कोर्स 12 गतिविधि 3 : अपने विचार साझा करें
गतिविधि 3 : अपने विचार साझा करें
अपने राज्य/ यू टी से प्रसिद्ध स्वदेशी खिलौनों / अधिगम सामग्री के बारे
में सोचें और अपने विचार साझा करें कि आप इनके प्रयोग विभिन्न प्रत्ययों कौशलों के
शिक्षण-अधिगम में कैसे कर सकते हैं।
हमारे यहां भी कपड़ों से बने गुड्डे गुड़ियों और मिट्टी आदि से बने बैल और मिट्टी से बने जाता वगैरा से बच्चे खेलते हैं और उनमें प्रवेश की समझ बढ़ती है
ReplyDeleteहमारे राज्य में मिट्टी के दीए,खिलौने दिवाली और पोला पर्व बाजार मे मिलते है ।
Deleteहम अपनी शाला में बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के अनेक-गाय ,बैल ,बर्तन,पक्षी, आदि खिलौने बनाकर उनको सुदंर बानाने के लिर विभिन्नरंगों का प्रयोगकरते है।संकुल प्रदर्शनी में खिलौनों का प्रदर्शन करते है ।
KIRTAN LAL VERMA RAJNANDGAON.....Teachar chahe bachcho ka sarvangin vikas to..aas pas k vatavaran me saikado khiloune banakar adhigam karaya jana chahiye sabhi kaushlo ko prapt kiya ja sakta hai.bachche ismi Ruchi lete hai.vyast rakhe ja sakta hai...apne mul uddeshya ko pa sakte hai.
Deleteहमारे यंहा भी स्वदेश खिलौने बनाये जाते हसि जो हम स्कूल और आस पास के वस्तुओ से तैयार करते है। बच्चे भी घरो में अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौनों का निर्माण करते है
ReplyDeleteजैसे गुड्डा गुड़िया। किचन सामान मिटटी से बनाते है। आपस में समूह बनाकर और कई प्रकार के खेल इन खिलौनों से खेल क्र आस पास के परिवेश को सिख लेते है।
हमारे यहां भी कपड़ों से बने गुड्डे गुड़ियों और मिट्टी आदि से बने बैल और मिट्टी से बने जाता वगैरा से बच्चे खेलते हैं और उनमें प्रवेश की समझ बढ़ती है।
ReplyDeleteहमारे यहाँ भी बच्चे मिट्टी से किचन के लिए बर्तन और गुड्डा-गुड़ियाबनाते हैं और समूह में खेलते हैं कागज से फिरकी, नाव, जहाज और विभिन्न आकृति बनाते हैं जिससे उनकी समझ शिक्षण अधिगम में बनतीहै हमारे राज्य में तो खिलौना से संबंधित पर्व पोरा जिसमें मिट्टी से बने नंदी बैल और जाता(आटा चक्की) जैसे खिलौनों की पूजा के उपरांत खेलने के लिए दे दिया जाता है
ReplyDeleteखिलौने हमारे यहाँ भी बनता खासकर पोला तिहार मे मिट्टी लकड़ी के बनाये जाते है इसकी पूजा करने के बाद खेलते है
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ में भी 6 से 11 वर्ष के बच्चों के द्वारा अक्षय तृतीया को मिट्टी के गुड्डी और गुड्डा बनाकर उनका विवाह रचाने का खेल बच्चे द्वारा खेला जाता है जिसमें बच्चों के द्वारा पहले मिट्टी से गुड्डा और गुड्डी बनाते हैं और फिर उसे रंगों और कपड़ों से सजाकर दूल्हा दुल्हन बनाया जाता है और पूरा शादी का मंडप सजाया जाता है इसके उसे बच्चों में उनकी सृजनात्मकता बौद्धिक विकास हस्तकला रंगो के प्रति रुचि एवं छत्तीसगढ़ तथा हमारे भारतीय संस्कृति को सीखने का बहुत अच्छा खेल है
ReplyDeleteहमारे यहां भी बच्चे मिट्टी से किचन के लिए बर्तन और गुड्डा गुड़ियों, बैल ,जाता बनाते हैं पतली बांस की लकड़ी से गुल्ली डंडाा, लकड़ी के तख्ते से बैलगाड़ी ,भौरा एवं कागज की फिरकी ,पतंग, नाव ,जहाज आदि विभिन्न आकृतियों से खिलौने निर्माण किए जाते हैं जिससे उनकी समझ शिक्षण अधिगम में सहायता बनती है
ReplyDeleteKagaj ke khilone nav,chidiya,frog aadi banana mitti ke khilone kanche se ginti sikhana aadi
