कोर्स 07 गतिविधि 2 : अपने विचार साझा करें
कोर्स 07
गतिविधि 2 : प्रिंट (मुद्रित) और नॉन-प्रिंट
(अमुद्रित) मीडिया का विश्लेषण करना - अपने विचार साझा करें
प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों
को देखिए इनमें पुरूषों और महिलाओं को किस प्रकार चित्रित किया गया है और विज्ञापनों
में उनके द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों का विश्लेषण करने का प्रयास कीजिए (संकेतः
देखिए कि वे किन उत्पादों का प्रचार कर रहे हैं, और किस प्रकार की भूमिका निभा रहे
हैं, इत्यादि)। अपने अवलोकनों को साझा कीजिए।
🙏हमेशा अगर हम विज्ञापन की बात करें तो
ReplyDeleteपुरुषो की वस्तुओं हेतु भी महिलाओं को प्रदर्शन को रूप में डाल दिया जाता है जो एक विशेष मानसिकता
ज्यादातर विज्ञापन में महिलाएं ही होती है
Deleteमहिलाओं को भी उतना सम्मान मिलना चाहिए जितना पुरुषो को मिलता हे
Deleteसही है
Deleteअक्सर महिलाओं को गलत तरीके से दिखाया जाता है
विभिन्न विज्ञापनों में महिलाओं को हीअधिक प्रयोग में लाया जाता है जिस विज्ञापन मे जितना अधिक महिलाओं को रखा जाता है वह उत्पाद उतना ही बिकाऊ होता है ऐसा विज्ञापन कंपनियों का मानना है जो एक जेंडर भेदभाव को प्रदर्शित करता है ।अतः हमें यह चाहिए कि ऐसा कोई विज्ञापन प्रदर्शित नहीं करना चाहिए जिनसे जेंडर संबंधी भेदभाव दिखाई देता है ।
ReplyDeleteअमरचंद बर्मन
व्याख्याता
शासकीय उत्तर माध्यमिक विद्यालय चकरभाठा मुंगेली
किस विज्ञापन को पुरुष करेगा और किसको महिलाएं ये सोच भी जेंडर भेद भाव है । हमें अपनी सोच स्पष्ट रखना चाहिए।
Deleteहमें अपनी सोच को जेंडर भेदभाव भेदभाव से दूर रखना चाहिए
Deleteसमाज में स्त्री के लिए जो दृष्टिकोण निर्मित है उसे आकर्षण तथा उसकी सुंदरता को गलत रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस स्वरुप को बदलना होगा।जेंडर भेदभाव को दूर करना आवश्यक है।
Deleteसामान्यतः विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु विशेष के रूप में दिखाया जाता है । महिलाओं और ट्रांसजेंडर को कम आंकते हुए ही खबरे उपलब्ध होती है जो कि जेंडर असमानता को स्पष्ट रूप से दर्शाती है, हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके l
ReplyDeleteRamesh kumar
H S S Turekela
विभिन्न विज्ञापनों में महिलाओं को एक विषय वस्तु के रूप में ही अधिक प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि इससे विज्ञापन अधिक आकर्षक लगता है जिससे वह उत्पाद उतना ही अधिक बिकाऊ होता है। ऐसा विज्ञापन कंपनियों का मानना है, जो एक जेंडर भेदभाव को प्रदर्शित करता है ।हमें अपनी सोच बदलनी होगी किसी भी काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन् उस व्यक्ति की योग्यता के आधार पर दिया जाना चाहिए।
ReplyDeleteविज्ञापन में महिलाओं का अर्धनग्नता पर प्रतिबंध करें ,शासन
Deleteविज्ञापन में महिलाओं की निजी पसंद केवल कॉस्मेटिक्स, घर साफ करने वाले उत्पाद, खाना पकाने वाले वस्तुओं की खरीददारी में सिमटी है। बाकी कार,इलेक्ट्रॉनिक, कंप्यूटर , मकान आदि खरीदने के मामले में पुरुषों का चयन किया जाता है। जिससे जेंडर में असमानता स्पष्ट दिखाई देती है।
ReplyDeleteऐसी मान्यता है जो जितना ज्यादा दिखेगा उतना ज्यादा बिकेगा अतः प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया में महिलाओ को उत्पाद के प्रचार प्रसार के के अनुमोदित किया जाने लगा है जो लिंग भेद का धोताक है इसे रोका जाना चाहिए
ReplyDeleteजेंडर भेदभाव तो होता ही है लेकिन हाल के दिनों मे कुछ विज्ञापनों में महिला,पुरूष दोनों साथ मे दिखाई दे रहे हैं चाहे उत्पाद महिलाओं के लिए हो या पुरुषों के लिए
ReplyDeleteविज्ञापनों मे दोनों की भूमिका रहती हैं।
ReplyDeleteविज्ञापन आदि सामान्यतः महिला को सौम्य पुरुष को कठोर और ट्रांस जेंडर को तो दिखाया ही नहीं जाता है।
