कोर्स 7 गतिविधि 1 : अपने विचार साझा करें
कोर्स
07 : प्राथमिक कक्षाओं में बहुभाषी शिक्षण
गतिविधि
1 : अपनी समझ साझा करें
विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। आपके विचार से इन बच्चों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा?
बच्चों को उनकी प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में देनी चाहिए जिस परिवेश में में रहते हो ऐसे पाठ्यक्रम यदि वहां चलाए जाए तो बच्चे रुचि पूर्वक सीख सकेंगे और बाद में धीरे-धीरे उन भाषाओं को जो अपेक्षित है उसको सीखने में रुचि दर्शा सकते हैं
ReplyDeleteबच्चों की मातृ भाषा के साथ शिक्षा देने से वे किसी भी विषय को आसानी से समझ सकते हैं। भाषा ही शिक्षक और बच्चों के बीच एक दूसरे को समझने के लिए सेतु का काम करता है।
Deleteबच्चे की भाषा और शिक्षक की भाषा में भिन्नता होती है तो बच्चे विषय को समझ नहीं सकते, इस तरह उनका ज्ञान अधूरा रह जाएगा। बच्चे जिसे जानना समझना जरूरी समझते हैं उसे नहीं समझ पाएंगे।
बच्चों की दक्षता काम हो जायेगा।
विषय ज्ञान काम हो जायेगा।
Jis bhasha KO bachche na to bolte hain na hi samaghte hain us bhasha me shiksha dena unke liye kala akshar bhais barabar ho jayega bachche aur shishak ke bich conversation ho hi nahi payega
DeleteSarita Singh
Deleteतब बच्चे अवधारणा को ना तो अच्छी तरह से समझते हैं और ना ही अपने मन की शंकाओं को सामने रख पाते हैं।वे मन ही मन खुद को कम आंकने लगते हैं और पढ़ाई में उनकी रूचि कम होने लगती है। अतः आवश्यक है कि बीच बीच में बच्चों को समझ में आने वाली भाषा का भी प्रयोग किया जाए।
Bacchon ko unke parivesh matrubhasha vah Sthan bhasha mein Shiksha Dena chahie
Deleteबच्चे को भाषा सिखाने के लिए उसकी मातृ भाषा उपयोग करने चाहिए प्रारंभिक तौर पर बच्चे को यदि उसके मातृभाषा में सीखने सिखाने काम किया जाए तो वह सरलता से सिख सकता है उसमें समझ बनाने मैं सहज ता अनुभव करता है
DeleteBacchon ke prathmik Shiksha unki matrabhasha mein hi honi chahie jisse bacchon ki ki samajh ka ka adhik se adhik Vikas ho sake vah apni matrabhasha mein mein adhik samajh sakte hain aur samjha bhi sakte hain koshish se hona chahie ki prathmik Shiksha unke Matra bhasha mein hi de jaani chahie
ReplyDeleteन समझने वाली भाषा में शिक्षा ग्रहण करना, अंधेरे में तीर चलाने जैसा ही है ।
ReplyDeleteइससे बच्चा कई शब्दों, बातों का अर्थ अपनी मातृभाषा के अनुसार लगाता है, और अर्थ का अनर्थ हो जाता है ।इस तरह से शिक्षा की दिशा और दशा दोनों ही गलत हो सकती है ।
जो भाषा बच्चों के समझ में नहीं आती उस भाषा में शिक्षण से बच्चे शब्दों वाक्यों के अर्थ नहीं समझ पाते और शब्दों के गलत अर्थ ग्रहण कर लेते हैं जो ठीक नहीं है बच्चों को दूसरी भाषा के अर्थ उनकी मात्री भाषा में सिखाने चाहिए
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। यह आंकड़े चौकाने वाली है, कि बच्चों को उस भाषा में सीखना पड़ता है जिसे वह न तो बोलते और समझते हैं । आखिर कोई ऐसे चीज़ को सीखने में रूचि क्यों दिखाएं जो उनके काम का नही हैं। व्यक्ति उन्हीं बातों बातों पर रुचि दिखाते हैं जिसे समझते हो।
ReplyDeleteऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी शिक्षk बच्चों से जुड़ पायेंगे।
विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। यह आंकड़े चौकाने वाली है, कि बच्चों को उस भाषा में सीखना पड़ता है जिसे वह न तो बोलते और समझते हैं । आखिर कोई ऐसे चीज़ को सीखने में रूचि क्यों दिखाएं जो उनके काम का नही हैं। व्यक्ति उन्हीं बातों बातों पर रुचि दिखाते हैं जिसे समझते हो।
ReplyDeleteऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी शिक्षk बच्चों से जुड़ पायेंगे।
नाम- खुशहाली सोनी
P/s ढाबाडीह
संकुल- खजुरी
Students should be taught in their regional language.They can easily understand the topics.