ReplyDeleteहमारे राज्य में मिट्टी से बने खिलौने जैसे बैल, आटा चक्की, पोला, गुड़िया, आदि का प्रयोग किया जाता है, हम इनसे हमारी संस्कृति , महत्व, आदि के बारे में बच्चों को कक्षा में बता सकते हैं।
Deleteछत्तीसगढ़ में भी 6 से 11 वर्ष के बच्चों के द्वारा अक्षय तृतीया को मिट्टी के गुड्डी और गुड्डा बनाकर उनका विवाह रचाने का खेल बच्चे द्वारा खेला जाता है जिसमें बच्चों के द्वारा पहले मिट्टी से गुड्डा और गुड्डी बनाते हैं और फिर उसे रंगों और कपड़ों से सजाकर दूल्हा दुल्हन बनाया जाता है और पूरा शादी का मंडप सजाया जाता है इसके उसे बच्चों में उनकी सृजनात्मकता बौद्धिक विकास हस्तकला रंगो के प्रति रुचि एवं छत्तीसगढ़ तथा हमारे भारतीय संस्कृति को सीखने का बहुत अच्छा खेल है
Deleteगुड्डा- गुड़िया, पोरा जाता,
ReplyDeleteनांदिया बइला,
शिव विवाह के परिधान, राधा-कृष्ण जी के परिधान,
रसोईघर के लिए मिट्टी के बर्तन,
पानी में रहने वाले एवं स्थलीय जीव जन्तु मिट्टी के या लकड़ी के,
पेड़ पौधे, घर ,
उपरोक्त सभी हमारे टी एल एम हैं जो कि विषय वस्तु को सुगमता से बालमन पर अहसासों और प्रभाव के साथ जुड़ता /जोड़ता चला जाता है ।
उसमे सर्वांगीण विकास होता है इसके अंतर्गत वह सृजनात्मकता,सम्प्रेषण ,
समाधान कौशल,
सामाजिक भावनात्मक कौशल ,आत्मअभिव्यक्ति कौशल,
विद्यार्थी के अंतरगत आता है ।
अपने परिवेश से परिचित होते हैं और फिर अपने संस्कृति को पहचानने लगते हैं ।
एक विद्यार्थी का नया रूप हम सब के सामने आता है ।
छत्तीसगढ़ में खिलौनों की विविधता है। अक्षय तृतीया में अक् ती पुत्री, तिजा में नां दा बैल व पोरा दिपावली में गुवा लिन बहुत सरल सामाग्री मिट्टी से बनती है। यह बच्चों को अपने सूक्ष्म कौशल को मस्तिष्क व मांसपेशी के साथ मिलाकर काम करने में मदद करती है।
ReplyDeleteमिट्टी से बने खिलौने, लकड़ी व बांस से बने खिलौने आदि यहाँ उपलब्ध है इन सबका प्रयोग करके शिक्षण अधिगम में सीखा सकते है |
ReplyDeleteहमारे राज्य में मिट्टी के दीए,खिलौने दिवाली और पोला पर्व बाजार मे मिलते है ।
ReplyDeleteहम अपनी शाला में बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के अनेक-गाय ,बैल ,बर्तन,पक्षी, आदि खिलौने बनाकर उनको सुदंर बानाने के लिर विभिन्नरंगों का प्रयोगकरते है।संकुल प्रदर्शनी में खिलौनों का प्रदर्शन करते है ।
इस तरह बच्चों मे मृदा कला का ज्ञान,रंगों का चयन,आकार,वस्तुओं के नाम,उनके उपयोग ,सामुहिक सहभागिता,अच्छा प्रदर्शन करने की उत्सुकता ऐसे विभिन्न कौशलों में दक्ष करते हैं ।
घरो में अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौनों का निर्माण करते है
ReplyDeleteजैसे गुड्डा गुड़िया। किचन सामान मिटटी से बनाते है। आपस में समूह बनाकर और कई प्रकार के खेल इन खिलौनों से खेल क्र आस पास के परिवेश को सिख लेते
कंकड़ धूल मिश्रित मिट्टी से घरौदा बनाकर खेल खेला जाता है ।इससे बच्चे के द्वारा रेखा गणितीय आकृतियों का निर्माण किया जाता है ।साथ ही बच्चे परिवार के विभिन्न नाते रिश्ते का रोल निभाते हैं ।इससे सामाजिक दायित्व, संबंधों और निर्वहन के संबंध मे जानकारी प्राप्त करते है ।
ReplyDeleteइसी प्रकार कंटेंट (बाटी) भौंरा (लट्टू) आदि के खेल से निशानेबाजी, आदि का अभ्यास होता है ।
हमारे यहां भी बच्चे कपड़े, मिट्टी के गुड़ा गुड़ीया खिलौना बना कर गुड़ा गुड़ीया का खेल खेलते हैं।