ReplyDeleteप्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों को हम अपने स्कूल के दिनों से देख रहे हैं किसी भी वस्तु के विज्ञापन में प्रायः पुरुषों और महिलाओं को ही चित्रित किया जाता रहा है ट्रांसजेंडर का उपयोग ना के बराबर किया जाता है जो कि एक प्रकार के जेंडर भेदभाव को दर्शाता है प्राया पुरुषों के उपयोग के सामानों का विज्ञापन भी महिलाएं करती दिखती हैं यह बड़ी कंपनियों के सोच के स्तर को दर्शाता है कि यदि उनके उत्पादों का विज्ञापन सुंदर महिलाएं करें तो उनके उत्पाद बाजार में ज्यादा बिकेंगे बिक्री ज्यादा होगी और लाभ ज्यादा होगा और ऐसा होता भी है हम सभी यह जानते हैं कई विज्ञापन हमें जेंडर समानता के भी प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया में दिखाई देते हैं फिल्म दंगल चक दे इंडिया इसके उदाहरण है वर्तमान में कई खेलों में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और पुरुषों को अच्छी टक्कर दे रही हैं चाहे वह ओलंपिक खेलों की बात हो बैडमिंटन क्रिकेट या हॉकी का खेल हो महिलाएं पुरुषों पर भारी पड़ती नजर आ रही है आज की महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रतीत होती दिखाई दे रही हैं अब लोगों की सोच बदलती जा रही है
ReplyDeleteकई विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती है, ये मानसिकता पहले से ही बन गयी है कि कौन सा काम पुरूषों का है तथा कौन सा काम महिलाओं का और इसी के अनुसार उन्हें विज्ञापनों के
ReplyDeleteसभी जेंडर से हमारा एक समान व्यवहार होना चाहिए। प्रचार प्रसार के काम में लाया जाता है। जिसमें जेंडर असमानता स्पष्ट दिखायी देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए।
जेन्डर असमानता अभी भी सभी मीडिया में विद्यमान हैं। महिलाओ को आकर्षण के प्रतीक के रूप में प्रयोग करना ,पुरुषों को शक्ति के रुप में दर्शाना ट्रांसजेंडर के लिए भेदभाव है।
ReplyDeleteमुद्रित और अमुद्रित दोनों में प्रचलित विज्ञापनों में महिलाओं को ज्यादा देखने को मिलता है। महिलाएं ही घर गृहस्थी का ध्यान रखती है। और विभिन्न कंपनियों के उत्पादों को उपयोग करती है।
ReplyDeleteवर्तमान में महिलाएं सभी क्षेत्रों में योगदान दिया है हॉस्पिटल हो या शिक्षा ,खेल हो सभी जगह अच्छा प्रदर्शन कर रही है।
आजकल पुरूष और महिला वर्ग दोनों कदम से कदम मिलाकर चल रहे है।
Very nice
Deleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteआजकल विज्ञापनों को काम(sex)से
ReplyDeleteजोड़ कर देखा जाता है,इसलिए हर विज्ञापन में कमसिन कन्या कम या न के
बराबर कपडों में उत्पाद के साथ देखी जा सकती है।
गौरीशंकर यादव
प्राचार्य
शास.हाईस्कूल बुटाकसा
वि.खं. चौकी. राजनांदगाँव
दुनिया भले चांद में पहुँच गई हो. चाहे कितना भी आधुनिकता का राग अलापे किन्तु आज भी ढाल के वही तीन पात. में अटकी. हुई है ज्यादा तर विज्ञापनों में महिलाओं को show pice के रूप में प्रदर्शित किया जाता हैं चाहे हम सिनेमा जगत में देखे नायिका प्रधान कहानी 100 में से एक ही मिलेगी. मसालो के विज्ञापन में खाना बनाते महिला को ही दिखाएंगे
ReplyDeleteअभी के विज्ञापनों मे महिलाओ का विशेष स्थान है चाहे वो कपड़ो से, कॉस्मेटिक या फिर घरेलू चीजों से संबंधित हो
ReplyDeleteजेंडर असमानता अभी भी सर्व व्याप्त हैं महिलाओं को आकर्षण के रूप एवं पुरुष प्रधानता की सोच में परिवर्तन से ही समान अवसर मिलेगा।
ReplyDeleteकई विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती है, ये मानसिकता पहले से ही बन गयी है कि कौन सा काम पुरूषों का है तथा कौन सा काम महिलाओं का और इसी के अनुसार उन्हें विज्ञापनों के प्रचार प्रसार के काम में लाया जाता है। जिसमें जेंडर असमानता स्पष्ट दिखायी देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए। हम सभी यह जानते हैं कई विज्ञापन हमें जेंडर समानता के भी प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया में दिखाई देते हैं फिल्म दंगल चक दे इंडिया इसके उदाहरण है वर्तमान में कई खेलों में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और पुरुषों को अच्छी टक्कर दे रही हैं चाहे वह ओलंपिक खेलों की बात हो बैडमिंटन क्रिकेट या हॉकी का खेल हो महिलाएं पुरुषों पर भारी पड़ती नजर आ रही है आज की महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रतीत होती दिखाई दे रही हैं अब लोगों की सोच बदलती जा रही है।
ReplyDeleteIn most of the commercials, even if its of products used by men, women are presented as a show pieces or commodity
ReplyDeleteReena Mishra- print ya non print media me adhikatar advertisement ya information marketing strategy se sambandhit rahate hai. Gender equity aur equality ki jagah products / materials ki effectiveness par hi Sara dhyan Kendrit hota hai. Sabse pahale soch ko badalana hoga jiske liye Shiksha aur shikshan ke Tareekon me badalaav jaruri hai.
