कोर्स 10 गतिविधि 2 : अपने विचार साझा करें

 

गतिविधि 2 : अपने विचार साझा करें

3-9 वर्ष की आयु के बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए आप विभिन्न हितधारकों के साथ कैसे जुड़ सकते हैं? विद्यालय के एक नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी भूमिका पर विचार करें।

Comments

  1. बच्चों को सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें उचित परिवेश के साथ-साथ आवश्यक शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध कराने की जरुरत होगी।जिससे वे बिना परेशानी के आसानी से सीख सके।

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    1. 3-9 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की बात करे तो उनके लिए उनके स्तर के अनुसार ,रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा । क्योंकि बच्चों को सीधे -सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी, पालको, SMC मेंबरों, तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापित करना होगा।

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    2. Palkon ke sath sampark kar unhe bachchon ki shiksha se jodna smc ke madhyam se aur aanganbadi se bhi Sampark karna aadi

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    3. 3 से 9 वर्ष आयु के बच्चों को बात करें तो उनके लिए उनके स्तर अनुसार उनकी रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा क्योंकि बच्चों को सीधे-सीधे सिखाने के अपेक्षा खेल खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी पालको एसएससी मेंबरों तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापित करना होगा

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    4. 3 year se 9 y tak bachcho me buniyadi shiksha aur sankhyatmak Gyan ka hona ..ati aavasyak hai tabhi.hamara samaj aage chalkar gatishil hoga

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  2. बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक नेतृत्वकर्ता के रूप में हमें हर चुनौतियों का डटकर सामना करना होगा।गांव-गली(अर्थात पालक-अभिभावक से मिलना) में जो समस्या आती हैं वो तो किसी भी तरह से सुलझ जाता हैं।पर हमें गाँव-गली से बाहर निकलने की जरूरत पड़ती हैं वहीं पर हम डगमगा जाते हैं।हमें वहीं पर मजबूत बनने की आवश्यकता होती हैं।जब खेत-खलिहानों में,ईंट भट्ठों में बच्चें अपने पालक-अभिभावक के साथ होते हैं तब वहीं पर हमें उन्हें उचित परिवेश के साथ-साथ आवश्यक शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत होती हैं।या फिर बच्चों को विद्यालय लाने में चुनौती होती हैं।जहां पर हम smc के सदस्यों का, शिक्षाविदों का,(जो ग्राम स्तर पर बनाये रहते हैं)जनप्रतिनिधियों का,पढ़े-लिखें युवाओं का व अन्य सहयोगियों का सहारा लेना पड़ता हैं तब कहीं जाकर हमारा उद्देश्य पूरा हो पाता हैं।बच्चा स्कूल तक आएं तब बात बनती है फिर वहां से हमारा सीखने-सिखाने का काम अनवरत रूप से चलता हैं।

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    1. 3-9 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की बात करे तो उनके लिए उनके स्तर के अनुसार ,रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा । क्योंकि बच्चों को सीधे -सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी, पालको, SMC मेंबरों, तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापित करना होगा।

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    2. Teen se nau Tak ke bacchon ko unke Ruchi anusar sikhana chahie tatha Khel Khel ke madhyam se unhen unke Ruchi ke Aadhar per sikhana chahie

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  3. विद्यालय के एक नेतृत्वकर्ता के रुप मे शिक्षक की भूमिका अहम होती है ।3-9वर्ष के बच्चो मे खेलने कूदने की प्रवृति होती है ।उनकी रूचि अनुसार विभिन्न गतिविधियाँ
    जैसे-विषय आधारित,नाटक,कला,कहानी,प्रिन्ट रिच वातावरण,खिलौनें,चित्र कार्ड ,लुका छिपी खेल आदि है ।बच्चो की विकास और भावात्मक क्षमता को विकसित करना है ।

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  4. 3-9 वर्ष के बच्चों को सिखाने के लिए हम खेल विधि का प्रयोग करते हुए बच्चों को खेल खेल मे सिखाने का प्रयास करेंगे तथा एक नेतृत्व करता के रूप मे उन बच्चों के माताओ को स्कूल से जोडेंगे ताकि बच्चा स्कूल के साथ साथ घर मे अपने घर एवम परिवेश की वस्तुओ से सीख सके।

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  5. 3 से 9 आयु वर्ग के बच्चों को सिखाने के लिए हमें बच्चो व पालको से मिलकर उनकी सीखने के बीच आ रही समस्याओं पर चर्चा की जा सकती है। उनको उनके रूचि के अनुरूप सीखने की व्यवस्था करनी होगी।

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  6. Bachcho ke ruchi ke anurup sikhne ki vyavastha karni chahiye.