ReplyDeleteहमारे यहां कपड़ो से बनी हुई गुड्डे गुड़ियों और मिट्टी से बने बैल एवम अन्य खिलौने बच्चे खेलते हैं, जिससे उनकी समझ विकसित होती है ।
ReplyDeleteहमारे छत्तीसगढ़ में भी गुड्डा- गुड़िया, पोरा जाता,
ReplyDeleteनांदिया बइला,
शिव विवाह के परिधान, राधा-कृष्ण जी के परिधान,
रसोईघर के लिए मिट्टी के बर्तन,
पानी में रहने वाले एवं स्थलीय जीव जन्तु मिट्टी से या लकड़ी से बनाये जाते है।
उपरोक्त सभी हमारे टी एल एम हैं जो कि विषय वस्तु को सुगमता से बालमन पर अहसासों और प्रभाव के साथ जोड़ता चला जाता है ।
उसमे सर्वांगीण विकास होता है इसके अंतर्गत वह सृजनात्मकता,सम्प्रेषण ,
समाधान कौशल,
सामाजिक भावनात्मक कौशल ,आत्मअभिव्यक्ति कौशल,
विद्यार्थी के अंतर्गत आता है ।बच्चे
अपने परिवेश से परिचित होते हैं और फिर अपने संस्कृति को पहचानने लगते हैं ।
और एक विद्यार्थी का नया रूप हम सब के सामने आता है ।
मिट्टी के गुड्डी और गुड्डा बनाकर उनका विवाह रचाने का खेल बच्चे द्वारा खेला जाता है जिसमें बच्चों के द्वारा पहले मिट्टी से गुड्डा और गुड्डी बनाते हैं और फिर उसे रंगों और कपड़ों से सजाकर दूल्हा दुल्हन बनाया जाता है और पूरा शादी का मंडप सजाया जाता है इसके उसे बच्चों में उनकी सृजनात्मकता बौद्धिक विकास हस्तकला रंगो के प्रति रुचि एवं छत्तीसगढ़ तथा हमारे भारतीय संस्कृति को सीखने का बहुत अच्छा खेल है मिट्टी से घरौदा बनाकर खेल खेला जाता है ।इससे बच्चे के द्वारा रेखा गणितीय आकृतियों का निर्माण किया जाता है ।साथ ही बच्चे परिवार के विभिन्न नाते रिश्ते का रोल निभाते हैं ।इससे सामाजिक दायित्व, संबंधों और निर्वहन के संबंध मे जानकारी प्राप्त करते है ।
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ राज्य मे विभिन्न त्यौहार के मौके पर तरह-तरह के खिलौने बनाए जाते हैं। जैसे कि लोहे, लकड़ी, बाँस, मिट्टी आदि। जिससे कि हम बच्चों को अपने संस्कृति के बारे में जानकारी दे सकते हैं।
ReplyDeleteिििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििहमारे छत्तीसगढ़ में भी गुड्डा- गुड़िया, पोरा जाता,
ReplyDeleteनांदिया बइला,
शिव विवाह के परिधान, राधा-कृष्ण जी के परिधान,
रसोईघर के लिए मिट्टी के बर्तन,
पानी में रहने वाले एवं स्थलीय जीव जन्तु मिट्टी से या लकड़ी से बनाये जाते है।
उपरोक्त सभी हमारे टी एल एम हैं जो कि विषय वस्तु को सुगमता से बालमन पर अहसासों और प्रभाव के साथ जोड़ता चला जाता है ।
उसमे सर्वांगीण विकास होता है इसके अंतर्गत वह सृजनात्मकता,सम्प्रेषण ,
समाधान कौशल,
सामाजिक भावनात्मक कौशल ,आत्मअभिव्यक्ति कौशल,
विद्यार्थी के अंतर्गत आता है ।बच्चे
अपने परिवेश से परिचित होते हैं और फिर अपने संस्कृति को पहचानने लगते हैं ।
और एक विद्यार्थी का नया रूप हम सब के सामने आता है ।
पुलता पुतली मिट्टी से बने, अक्ति त्योहार की रौनक होती हैं और पोला में विशेष कर मिट्टी के बने खिलौने प्रचलित हैं। ये हमें शिक्षण मैं सामुदायिकता और प्रादेशिक रीति रिवाजों को समझने का मौक़ा देते हैं।
ReplyDeleteChhattisgarh me bhi khilauno se khelne ka parmpara rhi hai .jisme bachche parmparik khel ke lie istemal karte hai. Khaskar Pola tyohar me khilauno ki puja karte hai pir unse khela jata hai.khel se bachcho ke adhim ster me badottry hota hai.