ReplyDeleteविज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती है, ये मानसिकता पहले से ही बन गयी है कि कौन सा काम पुरूषों का है तथा कौन सा काम महिलाओं का और इसी के अनुसार उन्हें विज्ञापनों के प्रचार प्रसार के काम में लाया जाता है। जिसमें जेंडर असमानता स्पष्ट दिखायी देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए। हम सभी यह जानते हैं कई विज्ञापन हमें जेंडर समानता के भी प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया में दिखाई देते हैं फिल्म दंगल चक दे इंडिया इसके उदाहरण है वर्तमान में कई खेलों में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और पुरुषों को अच्छी टक्कर दे रही हैं चाहे वह ओलंपिक खेलों की बात हो बैडमिंटन क्रिकेट या हॉकी का खेल हो महिलाएं पुरुषों पर भारी पड़ती नजर आ रही है आज की महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रतीत होती दिखाई दे रही हैं अब लोगों की सोच बदलती जा रही है।
ReplyDeleteAdvertisement me mahilao ko keval show peace ki tarah use Kiya jata hai. Chahe male ke use ka ho ya female ke use ka.sirf body pradarshan.Khel ki duniya me mahilao ka koi mukabla nahi hai. Soch me badlav hona chahiye.
ReplyDeleteRENU PRADHAN
Govt.Primari School Kastura
Block :- Duldula Dist.:- JASHPUR ( C.G.)
Nowadays, print and non print media is full of glamour and for glamour they think that women are the most important thing. Therefore for advertising their products they use glamorous models
ReplyDeleteसामान्यतः विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु विशेष के रूप में दिखाया जाता है । महिलाओं और ट्रांसजेंडर को कम आंकते हुए ही खबरे उपलब्ध होती है जो कि जेंडर असमानता को स्पष्ट रूप से दर्शाती है, हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके l
ReplyDeleteमहिलाओ को विज्ञापन में एक शोपीस के रूप मे दिखाया जाता है
ReplyDeleteजेंडर असमानता अभी भी सर्व व्याप्त हैं महिलाओं को आकर्षण के रूप एवं पुरुष प्रधानता की सोच में परिवर्तन से ही समान अवसर मिलेगा।हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके l
ReplyDeleteजेंडर असमानता अभी भी सर्व व्याप्त हैं महिलाओं को आकर्षण के रूप एवं पुरुष प्रधानता की सोच में परिवर्तन से ही समान अवसर मिलेगा।हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके
ReplyDeleteN.K. Rajwade
Lecturer
GHSS Pwd Rampur
आज विज्ञापनों मे जो दिखाए जा रहे हैंवह उचित नही है महिलाओ का उपयोग होता है, ठीक है पर उन्हे गलत तरीकों से जिसकी आवश्यकता नही ,एक्सपोज किए जाते हैंवह गलत है।जेंडर की असमानता को बढ़ावा मिलता है।मानवीय सभ्यता समाज के लिए आवश्यक है।
ReplyDeleteजेंडर असमानता अभी भी सर्व व्याप्त हैं महिलाओं को आकर्षण के रूप एवं पुरुष प्रधानता की सोच में परिवर्तन से ही समान अवसर मिलेगा।हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके
ReplyDeleteजेंडर असमानता अभी भी सर्व व्याप्त हैं महिलाओं को आकर्षण के रूप एवं पुरुष प्रधानता की सोच में परिवर्तन से ही समान अवसर मिलेगा।हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण पर चर्चा अनिवार्य है
ReplyDeleteवर्तमान विज्ञापनों में जेंडर समानता के विचारों में पूर्ववर्त्ती धारणाओं को लगभग समाप्त कर दिया गया है उदाहरण के लिए तू कैमरा सम्हाल पीएरेड मैं सम्हालती हूँ
ReplyDeleteविभिन्न विज्ञापनों में महिलाओं को हीअधिक प्रयोग में लाया जाता है जिस विज्ञापन मे जितना अधिक महिलाओं को रखा जाता है वह उत्पाद उतना ही बिकाऊ होता है ऐसा विज्ञापन कंपनियों का मानना है जो एक जेंडर भेदभाव को प्रदर्शित करता है ।अतः हमें यह चाहिए कि ऐसा कोई विज्ञापन प्रदर्शित नहीं करना चाहिए जिनसे जेंडर संबंधी भेदभाव दिखाई देता है ।
ReplyDeleteसमाज महिलाओं को प्रदर्शन की वस्तु समझता है, कुप्रथाओं से निजात शिक्षा ही दिला सकता है
