पाते उन्हें उस शब्द का छत्तीसगढ़ी अर्थ बताना पड़ता है तभी वह अच्छी तरह जान पाते है|
ReplyDeleteअजीत चौहान
ReplyDeleteमेरे स्कूल में बच्चे हिन्दी मे पढ़ते हैं जबकि उनकी मात्रभाषा कुडुक है जिसके कारण मुझे उन्हें पढ़ाने में परेशानी होती है |
हमारे स्कूल में सम्बलपुरिया उड़िया भाषा-भाषी के बच्चे पढ़ने आते हैं पर वो हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा बोल व समझ लेते हैं क्योंकि हम शिक्षक बलवाटिका में जाकर(बच्चों का हमारे स्कूल में आने से पहले) वहां की शिक्षिका को बच्चों की मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी और छत्तीसगढ़ी में भी पढ़ाने के लिए,सिखाने के लिए कहा जाता हैं और हमारे द्वारा बीच-बीच में जाकर इसका निरीक्षण भी किया जाता हैं।बच्चों से हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा में सवाल-जवाब करते हैं जिसका उत्तर हम उन्हीं भाषा में पाकर(हिंदी और छत्तीसगढ़ी में) गदगद हो जाते हैं।
ReplyDeleteकहने का तात्पर्य यहीं हैं कि हमें बलवाटिका से ही कक्षा एक में आने से पहले इसकी तैयारी प्रारंभ करवा देनी चाहिए।जिससे हमें बच्चों को स्कूली भाषा में सिखाने में ज्यादा परेशानी न हो।
मेरी शाला में सभी बच्चे छत्तीसगढी में बातें करते हैं,उन सभी की मातृभाषा छत्तीसगढी है।पाठ्य पुस्तक में हिन्दी,छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं पाठ है।छत्तीसगढ़ी के पाठ बच्चे सहजता से समझ जाते हैं अपेक्षाकृत हिन्दी के।
ReplyDeleteमेरा स्कूल आश्रम से जुड़ा है इसलिए अनेकों गांव के बच्चे आते हैं। मेरे स्कूल में गोंडी माड़िया गोंडी,डंडामी गोंडी,हल्बी छत्तीसगढ़ी मातृभाषा बोलने वाले बच्चे हैं। पुराने बच्चे छत्तीसगढ़ी, हिंदी समझ व बोल पाते हैं लेकिन जो नया बच्चे आते हैं खासकर गोंडी बोलने वाले बच्चे को समझने में परेशानी होती है। उन्हें तीन चार माह या साल भर छत्तीसगढ़ी , हिंदी बोलने के लिए समय लगता है फिर भी छत्तीसगढ़ी भाषा बोलने वाले बच्चों की तुलना में आत्मविश्वास में कमी नजर आते हैं। जब हम किसी विषय पर समझाते समय उनकी मातृभाषा का उपयोग करने का प्रयास करते हैं या उन्हें ही पुंछ लेते हैं कि इसे अपने गांव की भाषा में क्या कहते हैं तो खुशी खुशी बताने के लिए तैयार हो जाते हैं।तब उनके चेहरे पर चमक नजर आ जाता है । उनमें आत्मविश्वास बढ़ जाता है।वे सब कुछ भूलकर शिक्षक के साथ घुल-मिल जाते हैं। बच्चों की मातृभाषा स्कूल से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण माध्यम है।
ReplyDeleteहमारे शाला के बच्चे जो भाषा (छत्तीसगढ़ी) दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है । क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है। अंग्रेजी विषय में भी ऐसा ही करना पड़ता है।
ReplyDeleteवैसे बच्चों के कुछ पाठ को अब छत्तीसगढ़ी में भी दिया गया है। पहले हिंदी में, फिर उसी पाठ को हूबहू छत्तीसगढ़ी में | किसी समान रचना को एक साथ दोनों भाषाओं में देखकर अर्थ ग्रहण में आसानी हो गई है |
मेरे शाला के बच्चे घर में छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं। पढ़ाई लिखाई की भाषा हिंदी है। ऐसा नहीं कि बच्चे हिंदी से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं, वे समझते हैं पर अभिव्यक्ति हिंदी में नहीं दे पाते,कुछ को छोड़ कर। हम शिक्षक भी आधा समय छत्तीसगढ़ी और आधे समय हिंदी में बात करते हैं। गणित बताते समय अधिकतर छत्तीसगढ़ी में ही समझाते हैं। इससे बच्चे जल्दी सीखते हैं। हिंदी में पांचवी के बाद शिक्षा में रुचि रखने वाले बच्चे अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन प्राथमिक शिक्षा में छत्तीसगढ़ी को भी हिंदी के साथ स्थान दिया गया है , इसे और बढ़ाने की जरूरत है।
ReplyDeleteमेरे स्कूल में आदिवासी बहुल जनजाति के बच्चे पढ़ने आते हैं जो की स्कूल शहर के नजदीक होने के वजह से बच्चे ज्यादातर छत्तीसगढ़ी भाषा मे बात करते है। विद्यालय में हम शिक्षकों द्वारा हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनो भाषा मे बच्चो के समझ के अनुसार पढ़ाई कराई जाती है,बच्चे अब हिंदी में भी अच्छे से बात कर पाते है अब हिंदी में भी उनकी पकड़ बनती जा रही है।
ReplyDeleteChild leaning in own language with Hindi language together