ReplyDeleteHamare yha bhi khilano ki parmpra hai . Yah bachcho ki manshik vikas me bahut sahayak hota . Mitti ke khilane banana bachcho ko pasand hai. Issse uski srijanatmakta ka vikas hota hai.
ReplyDeleteबच्चो कै खिलौने मिट्टी , लकडी, कपडो के बनाए जाते है ।स्थानीय त्योहारो मे गेडी , नादिया बैला ,जाता, बर्तन , गुड्डा गुडिया आदि खिलौना का एक बड़ा महत्व/ मांग बनता है । यह हमारी सामाजिक संस्कृति और सभ्यता से जुडी होती है ।
ReplyDeleteशाला स्तर पर बच्चो के खिलौने का प्रदर्शन एवं शिक्षण प्रयोग बेहतर प्रभावी होता है ।
गिल्ली डंडा
ReplyDeleteइसमें एक डंडा,किसी भी लकड़ी का,और दो तीन इंच का लकड़ी का टुकड़ा जिसके दोनो ओर नुकीला कर लेते हैं।इसे जमीन में रख डंडे से नुकीले भाग को मारते हैं तो गिल्ली उचकती है,फिर डंडे से उसे दूर तक उछाल देते हैं।संतुलन का,खेल।
हमारे छत्तीसगढ़ मे भी अनेक अवसरों पर मिट्टी और लकड़ियों से बने खिलौने बनाई जाती है जिसका उपयोग बच्चे त्योहारों में करते हैं जैसे अक्षय तृतीया के दिन गुड्डी गुड्डा का विवाह का खेल के माध्यम से बच्चे अपने रीति रिवाजों और परंपरा के साथ रिश्तों और उससे जुड़े नेंग आदि सीखते हैं। उसी प्रकार तीजा पोला के अवसर पर मिट्टी से बने पोला नादिया बैल और जांता (चक्की) आदि से खेलते हैं।
ReplyDeleteहमारे यहां स्थानीय स्तर पर मिट्टी के खिलौने बनाए जाते हैं जिसमें पोला जाता रसोई के सामान और लड़कों के लिए बैल आदि का प्रयोग किया जाता है इसके माध्यम से हम सूक्ष्मगत्यात्मक कौशल आत्म अभिव्यक्ति समस्या समाधान संप्रेषण आदि कौशल विकसित करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ में खिलौनों की विविधता है। अक्षय तृतीया में अक्ति पुत्री, तिजा में नांदा बैल व पोरा दिपावली में ग्वालिन बहुत सरल सामाग्री मिट्टी से बनती है। यह बच्चों को अपने सूक्ष्म कौशल को मस्तिष्क व मांसपेशी के साथ मिलाकर काम करने में मदद करती है।और उनके मस्तिष्क व कला का विकास होता है।
ReplyDeleteहमारे राज्य में कपड़े व मिट्टी के गुड्डा गुड़िया बनाया जाता है।साथ ही मिट्टी के बैल जाता पोरा आदि भी बनाए जत है।इसके निर्माण में बच्चे बहुत रुचि लेते है।इससे सृजनात्मक ,अभिव्यक्ति,सामाजिकता व संप्रेषण आदि कौशालो का विकास होता है।
ReplyDeleteHamare yha mitti, kagaj , banshee lakdi se khilaune banaye hate gaijisme bachchhe swayam bhag lete hai
ReplyDeleteहमारे छत्तीसगढ़ में भी अनेकों खिलौनों के माध्यम से बच्चों में सृजनात्मकता, संप्रेषण, आत्म अभिव्यक्ति, सामाजिकता,गत्यात्मकता, समस्या समाधान व संस्कृति के बारें में सीखते हैं।निश्चित रूप से बच्चों में खिलौनों से विभिन्न कौशलों का विकास होता हैं
ReplyDeleteकई त्यौहारों में खिलौनों का उपयोग होता हैं जैसे:-गुड्डा-गुड़ियों का अक्षय तृतीया में,बैल,जंता-पोरा का तीजा-पोला में,हरेली में गेड़ी, दीपावली में ग्वालिन इत्यादि का उपयोग कर बच्चों में विभिन्न कौशलों का विकास होता हैं।
Mitti se bne kitchen set ,gudiya bhoura, kanche , gilli danda aadi..svdeshi aur prmpragt khilone h jo bachho ko atyant priy h.. in sb se bachho ko bhut aasani se ganit aur hindi k bhut se consept clear kiye ja skte h.