ReplyDeleteप्रिंट और नान प्रिंट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों में महिलाओं को महिलाओं के हिसाब से पुरुषों को पुरुषों के हिसाब से विज्ञापन दिया जाता है जैसे सबमर्सिबल पंप विज्ञापन महिलाओं को नहीं दिया जाता तो घर का जैसे घरेलू उत्पाद को पुरुषों को नहीं दिया जाता ऐसा तो हमेशा ही देखने को मिलता है महिलाओं और ट्रांसजेंडर को कम आंकते हुए ही खबरे उपलब्ध होती है जो कि जेंडर असमानता को स्पष्ट रूप से दर्शाती है लेकिन अब ज्यादातर महिलाओं को विज्ञापन मिलता है चाय का विज्ञापन अब ट्रांसजेंडर महिलाओं के द्वारा किया जाता है जो कि ना के बराबर है फिर भी अब समानता लाने का प्रयास किया जा रहा है l यह हमारे लिए अच्छी बात है कि सभी को चाहे वह पुरुषों हो महिलाएं हो या फिर ट्रांसजेंडर समान अवसर मिलना चाहिए l और हम सभी का प्रयास भी होना चाहिए कि सभी में समानता रहे तभी आगे एक स्वस्थ समाज मिलेगा l
ReplyDeleteविज्ञापन में महिलाओं को भी सामान सम्मान मिलना चाहिए अधिकतर विज्ञापन में महिलाओं का प्रयोग विज्ञापन कम्पनिओं के जेंडर भेदभाव वाली मानसिकता को प्रदर्शित करता है।
ReplyDeleteप्रिंट मीडिया हो या नान प्रिंट मीडिया के जरिए जो भी विज्ञापन दिखाया जाता है उसमें जेंडर असमानताएं स्पष्ट झलकती है । महिलाओं को प्रदर्शन की वस्तुओं की तरह पेश किया जाता है सामग्री पर फोकस कम। ट्रांसजेंडर्स की भागीदारी तो ना के बराबर है। सबको समान अवसर मिलना चाहिए। स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए स्वस्थ विज्ञापन भी होना चाहिए जिसे परिवार के साथ बैठकर देख सके।
ReplyDeleteविज्ञापन आदि में सामान्यतः महिला को सौम्य पुरुष को कठोर और ट्रांस जेंडर को तो दिखाया ही नहीं जाता है।
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ReplyDeleteUnknownOctober 5, 2021 at 1:13 AM
कई विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती है, ये मानसिकता पहले से ही बन गयी है कि कौन सा काम पुरूषों का है तथा कौन सा काम महिलाओं का और इसी के अनुसार उन्हें विज्ञापनों के प्रचार प्रसार के काम में लाया जाता है। जिसमें जेंडर असमानता स्पष्ट दिखायी देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए।
प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया दोनों में प्रचलित विज्ञापनों को हम अपने स्कूल के दिनों से देख रहे हैं किसी भी वस्तु के विज्ञापन में प्रायः पुरुषों और महिलाओं को ही चित्रित किया जाता रहा है ट्रांसजेंडर का उपयोग ना के बराबर किया जाता है |विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती है, ये मानसिकता पहले से ही बन गयी है कि कौन सा काम पुरूषों का है तथा कौन सा काम महिलाओं का और इसी के अनुसार उन्हें विज्ञापनों के प्रचार प्रसार के काम में लाया जाता है। जिसमें जेंडर असमानता स्पष्ट दिखायी देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए। हम सभी यह जानते हैं कई विज्ञापन हमें जेंडर समानता के भी प्रिंट और नॉन प्रिंट मीडिया में दिखाई देते हैं फिल्म दंगल चक दे इंडिया इसके उदाहरण है वर्तमान में कई खेलों में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और पुरुषों को अच्छी टक्कर दे रही हैं चाहे वह ओलंपिक खेलों की बात हो बैडमिंटन क्रिकेट या हॉकी का खेल हो महिलाएं पुरुषों पर भारी पड़ती नजर आ रही है आज की महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रतीत होती दिखाई दे रही हैं
ReplyDeleteकोई भी विज्ञापन हो , नारी से संबंधित हो या न हो परंतु उसमे नारी की अनिवार्य उपस्थिति दर्शकों में उसकी स्वीकार्यता की स्थिति को ही दर्शाती है इसलिए जिम्मेदार विज्ञापनदाता नही हम ,आप और हमारा समाज है।
ReplyDeleteमहिलाओं को भी पुरुषों के समान कहीं भी विज्ञापन करने का अधिकार होना चाहिए किन्तु महिलाओं को अपने सम्मान और कुछ शोषक वर्ग की गलत सोच के प्रति सतर्क रहना चाहिए.