ReplyDeleteबच्चों को एसी भाषा में शिक्षण देना जिसे वे न तो बोलते हैं और न ही समझते हैं एक दुरूह कार्य है इस लिए प्रारंभिक अवस्था में उन्हें उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना उचित है ।
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। यह आंकड़े चौकाने वाली है, कि बच्चों को उस भाषा में सीखना पड़ता है जिसे वह न तो बोलते और समझते हैं । आखिर कोई ऐसे चीज़ को सीखने में रूचि क्यों दिखाएं जो उनके काम का नही हैं। व्यक्ति उन्हीं बातों पर रुचि दिखाते हैं जिसे समझते हो।
ReplyDeleteऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी शिक्षk बच्चों से जुड़ पायेंगे।
37% की संख्या बहुत होती है ऐसे में बच्चों को ऐसी भाषा सीखने में बहुत मुश्किलों का सामना करना होगा, इसका सीधा असर उनके अन्य विषय पर पड़ेगा ,और बच्चा रटन प्रणाली ग्रहण करेगा जो उनके लिए घातक है l
Deleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। यह आंकड़े चौकाने वाली है, कि बच्चों को उस भाषा में सीखना पड़ता है जिसे वह न तो बोलते और समझते हैं । आखिर कोई ऐसे चीज़ को सीखने में रूचि क्यों दिखाएं जो उनके काम का नही हैं। व्यक्ति उन्हीं बातों बातों पर रुचि दिखाते हैं जिसे समझते हो।
ReplyDeleteऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी शिक्षk बच्चों से जुड़ पायेंगे।
योगेश कुमार सोनी सहायक
प्राथमिक विद्यालय लखाली विकासखंड बम्हनीडीह जिला जांजगीर चांपा
विश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने लिखने के लिए मजबूर है जो भाषा बच्चे घर में नहीं बोलते और नहीं जानते हैं उस भाषा को बच्चे को विद्यालय में पढ़ाया जाता है इस कारण बच्चे सीखने में काफी समय लगाते हैं। बच्चे को उसके मातृभाषा में सिखाने बच्चे रुचि पूर्वक सीखते हैं और समझते हैं
ReplyDeleteकक्षा मैं मातृभाषा का उपयोग कर बच्चों को सिखाया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चे जिस भाषा को न बोलते है न समझते है उस भाषा से सीखने में अरुचि ,रटने की प्रवृत्ति, आत्मविश्वास की कमी आदि होगी।
ReplyDeleteBachcho ko shiksha matribhasha me hi diya jana chahie. Jisse unhe samjhane me aasaani ho. Jab bachche matribhasha me paripkva ho jae tab unhe lakshit bhasha ki or jodne ka prayason kiya jana chahie
ReplyDeleteबच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मात्र भाषा या स्थानीय परिवेश में बोली जाने वाली भाषा मे ही दिया जाना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चो को यदि ऐसी भाषा मे पढ़ाया जाए जिसे वे न बोलते हैं और न ही समझते हैं तो उनको पाठ से संबंधित अवधारणा बिलकुल भी समझ मे नही आएगी।समझने की अपेक्षा रटने पर ध्यान देंगे।
ReplyDeleteबच्चों में सीखने की प्रवृत्ति होती है, तथा वे वास्तव में सीखना भी चाहते हैं बस सीखने का तरीका उनके अनुरुप हो, बच्चा अपने माता पिता की भाषा अनायास ही सीख जाता है, तथा उसमें जल्दी ही अधिकार प्राप्त कर लेता है जो भाषा बच्चों के समझ में नहीं आती उस भाषा में शिक्षण से बच्चे शब्दों वाक्यों के अर्थ नहीं समझ पाते और शब्दों के गलत अर्थ ग्रहण कर लेते हैं जो ठीक नहीं है बच्चों को दूसरी भाषा के अर्थ उनकी मातृ भाषा में सिखाने चाहिए
