कोर्स 04 (FLN) गतिविधि 2 : अपने विचार साझा करें
कोर्स 04
गतिविधि 2 : विद्यालयी जीवन - अपने विचार साझा करें
शिक्षक/शिक्षिका के रूप में उन परेशानियों के बारे
में विचार कीजिए, जिनका सामना आप अक्सर विद्यालय में करते हैं! यह सोचने की कोशिश करें
कि विद्यालय प्रबंधन और माता-पिता के माध्यम से किन समस्याओं का समाधान किया जा सकता
है तथा किस प्रकार इन लोगों से संपर्क कर अपनी परेशानी बताई जाए ताकि बेहतर स्थिति
प्राप्त हो सकें। अपने विचार साझा करें।
यदि माता-पिता बच्चे के पढ़ाई के संबंध में रुचि नहीं लेते हैं तो अक्सर भी विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठकों में भी नहीं आते हैं और ना ही बच्चे से संबंधित कोई समस्या शेयर करते हैं या अपने आर्थिक परिवारिक जो समस्याएं जो बच्चे को प्रभावित करते हैं उसके बारे में भी चर्चा इत्यादि नहीं करते हैं जिससे शिक्षक उन पहलुओं से अनभिज्ञ रहता है अतः हम कह सकते हैं कि यहां पर अभिभावकों को सहयोग करना चाहिए
ReplyDeleteMohammad Faheem(Shikshamitra)
DeleteP. S. Shekhana Nagram, Block Mohanlalganj, District Lucknow, (U.P.)
Adhiktar chhatro ke abhibhawak /palak Krishak(farmer) & shramik varg se hone ke karan na to unka school se samanjasy/tartamy ho pata hai aour na hi shikshak ka samanvay unke palko se ho pata hai.
Atah bachcho ke abhibhawak nikat ke shahar(city) me majdoori karne ke liye chale jate hai. Aksar yeh bhi dekhne me aaya hai ki kuchh abhibhawak mitti(clay) ka kary karte hai. Jab tyoharo jaise " Dipawali" aadi(e.t.c.) ka mela( mahotsaw) lagta/ aayojit hota hai to wo usme apne bachcho ko lekar chale jaate hai.
Uparyukt (above) varnit samasyaae chhatro(scholors) ke shaikshanik wa shaikshik dristi se pichhdepan ka karan banti hai.
Thank so muck
बच्चों के लिए प्रथम पाठशाला परिवार होती है अतः बहुत कुछ अपने माता-पिता से सीख करके बच्चा विद्यालय आता है।
DeleteBachchon ki har choti se choti jankari palak hi de sakte hai smc bhi palkon se hi banta hai aur bachchon ke star ke bare me palkon ko bhi pata hona chahiye
Deleteबच्चों के लिए प्रथम पाठशाला परिवार होती है अतः बहुत कुछ अपने माता-पिता से सीख करके बच्चा विद्यालय आता है।
ReplyDeleteSchool me absent rahne wale students, school se bhaag jane wale students, study me ruchi nahi rakhane wale students& parents, subject ke karya purna nahi karne walon ke sath hamesha prablem hoti hai..yadi smc & parents help kare to in problem ko dur kiya ja sakta hai.
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याए अलग-अलग होती है।अतः उन समस्याओ को जानने के लिए पार्को से मिलकर ही उन समस्याओ को दूर किया जा सकता है।
ReplyDeleteअधिकाँश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते और न ही दिन में उन से संपर्क ही हो पाता है।वे नजदीक के शहर में मजदूरी करने जाते है।
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याए अलग-अलग होती है।अतः उन समस्याओ को जानने के लिए पार्को से मिलकर ही उन समस्याओ को दूर किया जा सकता है।
DeletePalkon Ki sahayata se Shikshak acchi Tarah Se bacchon Ki samasyaon ko suljha sakte hain
Deleteअधिकांश अभिभावक श्रमिक वर्ग के होते हैं जिस से संपर्क करने में मुश्किल होता है वे अपने बच्चों के बारे में स्कूल से कभी संपर्क नहीं कर पाते हैं और ना ही मुझसे संपर्क हो पाता है क्योंकि वे खासकर मजदूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं। जब भी मजदूरी करने जाते हैं साथ में अपने बच्चों को भी ले जाते हैं जिससे बच्चा लंबे समय तक स्कूल नहीं आ पाता है और शैक्षिक दृष्टि पीछे हो जाते हैं।
Deleteहमारे स्कूल के
ReplyDeleteअधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