ReplyDeleteUnknownOctober 6, 2021 at 7:10 AM
ReplyDeleteजेंडर असमानता अभी भी सर्व व्याप्त हैं महिलाओं को आकर्षण के रूप एवं पुरुष प्रधानता की सोच में परिवर्तन से ही समान अवसर मिलेगा।हमें इसी दृष्टिकोण को बदलते हुए जेंडर समानता भरी सोंच रखने की अत्यंत जरूरत है जिससे सभी जेंडर को उनका हक , अवसर समान रूप से मिल सके और समाज अपने सभ्य रूप मे आ सके l
जेंडर असमानता आज भी बहुत दिखाई देती है मीडिया तो एक माध्यम है, जिसमे सामाजिक सोच को ही चित्रित किया जाता है,अभी भी इस असमानता को दूर करने में समाज असफल है भले ही अवसर सभी को समान मिले हुए हैं ।
ReplyDeleteप्रिंट और नॉन प्रिंट के कई विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती है ।ये मानसिकता पहले से ही बन गयी है कि कौन सा काम पुरूषों का है तथा कौन सा काम महिलाओं का ।इसी के अनुसार उन्हें विज्ञापनों के प्रचार प्रसार के काम में लाया जाता है। जिसमें जेंडर असमानता स्पष्ट दिखायी देती है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी। काम को जेंडर के आधार पर नहीं वरन योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए।
ReplyDeleteमहिलाओं के कार्य और पुरुषों के कार्य संबंधी जो बातें हमारे दिमाग में घर कर गई है उसे वर्तमान परिवेश में बदलने की जरूरत है ताकि समाज में जेंडर समानता आए, इसकी शुरुआत हो भी चुकी है, उदाहरणार्थ विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा खाना बनाने की प्रतियोगिता (मास्टर-शेफ) में बहुत से पुरूष चैंपियन हैं और बहुत से खेलों में महिलाएं पुरुषों से भी श्रेष्ठ हैं।
ReplyDeleteघनश्याम प्रसाद वर्मा
व्याख्याता
शा. हाईस्कूल कठिया नं.1
वि.खं.- तिल्दा रायपुर(छ.ग.)