ReplyDeleteजो भाषा बच्चों के समझ में नहीं आती उस भाषा में शिक्षण से बच्चे शब्दों वाक्यों के अर्थ नहीं समझ पाते और शब्दों के गलत अर्थ ग्रहण कर लेते हैं जो ठीक नहीं है बच्चों को दूसरी भाषा के अर्थ उनकी मातृ भाषा में सिखाने चाहिए
ReplyDeleteजो भाषा बच्चों के समझ में नहीं आता है, उस भाषा में शिक्षा देने से बच्चे शब्दो व वाक्यों को सही तरीके से समझ नहीं पाते है, और उसके गलत अर्थ निकालते है, जो ठीक नहीं है गलत है इसलिए प्राथमिक स्तर के बच्चे होते है उसे उसके स्थानीय भाषा मे पढ़ाना उचित होता है।
ReplyDeleteभाषा की परिभाषा यदि हम देखे तो बच्चो के पास स्थानीय स्तर पर बोले जाने वाली बोली तो होती है उसके अनुरूप उनके पास शब्द कोष भी स्थानीय बोली के अनुशार होता है ।
ReplyDeleteपरेशानी स्थानीय स्तर पर यह होता है कि शिक्षक उस समुदाय से नहीं होते है वे स्थानीय नहीं मानक हिंदी या किताबी भाषा बोलते है जो बच्चो के समझ में नहीं आता ।स्थानीय भाषा अथवा बोली को बच्चा जनता है उसका जो परिवेश होता है उसके अनुरूप उसके पास शब्द कोष है।
समस्या का मूल है कि 3 -5वर्ष की अवस्था में बच्चा कुछ जनता है नहीं है ।उसे उठना बैठना बोलना सब कुछ प्राथमिक स्तर पर ही सीखना पड़ता है ।
फिर माध्यमिक स्तर मे शिक्षक विंग ध्यान नहीं देते ।मैंने तो यहां तक देखा है की चार शिक्षक है तो 2 शिक्षक ही प्रतिदिन आते है चुकी परीक्षा उन्हे ही लेना है । बच्चो को लिखने की दक्षता होता है स्थानीय स्तर पर प्रश्न बैंक निर्माता स्कूलों में नि:शुल्क उपलब्ध कराते है शिक्षक बच्चो को उसी के माध्यम से पढ़ते है टेस्ट बुक पर विशेष फोकस नहीं कर पाते ।
स्थानीय भाषा बच्चो को आता है उसके अनुरूप वे जानते है ।
शिक्षा के लिए शिक्षक एवं शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों का व्यक्तित्व होना चाहिए जो नहीं है सब का मूल यही है
शिक्षक एवं शिक्षा से जुड़े सभी लोगो का व्यक्तित्व एवं चरित्र होना आवश्यक है मुझे लिखने की आवश्यकता नहीं है आप स्वयं अपना आकलन कर लीजिए आपका व्यक्तिव एवं चरित्र क्या है।
वर्तमान में शिक्षक एवं शिक्षा के अधिकारियों का व्यक्तित्व ढोंगी ,भोगी एवं रोगी का हो चुका है ।
उनको भाषा समझने में परेशानी होगी, ऐसे भाषा का प्रयोग होना चाहिए जो उनके पढ़ने में सहायक हो|
ReplyDeleteबच्चों की मातृभाषा को विषय प्राथमिकता देते हुए दूसरी भाषा सीखना आरम्भ करना चाहिए।क्योंकि जो बच्चों की भाषा है उसी में उनकी समझ पुख्ता होता है और रूचि पूर्वक सीख सकते हैं।
ReplyDeleteस्थानीय स्तर पर समस्या यह होता है कि,शिक्षक उस समुदाय से नही होते है।वे स्थानीय नहीं मानक हिन्दी या किताबी भाषा बोलते हैं,जो बच्चों की समझ में नही आता।जिससे बच्चा पढ़ाई-लिखाई मे पिछड़ने लगता है।बच्चा, शिक्षक के सामने अपनी बात नही रख पाता तथा शिक्षक भी बच्चे की बात नही समझ पाता।
ReplyDeleteबच्चों को मातृ भाषामें ही शिक्षा देनी
ReplyDeleteचाहिए क्योंकि जो बच्चों की भाषा है उसी में उनकी समझ पुख्ता होती है और रूचि पूर्व का सीख सकते हैं।