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  7. 3-9 वर्ष के बच्चों को सिखाने के लिए हम खेल विधि का प्रयोग करते हुए बच्चों को खेल खेल मे सिखाने का प्रयास करेंगे, उनके अधिगम को सुगम बनाने के लिए आनंददायी वातावरण का निर्माण तथा एक नेतृत्व कर्ता के रूप मे उन बच्चों के माताओ को स्कूल से जोडेंगे,पालकों से बच्चों के प्रगति के संबंध में संवाद कायम करेंगे बच्चा स्कूल के साथ साथ घर मे एवम् परिवेश की वस्तुओ से सीख सके,इसके लिए प्रेरित करेंगे|

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  8. 3 से 9 आयु वाले बच्चों को खेल खेल में पाठ्य सामग्री को रुचिकर बना करके सिखाएंगे

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  9. बच्चो के रूचि अनुसार गतिविधि करके धीरे धीरे सिखाने का प्रयास करके खेल खेल मे समझायेगे

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  10. सर्व प्रथम बच्चे का आकलन कर हम बच्चे का पूर्व ज्ञान को समझेगा ।इसके बाद उसको भाषा एवं गणित की समझ विकसित करने के लिए चित्र कार्ड से पता करेगे की बच्चे समझ ,उन्हीं चित्रों को गिनने को कहा जायेगे ।
    शरीर के अंगो को गिनने को कहा जाएगा ।घिरे धीरे एक एक सीढ़ी हमे चढ़ना होगा कोई भी स्टेप छूटने नहीं देना है।

    3 से 9 वर्ष की अवधि में बच्चो की जिज्ञासा अत्यधिक रहता है जिसको हम ध्यान रखना है।

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  11. 3 से 9 वर्ष के बच्चे खेलकूद में रुचि रखते हैं हमें उनके पालकों से संपर्क रखना पड़ेगा हमें उनकी रूचि के अनुसार विभिन्न गतिविधियां जैसे खिलौने चित्रकार कहानी खेल विधि आदि गतिविधियां अपनाने पड़ेंगे हमें समुदाय से जुड़ना पड़ेगा इसके लिए एसएमसी का सहयोग लिया जा सकता है

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  12. 3 से 6 वर्ष के बच्चों को सीखाने के लिए उनके साथ मिलकर उन्हे सामग्री उपलब्ध कराकर एवं खेल विधिय एवं गतिविधि आधारित शिक्षण देकर उन्हे सहयोग प्रदान करेंगे ।

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  13. बच्चो के रूचि अनुसार गतिविधि करके धीरे धीरे सिखाने का प्रयास करके खेल खेल मे 3 से 6 वर्ष के बच्चों को सीखाने के लिए उनके साथ मिलकर उन्हे सामग्री उपलब्ध कराकर एवं खेल विधिय एवं गतिविधि आधारित शिक्षण देकर उन्हे सहयोग प्रदान करेंगे ।

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  14. बच्चो के सीखने के अनुरूप वयवस्था करनी होगी।

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  15. 3-9 वर्ष आयु के बच्चो के सीखने के लिए उनके परिवेश मे नेतृत्वकर्ता को जुड़ना होगा एवं आवश्यक संसाधन की व्यवस्थापक का दायित्व निभाना होगा।

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  16. बच्चों को सीखने के लिए विभिन्न हितधारक जैसे पालक ,उनके सहयोगी साथी ,आसपास के परिवेश आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं एवं आसपास के पढ़े-लिखे बच्चे जो कॉलेज में या बड़ी कक्षा में अध्यनरत है ऐसे बच्चों को छोटे बच्चों की मदद के लिए प्रोत्साहित करना पलकों में खासकर उनकी मां को बच्चों को सिखाने के प्रति जागृत करना और घर में सबको सीखने का माहौल बनाने के लिए प्रेरित करना प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चों को खेल-खेल में सीखने के लिए प्रोत्साहित करना एवं आगे कक्षाओं में बड़ी कक्षाओं के बच्चों को मदद के लिए प्रेरित करना।