मुद्रित एवं अमुद्रित प्रिंट मीडिया में जो विज्ञापन छापे जाते हैं वे हमारे सामाजिक एवं पारंपरिक विचारधारा के द्योतक होते हैं।
ReplyDeleteआज के परिवेश में महिलाओं का विज्ञापन में जो चित्रण होता है, वह जेंडर समानता के उद्देश्य से कम एवं सामान बेचने के उद्देश्य से ही अधिक प्रेरित होता है।
जेंडर समानता तभी सार्थक होगा जब सेवा के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाए और उनके हक एवं अधिकार सुनिश्चित किया जाए।
वेदराम पात्रे
प्राचार्य
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
दामापुर बाजार, पंडरिया
जिला कबीरधाम छ.ग.।
Kisi bhi advertisement me females ko sammanjanak tarie se dikhana chahiye usme vulgarity bilkul bhi nahi honi
ReplyDeletechahiye.S.K.CHINCHOLKAR G.D.K.P.H.S.S.KOTA
सामाजिक परिवेश में हम देखते हैं कि विज्ञापन में जो दिखाया जाता है उसी को हम सच मान लेते हैं क्या वह गुणवत्ता फर्क होता है जैसे काफी समय से लक्स साबुन के विज्ञापन में महिलाएं आ रही हैं, परंतु कुछ समय पहले पुरुष को भी लक्स साबुन के विज्ञापन में रखा गया था। यह उनके व्यापार के बदलाव का दृष्टिकोण है ना कि जेंडर समानता का।
ReplyDeleteप्रिंट मीडिया हो या नान प्रिंट मीडिया के जरिए जो भी विज्ञापन दिखाया जाता है उसमें जेंडर असमानताएं स्पष्ट झलकती है । महिलाओं को प्रदर्शन की वस्तुओं की तरह पेश किया जाता है सामग्री पर फोकस कम। ट्रांसजेंडर्स की भागीदारी तो ना के बराबर है। सबको समान अवसर मिलना चाहिए। स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए स्वस्थ विज्ञापन भी होना चाहिए जिसे परिवार के साथ बैठकर देख सके। इसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव नहीं होना चाहिए।
ReplyDeleteअशोक कुमार बंजारे
व्याख्याता
हाई स्कूल अमाली
विकासखंड कोटा
जिला बिलासपुर (छ.ग)
विषय सामग्री के अनुकूल विज्ञापन प्रस्तुतकर्ता महिला एवं पुरुष तथा ट्रांसजेंडर है ।
ReplyDeleteपुरुष प्रधान समाज माना गया है जिसमे स्त्री को समाज से उठाकर देवी भी माना गया है लेकिन पितृ सत्तात्मक समाज में दासी के रुप में कार्य लिया जाता रहा है
ReplyDeleteमुद्रित एवं अमुद्रित प्रिंट मीडिया में जो विज्ञापन छापे जाते हैं वे हमारे सामाजिक एवं पारंपरिक विचारधारा के द्योतक होते हैं।
ReplyDeleteआज के परिवेश में महिलाओं का विज्ञापन में जो चित्रण होता है, वह जेंडर समानता के उद्देश्य से कम एवं सामान बेचने के उद्देश्य से ही अधिक प्रेरित होता है।
जेंडर समानता तभी सार्थक होगा जब सेवा के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाए और उनके हक एवं अधिकार सुनिश्चित किया जाए. SANTOSH kumar sahu Govt High school somnapur naya Dist kabirdham chhattisgarh
विज्ञापनों में महिलाएं ही अधिक दिखाई देती हैं।लेकिन विज्ञापनों में जेंडर असमानता दिखाई नही देता। महिलाएं प्रोडक्ट का ही प्रचार करती हैं।
ReplyDeleteप्रिंट व नान प्रिंट मीडिया विज्ञापनों में केवल महिला व पुरुष ही दिखाई देते हैं ट्रांसजेंडर न के बराबर मात्र एक चाय के विज्ञापन में एक ट्रांसजेंडर दिखाया जाता हैं जिसे भी दीन - हीन और उपेक्षित वर्ग के रुप में दिखाया जाता हैं । अब बात महिला और पुरुष की करें तो महिलाओं को वस्तु रुप में प्रदर्शित किया जाता हैं । लगभग हर विज्ञापन में महिलायें होती हैं कभी किसी अभिनेता के पीछे केवल प्रदर्शनकारी वस्तु की तरह या कभी घर के कामों से परेशान गृहिणी के रुप में । कुछ विज्ञापन में यह दिखाया जाता हैं महिला आफिस में अच्छा ओहदा तभी पाती हैं जब क्रीम लगाकर गोरी