संवाद करना तो दूर बच्चे शब्दो के अर्थों में ही उलझ कर रह जाते होगे।
ReplyDeleteबच्चों को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा÷
ReplyDelete1/दूसरों के भावनाओं व विचारों को समझने में दिक्कत।
2/अपने आप को अपमानित महसूस करना।
3/आत्मविस्वास में कमी होना।
4/पढ़ाई के प्रति अरुचि का भाव जागृत होना।
5/हीनता का भाव पैदा होना।
दादू सिंह तोमर
सहायक शिक्षक
प्रा शा जोगीसार गौरेला(छ ग)
बच्चों को उन्ही की भाषा में किसी भी बात को बताना जरूरी है ताकि वे रूचि से पठन कर सके।
ReplyDeleteबच्चों को उनकी प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में देनी चाहिए। जिस परिवेश में बच्चे रहते हो ऐसे परिवेशीय पाठ्यक्रम यदि वहां चलाए जाए तो बच्चे रुचि पूर्वक सीख सकेंगे और बाद में धीरे-धीरे उन भाषाओं को जो अपेक्षित है उसको सीखने में रुचि दिखा सकते हैं ।
ReplyDeleteबच्चों को अपनी मातृ भाषा से सिखने में आसानी होती है। क्योकि उसे वो जानते और समझते है। लेकिन जिस भाषा के बारे में पहली बार जाने तो उसके सिखने की तीव्र सकती नही के बराबर होगी। इसलिए हमे उसके समझ के अनुसार पूर्ण सहयोग की आवश्यकता होगी।
ReplyDeleteMatri bhasha ke alava any bhasha me padna bachche ke liy bahut bahut kathin hota hai or vh ratne ki niti apna leta hai or vishay par apne samgh nhi bana pata
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। बच्चा निश्चित रूप से मजबूर ही है क्योंकि जिस चीज से वह पूर्णतः अंजान है उसे सीखने मे वह रूचि क्यों लेगा। उसे मात्रा, शब्द, अर्थ, ध्वनि को जानने, सीखने, समझने मे काफी परेशानी होगी। उसे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में समस्या होगी।
ReplyDeleteजहाँ पर ऐसी भाषायी समस्या हो वहाँ इसे दूर कर विद्यार्थियों को उचित माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाए꫰
ReplyDeleteबच्चों को पढ़ाने लिखाने के लिए उनको समझ में आये ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए ।
ReplyDeleteबच्चे अपने घर व आसपास से जिस भाषा मे सुनते हैं उसी भाषा में आगे चलकर बोल पाते हैं और जब विद्यालय में पढ़ने लिखने की भाषा घर या समुदाय से अलग होती है तो उन्हें यह नीरस लगता है और वे पिछड़ते चले जाते हैं
ReplyDeleteजो भाषा बच्चों के समझ में नहीं आता उस भाषा में शिक्षण से बच्चे शब्दों वाक्यों के अर्थ नही समझ पाएंगे और शब्दों के गलत अर्थ ग्रहण कर लेंगे। जो ठीक नही, बच्चों को दूसरी भाषा के अर्थ उनके अपने भाषा में सिखाने चाहिए।
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ReplyDeleteभाषा की परिभाषा यदि हम देखे तो बच्चो के पास स्थानीय स्तर पर बोले जाने वाली बोली तो होती है उसके अनुरूप उनके पास शब्द कोष भी स्थानीय बोली के अनुशार होता है ।परेशानी स्थानीय स्तर पर यह होता है कि शिक्षक उस समुदाय से नहीं होते है वे स्थानीय नहीं मानक हिंदी या किताबी भाषा बोलते है जो बच्चो के समझ में नहीं आता ।स्थानीय भाषा अथवा बोली को बच्चा जनता है उसका जो परिवेश होता है उसके अनुरूप उसके पास शब्द कोष है।