ReplyDeleteजब हम विद्यालय में या किसी क्षेत्र विशेष की शाला में जाते हैं तो हम देखते हैं कि विभिन्न धर्म सम्प्रदाय बोली के बच्चे पढ़ने आते हैं जिनमे से बहुत सारे बच्चो की मातृभाषा मूल शैक्षिक भाषा से अलग होती है जिससे शिक्षक के रूप में हमे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि कई बच्चे मूल शैक्षिक भाषा को समझने में या तो थोड़ा समय लेते हैं या असमर्थ रहते हैं जिससे कई बच्चे अपने आप को उपेक्षित महसूस करते हैं । जिस कारण कई बच्चे तो शाला आने के लिए भी डरते या कतराते हैं । और यहीं पर इसी जगह हम शिक्षकों की भूमिका अहम हो जाती है, क्योकि कई बार ऐसा होता है कि हम शिक्षक भी कहीं ऐसी जगह पदस्थ हो जाते हैं जहाँ की क्षेत्रीय बोली से हम अनजान रहते हैं या हमे उस बोली का ज्ञान नही रहता । वहां हमे पहले प्रत्येक बच्चो की मातृभाषा को ध्यान में रखते हुए मूल शैक्षिक भाषा को उनके बोली के अनुवाद में समझाते हुए धीरे धीरे शिक्षण प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए जिससे हर बच्चा पाठ के भाव को अच्छे से समझ सके और खेल गतिविधियों और विभिन्न तरीकों से भाषा को समझते हुए शिक्षण का आनंद लेते हुए आगे बढ़े ।
ReplyDeleteहमारा विद्यालय जिस क्षेत्र में हैं वहां के लोगों के घरों में और गांवों में मुख्यतः छत्तीसगढ़ी भाषा बोली जाती है। हमारे पाठ्यपुस्तक और शिक्षण का माध्यम हिंदी भाषा है । द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेज़ी का भी अध्यापन कराया जाता है । चूंकि सभी शिक्षक छत्तीसगढ़ी भाषी है तो शिक्षण में बच्चो से संवाद छत्तीसगढ़ी में ही करते हैं तो बच्चों को दिक्कत नहीं होती । दिशा निर्देश देते समय हम लोग हिन्दी का भी उपयोग करते है जिसे बच्चे आसानी से समझ जाते है। लेकिन संकोच वश बच्चे हिंदी में संवाद नहीं कर पाते , हम सभी बच्चों को हिंदी में बोलने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है।
ReplyDeleteजब हम विद्यालय में या किसी क्षेत्र विशेष की शाला में जाते हैं तो हम देखते हैं कि विभिन्न धर्म सम्प्रदाय बोली के बच्चे पढ़ने आते हैं जिनमे से बहुत सारे बच्चो की मातृभाषा मूल शैक्षिक भाषा से अलग होती है जिससे शिक्षक के रूप में हमे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि कई बच्चे मूल शैक्षिक भाषा को समझने में या तो थोड़ा समय लेते हैं या असमर्थ रहते हैं जिससे कई बच्चे अपने आप को उपेक्षित महसूस करते हैं । जिस कारण कई बच्चे तो शाला आने के लिए भी डरते या कतराते हैं । और यहीं पर इसी जगह हम शिक्षकों की भूमिका अहम हो जाती है, क्योकि कई बार ऐसा होता है कि हम शिक्षक भी कहीं ऐसी जगह पदस्थ हो जाते हैं जहाँ की क्षेत्रीय बोली से हम अनजान रहते हैं या हमे उस बोली का ज्ञान नही रहता । वहां हमे पहले प्रत्येक बच्चो की मातृभाषा को ध्यान में रखते हुए मूल शैक्षिक भाषा को उनके बोली के अनुवाद में समझाते हुए धीरे धीरे शिक्षण प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए जिससे हर बच्चा पाठ के भाव को अच्छे से समझ सके और खेल गतिविधियों और विभिन्न तरीकों से भाषा को समझते हुए शिक्षण का आनंद लेते हुए आगे बढ़े ।
ReplyDeleteहमारी शाला के बच्चे जो भाषा (छत्तीसगढ़ी) दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता है।
ReplyDeleteवैसे बच्चों के पाठ को अब छत्तीसगढ़ी में भी दिया गया है, पहले हिंदी में, फिर उसी पाठ को हूबहू छत्तीसगढ़ी में | किसी समान रचना को एक साथ दोनों भाषाओं में देखकर अर्थ ग्रहण में आसानी हो गई है |
मेरी साला के बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते हैं वह पाठ्य पुस्तकों में लिखी गई भाषा से पूरी तरह से अलग है क्योंकि मेरी कक्षा में बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करते हैं वे छत्तीसगढ़ी भाषा में ही समझते हैं अतः उन्हें हिंदी में पढ़ाने के बाद छत्तीसगढ़ी में भी समझाना होता
ReplyDeleteमेरी कक्षा के बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा बोलते और समझते हैं परंतु साला की भाषा हिंदी है आता उन्हें पढ़ाते समय शब्दों के अर्थ छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्दों द्वारा भी समझा नहीं पड़ती है जैसे हिंदी में टमाटर को छत्तीसगढ़ी में पताल कहते हैं तभी बच्चे शब्दों के अर्थ को समझ पाते हैं
ReplyDeleteमेरी कक्षा के बच्चे छत्तीसगढ़ी भाषा बोलते और समझते हैं परंतु साला की भाषा हिंदी है आता उन्हें पढ़ाते समय शब्दों के अर्थ छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्दों द्वारा भी समझा नहीं पड़ती है जैसे हिंदी में टमाटर को छत्तीसगढ़ी में पताल कहते हैं तभी बच्चे शब्दों के अर्थ को समझ पाते हैं स्थानीय वह भाषा में भी बताना पड़ता है तभी बच्चे अच्छे से समझ पाते हैं
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