विद्यालय में रखी जाने वाली बैठक में अभिभावक सम्मिलित नहीं होते हैं और अपनी तथा बच्चों की समस्याओं को शेयर नहीं करते हैं तो छात्रों के घरु गतिविधि के बारे में हम शिक्षकों को पता नहीं चल पाता और हम भी अपनी समस्या अभिभावकों को साझा नहीं कर पाते हैं अतः अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए बालक पालक और शिक्षक में पारस्परिक संबंध और साझेदारी का होना आवश्यक है ।
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे के माता पिता श्रमिक वर्ग से होते है जिसकी वजह वे मजदूरी करके शाम तक वापस आते है। स्कूल में चर्चा प्रिचार्चा में शामिल नहीं हो पाते है।
ReplyDeleteग्रामीण परिवेश में अधिकांश बच्चों के माता पिता अपने कामकाज एवम् शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी के कारण बच्चों के शिक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते और उनको शाला की PTA,SMC की बैठको में बुलाए जाने पर वे नहीं आते फलस्वरूप बच्चों से सम्बंधित समस्यायों/कठिनाइयों का समाधान नहीं हो पाता जिससे बच्चों की प्रगति प्रभावित होती है अतः पलकों को बच्चों के शिक्षा के प्रति जागरूक रहना चाहिए और बच्चों से सम्बंधित समस्या/कठिनाई को शिक्षकों के साथ मिलकर समाधान करना चाहिए।
ReplyDeleteBachcho ki pratham paathshala parivar hota hai isliye parivar ki bhasha avm purv anubhav ka dhyan rakhana chahiye
ReplyDeleteअधिकांश बच्चे के माता पिता श्रमिक वर्ग से होते है जिसकी वजह वे मजदूरी करके शाम तक वापस आते है। स्कूल में चर्चा में शामिल नहीं हो पाते है।
ReplyDeleteबच्चो के विकाश में सामुदायिक सहभागिता का महत्वपूर्ण योगदान प्राप्त होता है।लेकिन बच्चो के माता पिता का यह विचार की बच्चो को सुधारना स्कूल शिक्षक का काम है, शिक्षक जैसे भी हो हमारे बच्चे को पढ़ाये और सुधारें इसके साथ हे अधिकतर माता पिता का PTM में अनुपस्थित रहना हमारे उद्देश्य में महत्वपूर्ण रुकावट है।
ReplyDeleteबच्चो की मनःस्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं साथ ही उनमें शाला के लिए स्वछंद माहौल तैयार कर उनके लिए उनकी अभिव्यक्ति को विकसित किया जा सकता हैं
ReplyDeletePalko ka sahyog nhi mil pata fir bhi hum unhe prarit karte hai or sahyog lete hai
ReplyDeleteपालकों के शिक्षा के प्रति किन्ही कारणों से उदासीनता के कारण वे शैक्षिक गतिविधियों मे बच्चों से नहीं जुड़ पाते...
ReplyDelete
ReplyDeleteअधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
Mata pita ke sahyog se bach ho ki vibhinn samasyao ka samadhan kiya ja sakta hai .
ReplyDeleteबच्चे जब शुरुआत में शाला आते हैं ,जैसे-जैसे समय गुजरता है तो समस्याएं भी कम होने लगते है।समस्याएं तब अधिक आती है जब बच्चे स्कूल नही आते।ऐसे मे पालकों से प्रत्यक्ष रुप से मिलकर ही समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
Deleteसभी बच्चों की समस्याएं अलग-अलग होती है। कमजोर बच्चों के पालक शिक्षक से मिलते नहीं है।
ReplyDeleteयदि माता-पिता बच्चे के पढ़ाई के संबंध में रुचि नहीं लेते हैं तो अक्सर भी विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठकों में भी नहीं आते हैं और ना ही बच्चे से संबंधित कोई समस्या शेयर करते हैं या अपने आर्थिक परिवारिक जो समस्याएं जो बच्चे को प्रभावित करते हैं उसके बारे में भी चर्चा इत्यादि नहीं करते हैं जिससे शिक्षक उन पहलुओं से अनभिज्ञ रहता है अतः हम कह सकते हैं कि यहां पर अभिभावकों को सहयोग करना चाहिए
Deleteकई बच्चों के माता पिता अन्य शहर या राज्यो में कमाने चले जाते है।बच्चो को बुढ़े दादा दादी या अन्य रिश्तेदार के यहां छोड़ गए हैं।इस बीच कई बच्चे मामा के घर जाकर रह जाते है ।अभिभावक से सतत संपर्क करने पर अपनी सुविधानुसार शाला में उपस्थिति कराते हैं।