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  17. 3-9 वर्ष के बच्चों को नेतृत्वकर्ता के रूप में अपने परिवेश से पालक, परिवार, जनसहयोगी एवं शिक्षित बड़े भैया दीदी आदि का सहयोग प्राप्त कर उचित मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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  18. विद्यार्थियों में आवश्यकतानुसार संख्यात्मक एवं भाषायी विकास हेतु सतत विकास के प्रयास हेतु विद्यालय के अंदर प्रिंट रिच वातावरण का निर्माण,चित्रों से सीखना, बिग बुक का उपयोग, भाषाई एवं गणितीय खेल आदि

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  19. ३से९वर्ष की आयु के बच्चों की सीखने की आवश्यकता ओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने हेतु मैं विभिन्न हितधारकों के साथ समय-समय पर बैठ कर रख कर , पालक संपर्क कर, विशेष प्रोग्राम आयोजन कर जैसे- खेल प्रतियोगिता , रंगोली प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, चित्र कला प्रतियोगिता, कहानी, कविता, रोल प्ले आदि के माध्यम से हम जुड़ सकते हैं और हमारे विचारों का आदान-प्रदान कर हम बच्चों की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा परचर्चा कर बच्चों को उचित दिशा में ले जा सकते हैं।

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  20. नेतृत्व करते समय बच्चों की समस्याओं पर पारखी नजर होना चाहिए ।
    समस्याओं के समाधान हेतु पालक,जनसमुदाय एवं शिक्षा समिति से सतत सहयोग लेते रहने चाहिए।

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  21. एक शिक्षक को सर्वप्रथम उस गांव की प्रकृति को समझना होगा, विद्यार्थी के पारिवारिक पृष्ठभूमि ,सांस्कृतिक संदर्भों की समझ, बोली, पालक एवं विद्यार्थी की विभिन्नताओं को अपनाना, रचनात्मक कार्यों के लिए व्यक्तिगत _सामाजिक हितग्राही लोगों को जोड़ना होगा ।
    तब जाकर शाला का एवं विद्यार्थीयों विकास संभव है ।

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    1. सहयोगात्मक विचार को लेकर हर तरह के कार्य को पूर्ण किया जा सकता है ।
      जैसे कि शाला कार्य का बंटवारा, निर्माण कार्य, निर्णय लेना,आपसी सम्मान, संबोधन, स्कूल के प्रति निष्ठावान, हितकारी व्यक्तियों से मिलना,smcके सदस्यों के साथ मुलाकात करना, आँगनबाड़ी के कार्यकर्ताओं से मुलाकात, युवा वर्ग, जनप्रतिनिधियों से मुलाकात करना और अपने शाला के विकास हेतु सहयोगात्मक भाव रखना चाहिए ।

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  22. Being a teacher I teach my children's with the various activities as 3-9 years kids are very much active and they learn by doing things only.

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  23. 3-9 वर्ष के बच्चों को सिखाने के लिए हमे पर्याप्त समय और बच्चों के साथ खेल विधि का प्रयोग कर खिलौने, विभिन्न प्रकार के माँडलों के माध्यम से खेल -खेल से सिखाने का प्रयास करेंगे। तथा एक नेतृत्वकर्ता एवं जिम्मेदारी होने के नाते माता- पिता और एस एम सी सदस्यों के साथ मिलकर उनकी समस्या के आधार पर सभी को मिलकर सिखाने का प्रयास करना चाहिए। तथा स्थानीय परिवेश वातावरण के साथ -साथ घर पर अपने माता- पिता भाई- बहन के साथ स्थानीय परिवेश की वस्तुओं से सीख सके।

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  24. 3से 9 साल तक के बच्चो को उनके रूचि के अनुसार खेल खेल मे सिखाया जायेगा।

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  25. 3 साल से 9 साल य
    तक के बच्चो को उनके रूचि के अनुरूप खेल के जरिये सिखाया जायेगा।

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  26. 3-9वर्षो के बच्चों को बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान में पूर्ण दक्षता हासिल करने के लिए बच्चों के अभिभावकों ,गांव , मोहल्ले, पारा के पढ़ें लिखे व्यक्ति यो से एवं बच्चों के बड़ी भाई- बहन से मिल कर समेस्याओ का समाधान ढुंढ निकाला जा सकता है