समस्या का मूल है कि 3 -5वर्ष की अवस्था में बच्चा कुछ जनता है नहीं है ।उसे उठना बैठना बोलना सब कुछ प्राथमिक स्तर पर ही सीखना पड़ता है ।फिर माध्यमिक स्तर मे शिक्षक विंग ध्यान नहीं देते ।मैंने तो यहां तक देखा है की चार शिक्षक है तो 2 शिक्षक ही प्रतिदिन आते है चुकी परीक्षा उन्हे ही लेना है । बच्चो को लिखने की दक्षता होता है स्थानीय स्तर पर प्रश्न बैंक निर्माता स्कूलों में नि:शुल्क उपलब्ध कराते है शिक्षक बच्चो को उसी के माध्यम से पढ़ते है टेस्ट बुक पर विशेष फोकस नहीं कर पाते ।स्थानीय भाषा बच्चो को आता है उसके अनुरूप वे जानते है ।शिक्षा के लिए शिक्षक एवं शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों का व्यक्तित्व होना चाहिए जो नहीं है सब का मूल यही हैशिक्षक एवं शिक्षा से जुड़े सभी लोगो का व्यक्तित्व एवं चरित्र होना आवश्यक है मुझे लिखने की आवश्यकता नहीं है आप स्वयं अपना आकलन कर लीजिए आपका व्यक्तिव एवं चरित्र क्या है.
Sharad Kumar Soni
Primary School Mahora
Sankul - H.S.S.Jamgahana A
Baikunthpur
Kala akhakchar bhais barabar
ReplyDeleteKhud likhe khuda bache (pde)
Ye ghr se niklkar hm kaha aa gye
Jo sunte hai vo likha hua nhi hai
Fir jo likha hua hai vo bola nhi jata
Aakhir book me jo likha hai vo kya hai
Es esthiti me aaj ka study chl rha hai
Students kya smjhe aur kya pde lekin
FLN ka mukhya uddeshya bhi yhi hai ki students ko unke matribhsha me sikcha diya jai jiska hm swagt krte hai
बच्चे की भाषा और शिक्षक की भाषा में भिन्नता होती है तो बच्चे विषय को समझ नहीं सकते, इस तरह उनका ज्ञान अधूरा रह जाएगा। बच्चे जिसे जानना समझना जरूरी समझते हैं उसे नहीं समझ पाएंगे।
ReplyDeleteबच्चों की दक्षता काम हो जायेगा।
बच्चों को उनकी मातृभाषा में यदि शिक्षण न किया जाए तो हमारे द्वारा जो कही हुई बातें हैं जो हम उन्हें बताना चाहते हैं वह समझ नहीं पाता जिसके कारण वह स्कूल से कक्षा से दूर होने का भी प्रयास कर सकता है साथ ही वह स्कूल भी छोड़ सकता है इसलिए हम ज्यादा से ज्यादा कोशिश करें उनकी अपनी घर की भाषा या मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करें।
ReplyDeleteबच्चों को उनकी प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में देनी चाहिए ,जिस परिवेश में डे रहते हैं तो बच्चे रुचि पूर्वक सीख सकेंगे ।
ReplyDeleteऐसे बच्चे जिन्हें ऐसी भाषा में शिक्षा दी जाती है जिसे न तो वह बोलता है और न वो समझता है।ऐसे बच्चों को अवधारण समझने में एवं अपना विचार व्यक्त करने अत्यंत कठिनाई होती है।और हतोत्साहित होकर पीछे रह जाते है।
ReplyDeleteबच्चे जिस भाषा को न ही बोलते,समझते हैं, तो उन्हें अभिव्यक्ति, विश्लेषण, तर्क करने,निर्णय लेने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteमातृभाषा में प्रारम्भिक अवस्था में शिक्षा देना चाहिए ।और हमारे देश की भाषा हिन्दी में अगर बच्चों को भाषा समझने में परेशानी होने पर बच्चों को मातृभाषा में समझाने का प्रयास करना चाहिए।