और सुंदर हो जाती हैं । अधिकतर विज्ञापन के अनुसार महिला की सफलता का मापदंड उसकी सुंदरता होती हैं । इसमें दोष हमारी ही सामाजिक सोच का हैं जिसमें महिला का आकलन उसके गुणों की जगह उसकी शारीरिक सुंदरता से होता हैं । महिला के प्रति भोगवादी दृष्टिकोण समाप्त होना आवश्यक हैं । तभी महिलाओं को समाज में बराबर का दर्जा मिल पायेगा। अवसर की समानता मिलेगी क्योंकि आज भी महिला के बाहर जाकर कार्य करने पर पहली चिंता उनकी सुरक्षा की होती हैं जबकि पुरुष की सुरक्षा की चिंता...हास्यास्पद होगी।
ReplyDeleteसमीक्षा गायकवाड़ , व्याख्याता
पं.रामबिशाल पांडेय शास.उच्च.माध्य.विद्यालय राजिम
महिलाओं, पुरुषों और ट्रांसजेंडर विषयक बातों में प्रिंट और नान प्रिंट मीडिया अब खुल कर सामने आने की कोशिश कर रहे हैं।की एंड का तथा अभी हाल की लक्ष्मी नामक फिल्में जेंडर समानता/ असमानता के संबंध में भारतीय मानसिकता को दर्शाती हैं।अभी हाल में एक विज्ञापन में कन्यादान के स्थान पर दूसरे शब्द का उपयोग करने पर बवाल मच गया था।जेंडर भेदभाव को समाप्त/ दूर करना भारत के लिए अभी भी दूर की कोड़ी है।शिक्षा के माध्यम से इस पर विचार कर सकारात्मक सोच लाने की कोशिश आने वाले समय में परिदृश्य में बदलाव कर सकती है।अभी तो विज्ञापनों या विविध क्षेत्रों में महिलाओं और ट्रांसजेंडरों को अवसर तो मिले हैं पर सामाजिक मानसिकता नहीं बदली है।महिलाएं शो पीस और ट्रांसजेंडर उपहास ,उपेक्षा के विषय ही माने जा रहे हैं।समाचार पत्रों, चैनलों के विज्ञापन कंटेंट ,विज्ञापन कर्ता अभी भी लीक पर ही चलते दिखते हैं।
ReplyDeleteकुसुम दीवान
प्राचार्य
शास. उ. मा. शाला बधिया टोला,
डोंगरगढ़, राजनांदगांव
प्रिंट और नॉन प्रिंट के कई विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच सपष्ट दिखाई देती हैं। काम को जेंडर के आधार पर नहीं योग्यता के आधार पर मिलनी चाहिए ।
ReplyDeleteप्रिंट और नॉन प्रिंट के कई विज्ञापनों में सामाजिक रूढ़िवादी की सोच स्पष्ट दिखाई देती हैं। काम को जेंडर के आधार पर नहीं योग्यता के आधार पर मिलनी चाहिए।
ReplyDeleteइस वैश्वीकरण के दौर में मिडिया और नान मिडिया महिलाओं के श्रम को अपने मुनाफे में बदल दिया है । विज्ञापनों और फिल्मों में इसकी बड़ी भूमिका है। विज्ञापनों में महिला का जैसा प्रस्तुतीकरण हो रहा है उस पर गंभीर प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर उत्पाद क्या है और किसको बेचा जा रहा है ? महिला के इतने विकृत चित्रण को उत्पाद बिक्री का जरिया बनाने में कौन से कारण और मानसिकता कार्यरत है । यही मुख्य सवाल है जिस पर बाजार के दृष्टिकोण के अनुसार बहुत कुछ लिखा जा चुका है । लेकिन यह विषय नितांत बाजार के दृष्टिकोण के साथ ही अन्य सामाजिक-राजनीतिक पहलुओं को सम्मिलित करने की अपील करता है जिसे समझना मुख्य बात है ।आज विज्ञापनों में रचनाओं पर अश्लीलता हावी है । विज्ञापन एजेंसियों ने उपभोक्तावाद को एक भ्रामक उच्चवर्गीय जीवन शैली के अंतर्गत प्रचारित किया है ।
ReplyDeleteMahilao ko ek wastu ki tarah stemal kiya jata hai
ReplyDeleteGender asamanta har jagah hai
ReplyDeleteGender inequality is seen everywhere be it mass media or print media ads. The ad makers often seem to be inclined towards one particular gender be it male or female.Womens are portrayed as home makers oftenly which is gender stereotyping and likewise men are supposed to be bread winners for family which is utterly wrong. In todays generation both men and women should be treated equally.