ReplyDeleteहमारे यहाँ मिट्टी,लकड़ी,कपड़े आदि से बने खिलौने बनाए जाते हैं,जिससे बच्चे खेलते हैं व खेल - खेल में सीखते हैं।
ReplyDeleteहमारे छत्तीसगढ़ में भी अनेकों खिलौनों के माध्यम से बच्चों में सृजनात्मकता, संप्रेषण, आत्म अभिव्यक्ति, सामाजिकता,गत्यात्मकता, समस्या समाधान व संस्कृति के बारें में सीखते हैं।निश्चित रूप से बच्चों में खिलौनों से विभिन्न कौशलों का विकास होता हैं
ReplyDeleteकई त्यौहारों में खिलौनों का उपयोग होता हैं जैसे:-गुड्डा-गुड़ियों का अक्षय तृतीया में,बैल,जंता-पोरा का तीजा-पोला में,हरेली में गेड़ी, दीपावली में ग्वालिन इत्यादि का उपयोग कर बच्चों में विभिन्न कौशलों का विकास होता हैं।
शरद कुमार सोनी
प्राथमिक शाला महोरा
बैकुंठपुर जिला कोरिया छत्तीसगढ़
हमारे राज्य में मिट्टी के दीए,खिलौने दिवाली और पोला पर्व बाजार मे मिलते है ।
ReplyDeleteहम अपनी शाला में बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के अनेक-गाय ,बैल ,बर्तन,पक्षी, आदि खिलौने बनाकर उनको सुदंर बानाने के लिर विभिन्नरंगों का प्रयोगकरते है।संकुल प्रदर्शनी में खिलौनों का प्रदर्शन करते है
हमारे यंहा भी स्वदेश खिलौने बनाये जाते हसि जो हम स्कूल और आस पास के वस्तुओ से तैयार करते है। बच्चे भी घरो में अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौनों का निर्माण करते है
ReplyDeleteजैसे गुड्डा गुड़िया। किचन सामान मिटटी से बनाते है। आपस में समूह बनाकर और कई प्रकार के खेल इन खिलौनों से खेल क्र आस पास के परिवेश को सीख लेते है।
हमारे छत्तीसगढ़ में भी कई खिलौने से बच्चे खेलते है जिनमे कपड़े व मिट्टी के गुड्डे गुड़िया का खेल ,मिट्टी के बर्तन सेट प्लास्टिक के भी बर्तन सेट मुख्य है ।हमारे विभिन्न त्योहारो में भी हम बच्चों के खिलौनों को सम्मान व पूजन के साथ बच्चो के खेल को बढ़ावा देते है जैसे हरेली में गेड़ी , कमरछठ में विभिन्न मिट्टी के भौरे बाटी चुकिया ,तीजा में पोरा जाता(चक्की) बैल आदि ,दीपावली में मिट्टी के दिये खिलौने आदि को शामिल करते है इस प्रकार हम बच्चों के खेल खिलौने के साथ संस्कृति को भी समावेश करते है।
ReplyDeleteit is very interesting way to make toys and use for tlm.