ReplyDeleteजिस भाषा को बच्चे न समझते हैं न बोलते हैं , ऐसी भाषा द्वारा शाला में पढ़ाने पर बच्चों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे- उनका मन शाला में नहीं लगता है। वे खुलकर अपनी बात नहीं कह पाते हैं ।शिक्षक की बातें उन्हें समझ नहीं आती हैं जिसकी वजह से वे शाला त्यागी हो जाते हैं ।
ReplyDeleteजिस भाषा को बच्चे नही समझते बोलते वैसे ही भाषा से बच्चे अपनी बात नही रख पाते उन्ही बच्चो को आगे लाने का प्रयास करना चाहिए/
ReplyDeleteबच्चों को उसी भाषा में सिखाया जाना चाहिए जिस भाषा में पारंगत होते हैं जैसे कि मातृभाषा एवं आसपास के परिवेश में बोली जाने वाली भाषा जिससे बच्चों को सिखाई जाने वाली बातों को अच्छी तरह से वे ग्रहण कर सकें|
ReplyDeleteमेरे विचार से बच्चों को बहुत ही ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं यदि आप उसे उनके समझ से परे भाषा का उपयोग कर उन्हें पढ़ाना चाहते हैं तो।क्योंकि बच्चा न तो उस भाषा को बोल सकता हैं और ही समझ सकता हैं।उस पर जबर्दस्ती शिक्षा को थोपा जा रहा हैं तो वो अपने आप को असहज महसूस करेगा,कुछ समझ ही नहीं पाएगा, तो सीखेगा क्या?
ReplyDeleteकहने का तात्पर्य यहीं हैं कि बच्चा को उनके प्रारंभिक वर्षों में उन्ही के मातृभाषाओं का उपयोग करते हुए शिक्षा देनी चाहिए।जिससे बच्चा बड़े आसानी से सीख और समझ सकें।
Bachho ko nayi bhasha samajhne me dikkat ho rahi hai kyu ki unhone wo bhasha bachpan se kabhi suni ya boli nahi hogi
ReplyDeleteऐसे बच्चों को अपरिचित भाषा के चलते कुछ भी समझ नही आता हो गा ।
ReplyDeleteहमें शिशुओं को मातृभाषा अथवा स्थानीय भाषा में ही शिक्षा देनी चाहिए जिससे शिक्षा शिशुओ के लिए बोधगम्य हो, सरल हो व सुरुचिपूर्ण हो।
Deleteन समझने वाली भाषा में शिक्षा ग्रहण करना, अंधेरे में तीर चलाने जैसा ही है ।
ReplyDeleteइससे बच्चा कई शब्दों, बातों का गलत अर्थ समझ लेता है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है ।इस तरह से शिक्षा की दिशा और दशा दोनों ही बिगड़ हो जाती है ..
बच्चों को उनकी भाषायी क्षमता का आकलन कर उनको उनकी भाषा का प्रयोग करने की भरपूर स्वतंत्रता देने का प्रयास करना चाहिए खासतौर उनको चित्रों के माध्यम से कक्षा कक्ष में खुलने ka भरपूर मौका देना चाहिए
ReplyDeleteऐसे में बच्चे के लिए सीखना निरस व उबाऊ होता है।
ReplyDeleteजो भाषा हमारे परिवेश में नहीं है उसे नहीं पढ़ाना चाहिए जिसमे बच्चे समझ सके बोल सके उसमे शिक्षा देना उचित है
ReplyDeleteबच्चे न तो उस भाषा से जुड़ेगें न ही उस वातावरण में मिल पाएँगे ऐसे में बच्चे का भाषाई विकास और वयक्तिक विकास बाधित होगा।
ReplyDeleteप्रारंभिक स्कूल के समय बच्चे अपनी मातृभाषा के साथ अपनी स्थानीय अनुभव लेकर आता है लेकिन स्कूल की भाषा , मातृभाषा से भिन्न होने से स्कूल की गतिविधियों में पूर्ण रूप से सहभागिता नहीं दे पाता हैं या समझ नहीं पाता हैं। इस प्रकार बच्चे अपने आपको कमजोर पाता है साथ ही आत्मविश्वास में कमी होने लगने लगता है। बच्चे पढ़ाई दूर भागने लगते हैं। बच्चों को स्कूल से जोड़े रखना है तो उनकी मातृभाषा को अहमियत देना होगा । सीखने के लिए मातृभाषा का उपयोग स्कूल की भाषा से जोड़कर करना होगा ।