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  27. पालक से संपर्क करना। बच्चों से आत्मीय ता बढ़ाना। एफ एल एन पर चर्चा करना। सीखने के प्रतिफल पर चर्चा करना।

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  28. 3से9वर्ष के बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़कर उनके परिवेश के हितधारकों के व्यवहार केअनुरूप बातचीत करते हुए हम बच्चों को गतिविधि कराते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो जायेंगे।

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  29. 3 से 9वर्ष के बच्चों के सीखने की आवश्यकताओं के लिए हितधारकों से मिल सकते हैं।पालक मीटिंग करके,मातृ सम्मेलन,बालसभा एवम् आयोजनों द्वारा सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।

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  30. विद्यालय के एक नेतृत्वकर्ता के रुप मे शिक्षक की भूमिका अहम होती है ।3-9वर्ष के बच्चो मे खेलने कूदने की प्रवृति होती है ।उनकी रूचि अनुसार विभिन्न गतिविधियाँ
    जैसे-विषय आधारित,नाटक,कला,कहानी,प्रिन्ट रिच वातावरण,खिलौनें,चित्र कार्ड ,लुका छिपी खेल आदि के माध्यम से बच्चो की विकास और भावात्मक क्षमता को विकसित करने में एक सहयोगी की भूमिका निभा सकते हैं ।

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  31. इसके लिए संबंधितों से सहयोग पर विचार व क्रियान्वयन पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।

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  32. 3-9 वर्ष के बच्चों के सीखने के लिए सभी हिटधारकों से जुड़ना होगा इसके लिए परेंट्स टीचर मीटिंग्स आयोजित हो, स्कूल में विविध कार्यक्रम जैसे खेलकूद, सांस्कृतिक सध्या, राष्ट्रीय पर्व के समय शिक्षा के सम्बन्ध विचार व्यक्त करना तथा सभी हिटधारकों से संपर्क करके संबधित बच्चे के गुणों पर चर्चा की जा सकती है l S. M. C मेम्बर्स के साथ नियमित चर्चा होनी चाहिए l

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  33. 3se9 बर्ष के बच्चों को सिखाने के नेतृत्व कर्ता के रूप मे हमारी बड़ी भूमिका बन जाती है और बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है विद्यालय परिवेश , पालक -बच्चों, aaganwadi कार्यकर्ताओं sabko साथ लेकर चलना unme samjasy बनाकर चलना bahut बड़ी चुनौती होती है बच्चों को सीखने की गति alag alag होती है usme hame बाट सारी गतिविधियों को सामिल करना चाहिए और बच्चों in गतिविधियों को आन्नद के साथ करते हुए सीखे

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  34. 3से9आयुके बच्चों को खेल-खेल मे शिक्षा देने से वह जल्दी सीखते हैं।आसान गतिविधियों के द्वारा बच्चे जल्दी सीखने लगता है।

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  35. पालकों,smc मेंबरों तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओ से समन्वय स्थापित करना होगा और माताओं को स्कूल से जोड़ेंगे ताकि बच्चा स्कूल के साथ साथ घर में अपने परिवेश की वस्तुओं से सीख सके।

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  36. विद्यालय के एक नेतृत्व कर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका अहम होती है 3-9 वर्ष के बच्चों में खेलने कूदने की प्रवृत्ति होती है उनकी रूचि के अनुसार विभिन्न गतिविधि, खेल से सीखाना चाहिए | जैसे- नाटक, कहानी, खिलौना, चित्र कार्ड, शाला में उपलब्ध सामग्री, सीखाने के सरल तरीके आदि |

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  37. बच्चों को सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें उचित परिवेश के साथ -साथ आवश्यक शैक्षणिक साम्रग्री उपलब्ध कराने की जरूरत होगी। जिसमें वे बिना परेशानी के धीरे धीरे आसानी से सीख सकें।

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  38. 3-9 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की बात करे तो उनके लिए उनके स्तर के अनुसार ,रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा । क्योंकि बच्चों को सीधे -सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी ।

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  39. विद्यालय के एक नेतृत्वकर्ता के रुप मे शिक्षक की भूमिका अहम होती है ।3-9वर्ष के बच्चो मे खेलने कूदने की प्रवृति होती है ।उनकी रूचि अनुसार विभिन्न गतिविधियाँ
    जैसे-विषय आधारित,नाटक,कला,कहानी,प्रिन्ट रिच वातावरण,खिलौनें,चित्र कार्ड ,लुका छिपी खेल आदि है ।बच्चो की विकास और भावात्मक क्षमता को विकसित करना