ReplyDeleteसबको समान मौका देना चाहिए|
ReplyDeleteसामाजिक रूप से जेंडर भेदभाव बहुत ज्यादा है हमें इसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए एवं इसे दूर करने के लिए सरकारी नीति बननी चाहिए
ReplyDeleteमीडिया में जितने भी विज्ञापन दिखाए जाते हैं चाहे वह प्रिंट मीडिया हो,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या,दृश्य मीडिया ,सभी में विज्ञापनों में जेंडर भेदभाव देखने को मिलता है।कुछ विज्ञापनों में केवल महिलाओं को दिखाया जाता है जैसे कपड़ा धोने के वाशिंग पाउडर , बर्तन धोने के बार, रसोई के सामान। छक्के भारी मशीनरी और खेती के कामों में अक्सर पुरुषों को दिखाया जाता है। इसी प्रकार राजनीतिक व्यक्तियों के रूप में अक्सर पुरुषों को दिखाया जाता है। हमारी फिल्में भीपुरुष प्रधान बनती हैं जिनमें महिलाओं का काम केवल अंग प्रदर्शन, रंग बिरंगे कपड़े पहनना , पेड़ों के आसपास नाचना और नायक का मनोरंजन करना बस यहीं तक सीमित रहता है। यह जेंडर असमानता समाज में हर स्तर पर हर जगह व्याप्त है
ReplyDeleteबृजेश कुमार शर्मा
व्याख्याता गणित
शासकीय हाई स्कूल खेकतरा दादन विकास खंड लोरमी जिला मुंगेली छत्तीसगढ़ ा
जेंडर भेदभाव को दूर करना आवश्यक है
ReplyDeleteमहिलाओ को विज्ञापन में अच्छे से पेश करना चाहिए, शालीनता पूर्वक जो कि आजकल नहीं किया जाता,
ReplyDeleteअलग अलग विज्ञापन में अलग अलग तरह से जेंडर को चित्रित किया है , अगर क्रीम , पाउडर मतलब किसी भी प्रकार की ऐसी चीजे जो घरेलु उपयोग में आता है आता है उनमे मुख्य रूप से महिलाये होती है | साथ ही साथ ऐसे चीजे जो घर से बाहर का काम हो जैसे बैंक , कंस्ट्रक्शन इत्यादि कार्य के लिए पुरुषो को उपयोग किया जाता है | इन सब से हमसे कही न कही यह बात पता चलती है , की कार्य के आधार पर जेंडर असमान्ता कितनी है
ReplyDeleteमहिला अपने ही उपयोग में लाई जाती हैं वहीं चीजों पर ध्यान दिती है और पुरुष अपने जीवन में लाए गए वस्तुओं का जिसमे जेंडर समानता नहीं दिखा पत्ते
ReplyDeleteप्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापनों में महिला और पुरुष को सामाजिक दृष्टिकोण और मान्यताओं के रूप में हे चित्रित किया जाता है। जोकि जेंडर समानता और निष्पक्षता के भावनाओं के विपरीत जेंडर सोच से ग्रसित होता है। पुरुषों को जहां योग्यता, वीरता, जोखिम लेने वाले, निर्णय लेने वाले जैसे प्रमुख भूमिकाओं में दिखाने की कोशिश होती है वहीं महिलाओं को घरेलू उत्पादों, सौंदर्य प्रसाधनों और पुरुष की सहयोगी की भूमिका ही प्रमुखता से मिलता है। जबकि महिलाएं पुरुषों से कहीं कम नहीं होती हैं। समाज ने महिलाओं की भूमिका को निश्चित कर रखा है और उसी के अनुरूप विज्ञापनों,चैनलों, सीरियलों और फिल्मों में भूमिकाएं दी जाती है। पुरुषों को कभी भी महिलाओं की सहयोगी के रुप में चित्र नहीं किया जाता है। पुरुषों को गृह कर्मी के रूप में कभी भी चित्रित नहीं करते।
ReplyDeleteइससे समाज में महिलाओं के प्रति एक जेंडर विभेद के रूप में सामाजिक दृष्टिकोण पनपता है
मेरे हिसाब से , अलग अलग विज्ञापन में अलग अलग तरह से जेंडर को चित्रित किया है , अगर क्रीम , पाउडर मतलब किसी भी प्रकार की ऐसी चीजे जो घरेलु उपयोग में आता है आता है उनमे मुख्य रूप से महिलाये होती है | साथ ही साथ ऐसे चीजे जो घर से बाहर का काम हो जैसे बैंक , कंस्ट्रक्शन इत्यादि कार्य के लिए पुरुषो को उपयोग किया जाता है | इन सब से हमसे कही न कही यह बात पता चलती है , की कार्य के आधार पर जेंडर असमान्ता कितनी है
ReplyDeleteGive respect every gender
ReplyDeleteKaam ko gender aadhar pr nhi yogyata ke aadhar pr judge krna chahiye
ReplyDeleteKaam me gender ke aadhar par nahi yogyata k aadhar par judge karna chahiye
ReplyDeleteविज्ञापन में महिलाओं की निजी पसंद केवल कॉस्मेटिक्स, घर साफ करने वाले उत्पाद, खाना पकाने वाले वस्तुओं की खरीददारी में सिमटी है। बाकी कार,इलेक्ट्रॉनिक, कंप्यूटर , मकान आदि खरीदने के मामले में पुरुषों का चयन किया जाता है। जिससे जेंडर में असमानता स्पष्ट दिखाई देती है।
ReplyDeleteविज्ञापनों में लड़कियों को जेंडर थोड़ी बदतर के रूप में दिखाया जाता है जैसे सौंदर्य संबंधित विज्ञापनों में अक्सर लड़कियों को दिखाया जाता है और जैसे बाइक के विज्ञापनों में पुरुषों को दिखाया जाता है
ReplyDeleteविज्ञापन की बात करें तो चाहे पुरुष की हो चाहे महिलाओं की जेंडर की समानता को ध्यान में रखते हुए सोंच सही होना जरूरी होता है ।
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