ReplyDeleteबच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने से वे किसी भी विषय को आसानी से समझ सकते हैं। भाषा ही शिक्षक और बच्चों के बीच एक दूसरे को समझने के लिए सेतु का काम करता है।
ReplyDeleteबच्चे की भाषा और शिक्षक की भाषा में भिन्नता होती है तो बच्चे विषय को समझ नहीं सकते, इस तरह उनका ज्ञान अधूरा रह जाएगा। बच्चे जिसे जानना समझना जरूरी समझते हैं उसे नहीं समझ पाएंगे।
बच्चों की दक्षता काम हो जायेगा, इसलिए शैक्षणिक भाषा के साथ मातृभाषा को भी अहमियत देना चाहिए।
बच्चों को एसी भाषा में शिक्षण देना जिसे वे न तो बोलते हैं और न ही समझते हैं एक दुरूह कार्य है इस लिए प्रारंभिक अवस्था में उन्हें उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना उचित है ।न समझने वाली भाषा में शिक्षा ग्रहण करना, अंधेरे में तीर चलाने जैसा ही है ।
ReplyDeleteइससे बच्चा कई शब्दों, बातों का गलत अर्थ समझ लेता है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है ।इस तरह से शिक्षा की दिशा और दशा दोनों ही बिगड़ हो जाती है ..
तब बच्चे अवधारणा को ना तो अच्छी तरह से समझते हैं और ना ही अपने मन की शंकाओं को सामने रख पाते हैं।वे मन ही मन खुद को कम आंकने लगते हैं और पढ़ाई में उनकी रूचि कम होने लगती है। अतः आवश्यक है कि बीच बीच में बच्चों को समझ में आने वाली भाषा का भी प्रयोग किया जाए।
ReplyDeleteChild has bad fill because low knowledge
ReplyDeleteविश्व बैंक के अनुसार संसार में 37% बच्चे ऐसी भाषा में पढ़ने-लिखने के लिए मजबूर हैं जिसे न वे बोलते हैं, न समझते हैं। यह आंकड़े चौकाने वाली है, कि बच्चों को उस भाषा में सीखना पड़ता है जिसे वह न तो बोलते और समझते हैं । आखिर कोई ऐसे चीज़ को सीखने में रूचि क्यों दिखाएं जो उनके काम का नही हैं। व्यक्ति उन्हीं बातों बातों पर रुचि दिखाते हैं जिसे समझते हो।
ReplyDeleteऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी बच्चे शिक्षकों से जुड़ पायेंगे।
ऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी शिक्षक बच्चों से जुड़ पायेंगे।
ReplyDeleteऐसे बच्चों के लिए उन्हीं की भाषा में कोर्स डिज़ाइन कर ऐसे शिक्षकों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता है जो उनकी मातृ भाषा में बात कर सकते हो । तभी शिक्षk बच्चों से जुड़ पायेंगे।
ReplyDeleteबच्चों को उनकी प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में देनी चाहिए मै बस्तर जिला मे जगदलपुर ब्लॉक मे बम्हनी मे पढ़ाता हूं जहां ज्यादतर भतरी भाषा बोली जाती है और पाठय पुस्तक हिंदी और हल्बी मे है
ReplyDeleteऐसी भाषा जो बच्चे न तो बोल पाते है और न ही समझ पाते है तब शुरुआती दौर पे कठिनाई होगी पर परिवेश के अनुसार अपने आप को स्वतः ही ढाल लेगा और उनकी बातें समझ मे भी आने लगेगा और धीरे धीरे कुछ शब्द बोलने भी लगेगा।
ReplyDeleteमेरे कक्षा में पिछले सत्र एक लड़की कक्षा 1 में उड़ीसा से आई थी और उसे हिंदी और उड़िया ही बोलनी आती थी परंतु 3 4 माह के बाद छत्तीसगढ़ी भी अच्छे से बोल लेती है।
बच्चों में स्वतः भाषा सीखने का प्रबल शक्ति होती है बस जरूरत है तो सही मार्गदर्शन की।