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  40. 3 se 9 aayu varg ke bachcho ko unke star ke anurup khel khel me shiksha ,Chitra kard,print rich vatavaran se jodker unhe shiksha se jod sakte hai

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  41. 3से 9आयु वर्ग के बच्चों को सिखाने के लिए खेल खेल में शिक्षा , उनकी रुचि के अनुसार शिक्षा एवं चित्र व कहानियों के माध्यम से अधिकाधिक शिक्षा दी जानी चाहिए।

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  42. 3-9 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की बात करें तो उनके लिए उनके इस स्तर के अनुसार रुचि ‌को दृष्टिगत रखते हुऐ‌ सामंजस्य स्थापित करना होगा क्योंकि बच्चों को सीधे-सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने का प्रयास अधिक होना चाहिए।

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  43. 3 से 9 साल तक के बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार खेल खेल में सिखाया जाएगा पालक मीटिंग करके मातृ सम्मेलन बालसभा आयोजनों द्वारा सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।

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  44. तीन से नौ आयु वर्ग के बच्चे अधिकांश जो हैं पढ़ाई लिखाई पसंद नही करते।उन्हें,पालकों के साथ, व अलग अलग भी मैं स्लाइड प्रोजेक्टर जो स्वयं डिजाइन किया है,पेटेंट भी है,सभी स्कूलों हेतु उपयोगी भी,द्वारा मार्गदर्शन करूंगा।

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  45. विद्यालय में एक नेतृत्वकर्ता के रुप मे शिक्षक की भूमिका अहम होती है। 3-9वर्ष के बच्चो मे खेलने कूदने की प्रवृति होती है ।उनकी रूचि अनुसार विभिन्न गतिविधियाँ
    जैसे-विषय आधारित,नाटक,कला,कहानी,कविता,प्रिन्ट रिच वातावरण,खिलौनें,चित्र कार्ड ,लुका छिपी खेल आदि के माध्यम से बच्चो को विद्यालय में हम जल्दी सीखने में मदद कर सकते है, जिससे बच्चो में तीव्र गति से सीखने की क्षमता का विकास होगा । यह कार्य विद्यालय में आसानी से किया जा सकता है।

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  46. विद्यालय में एक नेतृत्वकर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, 3से9वर्ष के बच्चों को खेल पर आधारित गतिविधियों के माध्यम से तथा स्कूल में उपलब्ध संसाधनों से संयम पूर्ण होकर पर्याप्त समय लेकर बच्चों के साथ खुद बच्चे बनकर उनके बीच बैठ कर सिखाना एवं उनके परिवारिक संपर्क के लिए उनके माताओं की सहयोग लेकर फीडबैक लेना-देना कर सकते हैं

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  47. 3-9 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की बात करे तो उनके लिए उनके स्तर के अनुसार ,रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा । क्योंकि बच्चों को सीधे -सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी, पालको, SMC मेंबरों, तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापि

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  48. 3-9 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की बात करे तो उनके लिए उनके स्तर के अनुसार ,रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा । क्योंकि बच्चों को सीधे -सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी, पालको, SMC मेंबरों, तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापित करना होगा l

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  49. 3से 9 वर्ष की आयु के बच्चों से भयमुक्त व्यवहार मातृभाषा में वर्तालाप कर विश्वास जीत कर विभिन्न तार्किक खेल क्रियाओं प्रयोग आदि से सीखाया जा सकता है।

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  50. 3 से 9 वर्ष के बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उनके स्तर के अनुसार उनकी रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा ।आवश्यक शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध कराने की जरूरत होगी ।

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  51. 3-9 वर्ष के बच्चो को सीखने के अवसर प्रदान करने के लिए एक नेतृत्वकर्ता के रूप में विभिन्न प्रकार के कहानी नाटक कविता मनोरंजन के साथ आवश्यक टी एल एम सामग्री उपलब्ध कराना चाहिए।