ReplyDeleteखास तौर पर हमारे सरकारी विद्यालयों में आने वाले अधिकांश बच्चे दिहाड़ी मजदूरी करने वाले या कृषि से जुड़े हुए परिवार, परिवेश के बच्चे होते है। और इन बच्चों को शिक्षण अधिगम की क्रिया में हम शिक्षको के द्वारा ही एक तरफा प्रयास होता है, इसीलिए बच्चों का सीखने का स्तर कमजोर होता है। यदि कुछ प्रयास पालकों के द्वारा भी होता तो प्रायः अधिकांश बच्चे का स्तर बहुत अच्छा होता। बहुत बार ऐसा भी होता है कि पलकों से से संपर्क भी नही हो पाता क्योंकि घरों में ताले लगे होते है।
ReplyDeleteबच्चों के लिए प्रथम पाठशाला परिवार होती है अतः बहुत कुछ अपने माता-पिता से सीख करके बच्चा विद्यालय आता है।अधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
ReplyDeleteपहली तो बच्चों की लगातार उपस्थिति पर ध्यान देना होगा जिसके लिए विद्यालय प्रबंधन समिति का हम सहयोग ले सकते हैं कि वे अपने बच्चों को भेजने का प्रयास करें साथ ही बच्चों की पढ़ाई पर बात करें तो नियमित रूप से जो गृहकार्य देते हैं उसमें पालक सहयोग करें जिससे बच्चे जो स्कूल में पढ़े हैं वह पूरी तरह उनके दिमाग में स्थाई रूप से रह सके।
ReplyDeleteअधिकांश बच्चों के माता-पिता मजदूरी करने जाते हैं और क ई माता-पिता पढ़ाई का महत्व ही नहीं समझ पाए हैं
ReplyDeleteबच्चों की कक्षा में नियमित उपस्थिति न हो पाना आम समस्या है।पालक संपर्क के बावजूद स्थिति में सुधार न हो पाना चिंता का विषय है।कुछ बच्चों के पालक श्रमिक वर्ग के होते हैं जो अपनी बच्चों के बारे में ज्यदा ख्याल नहीँ रखते हैं।बहुत से बच्चों से पूछने पर पता चलता है कि उनके माता-पिता उन्हें घर की देखरेख की जिम्मेदारी सौपकर काम में निकल जाते हैं।घर में माता-पिता उनके प्रथम गुरु होते हैं अतः विद्यालयी शिक्षा में उनकी संलिप्ता बेहद ज़रूरी है।
ReplyDeleteदादू सिंह तोमर
सहाशिक्षक
प्रा शा जोगीसार(GPM)
विद्यालय में बच्चों के सर्वांगीण विकाश का दायित्व सभी पर होता है। जिसके लिए हमें सभी आस पास के वातावरण से सहयोग लिया जाना। आवश्यक हो जाता है। जैसे बच्चों के माता पिता एवम् SMC सदस्यों का जो उनके विकाश में शिक्षको का पूरा सहयोग करते है। कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिसे सुधार हेतु। सहयोग लेना पढ़ता है।
ReplyDeleteसभी पालक अपने बच्चो की जिम्मेदारी को समझकर विद्यालय के शिक्षको के साथ अपनी -अपनी विचार बताये ताकि उस समस्या का समाधान किया जाकर बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए कार्य किया जा सके। समिति के हर मासिक बैठक में सभी पालको को शामिल हों कर प्रत्येक बिन्दु पर चर्चा करना चाहिए।
ReplyDeleteपालक अगर जागरूक हो तो समस्या बहुत कम आती है।
ReplyDeleteलेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सहयोग करने की इच्छा बहुत कम पालक रखते हैं।
वे खुद व्यसन में इतने लिप्त होते हैं कि स्कूल को सहयोग कहां से करे। खासकर छत्तीसगढ़ तो व्यसन के मामले मे कीर्तिमान स्थापित कर दिया है।
बच्चों के लिए स्कूलों में शिक्षकों द्वारा विभिन्न प्रकार के गतिविधियां संचालित किया जाता है। ताकि अधिगम बेहतर हो और वांछित परिणाम एवं कौशल विकास प्राप्त हो सके। कुछ कठिनाइयां आती है तो शिक्षक अपने स्तर पर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं लेकिन बिना पालक समुदाय के सहयोग बिना पूर्णतः सफलता प्राप्त नहीं होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पालक समुदाय को अपने कार्य व्यवसाय में व्यस्तता अधिक है जिसके कारण न ही अपने बच्चों को और न ही शाला में शिक्षकों को मिलने का समय एवं सहयोग दे पाते हैं। जिसके कारण समस्या ज्यों का त्यों बनी रहती है।
ReplyDeleteबच्चो की रूचि और पारिवारिक परिस्थिति को समझ पाने मे दिक्कतो का सामना करना पड़ता है।परिवार से सम्पर्क कर यह समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
ReplyDeletePalak bachcho ke padai se nhi jud pate hai is karan unhe bachcho ke shaikshnik gatividhi ke bare me pta hi nhi hota or ese palak shikshak ke sampark me bhi nhi rah pate