ReplyDeleteयहां जाता पोरा , पुतरा पुतरी , गेड़ी आदि से बच्चे खेलते हैं जिससे उनमें कई कौशलो का विकास होता है।
ReplyDeleteहमारे राज्य में मिट्टी के दीए,खिलौने दिवाली और पोला पर्व में बाजार मेंं मिलते है । अक्षय तृतीया को गुड्डी-गुड़िया को सुंदर रंगीन कपडों से सजाया जाता है। हम अपनी शाला में बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के अनेक गाय - बैल ,बर्तन,पक्षी, आदि खिलौने बनाकर उनको सुदंर बनाने के लिर विभिन्न रंगों का प्रयोग करते है।संकुल प्रदर्शनी में खिलौनों का प्रदर्शन करते है ।
ReplyDeleteहमारे यहां खेल गतिविधि के संबंध में बच्चों के द्वारा मिट्टी से विभिन्न खिलौने किचन सेट,फल,सब्जी आदि, कागज की नाव, पंखा, चिड़िया, मेंढक तथा लकड़ी की पतली डंडियों से तीर कमान, गन, गदा,आदि बनाकर उनसे संबंधित जानकारी तथा उपयोग की अवधारणा सीखते हैं।
ReplyDeleteहमारे राज्य में मिट्टी के दीए,खिलौने दिवाली और पोला पर्व बाजार मे मिलते है ।
ReplyDeleteहम अपनी शाला में बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के अनेक-गाय ,बैल ,बर्तन,पक्षी, आदि खिलौने बनाकर उनको सुदंर बानाने के लिर विभिन्नरंगों का प्रयोगकरते है।संकुल प्रदर्शनी में खिलौनों का प्रदर्शन करते है ।
हमारे यहाँ मिट्टी व पुराने कपड़ो से गुड़िया आदि बनाकर खेलते व सृजनात्मकता विकास करते हैं
ReplyDeleteहमारे प्रदेश छत्तीसगढ़ में पोला पर्व बड़े हर्ष उल्लास से मनाया जाता है। जिसमे मिट्टी के खिलौनों को बना कर उनकी पूजा की जाती हैं। इससे बच्चों में सृजनात्मकता, बौद्धिक कौशल व प्रकृति से जुड़ाव का विकास देखने को मिलता है।
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ में मिट्टी के दीए, खिलौने दिवाली और पोला पर्व बाजार मे मिलते है ।
ReplyDeleteहम अपनी शाला में बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के अनेक-गाय ,बैल ,बर्तन,पक्षी, आदि खिलौने बनाकर उनको सुदंर बानाने के लिर विभिन्न रंगों का प्रयोगकरते है।संकुल प्रदर्शनी में खिलौनों का प्रदर्शन करते है ।
हमारे छत्तीसगढ़ में भी कई खिलौने से बच्चे खेलते है जिनमे कपड़े व मिट्टी के गुड्डे गुड़िया का खेल ,मिट्टी के बर्तन सेट प्लास्टिक के भी बर्तन सेट मुख्य है ।हमारे विभिन्न त्योहारो में भी हम बच्चों के खिलौनों को सम्मान व पूजन के साथ बच्चो के खेल को बढ़ावा देते है जैसे हरेली में गेड़ी , कमरछठ में विभिन्न मिट्टी के भौरे बाटी चुकिया ,तीजा में पोरा जाता(चक्की) बैल आदि ,दीपावली में मिट्टी के दिये खिलौने आदि को शामिल करते है इस प्रकार हम बच्चों के खेल खिलौने के साथ संस्कृति को भी समावेश करते है।
ReplyDeleteहमारे यहाँ भी बच्चे मिट्टी से किचन के लिए बर्तन और गुड्डा-गुड़िया बनाते हैं और समूह में खेलते हैं कागज से फिरकी, नाव, जहाज और विभिन्न आकृति बनाते हैं। हमारे राज्य में तो खिलौना से संबंधित बहुत सारे पर्व जिसमें मिट्टी से बने नंदी बैल और जाता(आटा चक्की) जैसे खिलौनों की पूजा के उपरांत खेलने के लिए दे दिया जाता है। बांस से बनी गेड़ी जैसी खिलौनों से खेलने का मौका दिया जाता है।
ReplyDeleteHamare yaha bhi mitti v kapado ke bane gudda gudiya banaya jata hai sath hi kagaj se nav havai jahaj banaye jate hai jisse bacho me kai prakar ke kausalo ka vikah hota hai
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