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  52. हमें वहीं पर मजबूत बनने की आवश्यकता होती हैं।जब खेत-खलिहानों में,ईंट भट्ठों में बच्चें अपने पालक-अभिभावक के साथ होते हैं तब वहीं पर हमें उन्हें उचित परिवेश के साथ-साथ आवश्यक शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत होती हैं।या फिर बच्चों को विद्यालय लाने में चुनौती होती हैं।जहां पर हम smc के सदस्यों का, शिक्षाविदों का,(जो ग्राम स्तर पर बनाये रहते हैं)जनप्रतिनिधियों का,पढ़े-लिखें युवाओं का व अन्य सहयोगियों का सहारा लेना पड़ता हैं तब कहीं जाकर हमारा उद्देश्य पूरा हो पाता हैं।बच्चा स्कूल तक आएं तब बात बनती है फिर वहां से हमारा सीखने-सिखाने का काम अनवरत रूप से चलता हैं।3-9 वर्ष के बच्चो को सीखने के अवसर प्रदान करने के लिए एक नेतृत्वकर्ता के रूप में विभिन्न प्रकार के कहानी नाटक कविता मनोरंजन के साथ आवश्यक टी एल एम सामग्री उपलब्ध कराना चाहिए।

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  53. 3 से 9 वर्ष के बच्चों के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए समय बच्चे को उनकी रूचि के अनुसार शुरुआत में विभिन्न गतिविधियों के द्वारा उन्हें माहौल उत्पन्न करना होगा क्योंकि बच्चे घर की पृष्ठभूमि से निकलकर एक नई वातावरण में सामंजस्य बिठाने में सहज महसूस नहीं करते अतः उन्हें उनकी रूचि के अनुसार धीरे धीरे स्कूल के वातावरण से जोड़ना होगा इस संबंध में हमें उनकी घर तथा आसपास के वातावरण को जानना होगा समुदाय के लोगों से मिलना, बच्चों को खेल परक शिक्षा, विभिन्न रोचक गतिविधि, कहानी, किस्सा ,कविता आदि के द्वारा उन्हें जोड़ कर रखना होगा

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  54. 3से 9वर्ष के बच्चों की सीखने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए लोगों को बच्चे के लिए सहज व उनके रुचि के अनुसार सामग्री उपलब्ध कराने की प्रस्ताव रखकर परिणाम प्राप्ति तक सहयोग करूंगा।

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  55. 3-9 वर्ष के बच्चो को सीखने के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रयास करने पड़ते हैं। बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक नेतृत्वकर्ता के रूप में हमें हर चुनौतियों का डटकर सामना करना होगा।गांव-गली(अर्थात पालक-अभिभावक से मिलना) में जो समस्या आती हैं वो तो किसी भी तरह से सुलझ जाता हैं।पर हमें गाँव-गली से बाहर निकलने की जरूरत पड़ती हैं वहीं पर हम डगमगा जाते हैं।हमें वहीं पर मजबूत बनने की आवश्यकता होती हैं।जब खेत-खलिहानों में,ईंट भट्ठों में बच्चें अपने पालक-अभिभावक के साथ होते हैं तब वहीं पर हमें उन्हें उचित परिवेश के साथ-साथ आवश्यक शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत होती हैं।या फिर बच्चों को विद्यालय लाने में चुनौती होती हैं।जहां पर हम smc के सदस्यों का, शिक्षाविदों का,(जो ग्राम स्तर पर बनाये रहते हैं)जनप्रतिनिधियों का,पढ़े-लिखें युवाओं का व अन्य सहयोगियों का सहारा लेना पड़ता हैं तब कहीं जाकर हमारा उद्देश्य पूरा हो पाता हैं।बच्चा स्कूल तक आएं तब बात बनती है फिर वहां से हमारा सीखने-सिखाने का काम अनवरत रूप से चलता हैं।

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  56. बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक नेतृत्वकर्ता के रूप में हमें हर चुनौतियों का डटकर सामना करना होगा।गांव-गली(अर्थात पालक-अभिभावक से मिलना) में जो समस्या आती हैं वो तो किसी भी तरह से सुलझ जाता हैं।पर हमें गाँव-गली से बाहर निकलने की जरूरत पड़ती हैं वहीं पर हम डगमगा जाते हैं।हमें वहीं पर मजबूत बनने की आवश्यकता होती हैं।जब खेत-खलिहानों में,ईंट भट्ठों में बच्चें अपने पालक-अभिभावक के साथ होते हैं तब वहीं पर हमें उन्हें उचित परिवेश के साथ-साथ आवश्यक शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत होती हैं।या फिर बच्चों को विद्यालय लाने में चुनौती होती हैं।जहां पर हम smc के सदस्यों का, शिक्षाविदों का,(जो ग्राम स्तर पर बनाये रहते हैं)जनप्रतिनिधियों का,पढ़े-लिखें युवाओं का व अन्य सहयोगियों का सहारा लेना पड़ता हैं तब कहीं जाकर हमारा उद्देश्य पूरा हो पाता हैं।बच्चा स्कूल तक आएं तब बात बनती है फिर वहां से हमारा सीखने-सिखाने का काम अनवरत रूप से चलता हैं

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  57. 3-9 वर्ष के बच्चों को सिखाने के लिए घर, परिवार, आस पास के परिवेश को एक ऐसे माहौल तैयार करना चाहिए ताकि बच्चे रुचि और मन लगाकर सीख सके इसके लिए संस्था प्रमुख होने के नाते माता - पिता, समुदाय, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ मिलकर इस दिशा में काम करना होगा।

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  58. समुदाय ,परिवार , आंगन बाड़ी , शिक्षा अधिकारियों ,व शिक्षकों से मिलकर काम करना होगा। आंगनबाड़ी ,बाल वाटिका व स्कूल में ऐसा परिवेश निर्मित करना होगा जो बच्चों को रुचिकर लगे और वह वहां के माहौल में सहज हो सके।

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  59. 3-9 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की बात करे तो उनके लिए उनके स्तर के अनुसार ,रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा । क्योंकि बच्चों को सीधे -सीधे सिखाने की अपेक्षा खेल-खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी, पालको, SMC मेंबरों, तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापित करना होगा।

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  60. बच्चों के विकास के लिए उनके अभिभावकों से मिलकर उनकी स्थिति से अवगत करा कर जो भी उचित मार्ग अपनाना पड़े उसे मैं अपनाऊंगा । साथ ही गांव के सरपंच और शाला विकास समिति के अध्यक्ष से भी मिलकर उनका परामर्श लेकर उनका सहयोग लूंगा।।।

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  61. 3 से 9 वर्ष आयु के बच्चों को बात करें तो उनके लिए उनके स्तर अनुसार उनकी रुचि को दृष्टिगत रखते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा क्योंकि बच्चों को सीधे-सीधे सिखाने के अपेक्षा खेल खेल में सिखाने की ढांचा व्यवस्थित करनी होगी पालको एसएससी मेंबरों तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से सीधे समन्वय स्थापित करना होगा

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  62. 3-9वर्ष के बच्चों को सीखने के लिये उनके माता पिता से बात करेंगे

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  63. बच्चों के सिखाने के लिए खेल खेल के साथ उनकी रुचियों को ध्यान में रखते हुए smc के सदस्यों के सहयोग से अच्छा शैक्षणिक वातावरण का निर्माण करेंगे l

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  64. बच्चों को सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें उचित परिवेश के साथ-साथ आवश्यक शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध कराने की जरुरत होगी।जिससे वे बिना परेशानी के आसानी से सीख सके।

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  65. सहायक सामग्री, उचित परिवेश आवश्यक है

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  66. सर्व प्रथम बच्चे का आकलन कर हम बच्चे का पूर्व ज्ञान को समझेगा ।इसके बाद उसको भाषा एवं गणित की समझ विकसित करने के लिए चित्र कार्ड से पता करेगे की बच्चे समझ ,उन्हीं चित्रों को गिनने को कहा जायेगे ।
    शरीर के अंगो को गिनने को कहा जाएगा ।घिरे धीरे एक एक सीढ़ी हमे चढ़ना होगा कोई भी स्टेप छूटने नहीं देना है।

    3 से 9 वर्ष की अवधि में बच्चो की जिज्ञासा अत्यधिक रहता है जिसको हम ध्यान रखना है।

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  67. Bachcho ko sikhane ke hame unke staranusar gatividhi ko chunna hoga sath bachche kaise sochte v sikhte hai ko dhyan me rakhna hoga sath hi palko se sampark kar unhe bhi bachco ke sikhne me bhagidar banane ka pryas karenge

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  68. उस उम्र में बच्चों को अक्षरों का ज्ञान तथा खेलकूद में ज्यादा ध्यान दिया जाता है। एक परिणाम जो किसी बच्चे की स्थिति बताएं बताता है उचित पोषण, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक सतर्कता देना चाहिए।

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