ReplyDeleteबच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए माता पिता की सहभागिता अवश्य ही होना चाहिए
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याएं अलग-अलग होती है अतः उन समस्याओं को जानने के लिए उनके पालकों से सम्पर्क कर उन, समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteपालको का बच्चों की पढ़ाई के प्रति ध्यान न देना लम्बी अनुपस्थिति स्कूल न आना स्कूल से भाग जाना ।
ReplyDeleteप्रत्येक बच्चे की सीखने का स्तर अलग-अलग होता है,कहाँ पर ज्यादा ध्यान की आवश्यकता है,इससे माता-पिता को अवगत कराया जा सकता है ।इससे अच्छे परिणाम आएगा ।धन्यवाद
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याए अलग-अलग होती है।अधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याएँ अलग-अलग होती है।विद्यालय प्रबंधन और माता-पिता के माध्यम से बच्चों के कई समस्याओ का समाधान किया जा सकता है,परंतु अधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो सम्पर्क के लिए स्कूल आते हैं और न ही दिन में उससे संपर्क हो पाता है।
ReplyDeleteविद्यालय में बैठक में पालक उपस्थित नहीं होते क्योंकि अधिकांश पालक कृषक और गरीब वर्ग के हैं और उन्हें प्रतिदिन खेती और मजदूरी के लिए बाहर जाना पड़ता है और उनसे संपर्क नहीं हो पाता घर का वातावरण भी पढ़ाई के लिए उपयुक्त नहीं है अतः अच्छे परिणाम के लिए विद्यार्थी पालक और शिक्षक को आपस में सार्थक साझेदारी बनाने आवश्यक है
ReplyDeleteStudents palk and teachers sbhi ko aapsi samnjsya and good bonding bnana hoga
ReplyDeletePrtiak students ka samsya alg alg hai
Hme aaps me Milkr sikcha k prti abhiruchi jagrit krna hai
बच्चो की नियमित उपस्थिति को अभिभावक के साथ बात कर बढ़ाया जा सकता है।
ReplyDeleteविद्यालय में रखी जाने वाली बैठक में अभिभावक सम्मिलित नहीं होते हैं और अपनी तथा बच्चों की समस्याओं को शेयर नहीं करते हैं तो छात्रों के घरु गतिविधि के बारे में हम शिक्षकों को पता नहीं चल पाता और हम भी अपनी समस्या अभिभावकों को साझा नहीं कर पाते हैं अतः अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए बालक पालक और शिक्षक में पारस्परिक संबंध और साझेदारी का होना आवश्यक है ।
ReplyDeleteनाम- श्री खुशहाली सोनी
संकुल- खजूरी
P/s dhabadih
पालक वर्ग मजबूर है वह अपने आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं इस कारण बच्चे और स्कूल के प्रति ध्यान नहीं दे पाते पालक वर्क का स्कूल में पहुंचना होने कारण अपने काम के वजह से वह पूरा समय नहीं दे पाते इस कारण पालक व शिक्षक वर्ग सभी को मिलजुल कर काम करना होगा
ReplyDeleteसतत् संपर्क कर व समस्या पर विचार कर पारस्परिक रूप से ।
ReplyDeleteZyadatar palak mazdoori karte hai isliye PTM me nai a pate aur na hi baccho ki padhai me help kar pate , agar we bhi bachho ko ghar me padhaye to bache aur behtar kar sakte hai.
ReplyDelete, 2021 at 6:37 AM
ReplyDeleteहमारे स्कूल के
अधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
अक्सर, अभिभावक, ग्रामीण क्षेत्र से हैं, अपनी आर्थिक स्थिति से कमजोर है, दिन महीना उसी में जुटे रहते हैं अपने जीविका उपार्जन, और शिक्षित भी नहीं रहते, तो स्कूल स्तर बैठक का, सम्मिलित नहीं हो पाते जिसे भी अपने बच्चे का, कमजोरी नहीं पकड़ पाते और वह घर में, स्कूल की पढ़ी हुई दोबारा रिवीजन नहीं कर पाते, इसलिए बच्चे पिछड़ जाते हैं, इससे शिक्षक शिक्षिकाओं को भी, परेशानी होती है बार बार कहने पर भी सुझाव देने पर भी, बैठक व समाज संवाद नहीं करते, और बच्चे के लिए सजग नहीं हो पाते, और कुछ अभिभावक, दूर शहर में आर्थिक उपार्जन के लिए, शहर में भी रहते हैं इसलिए उनसे सामंजस्य संबंध, शिक्षक और बच्चों के साथ नहीं हो पाता है, संवाद होना बहुत ही आवश्यक है अभिभावकों से,
ReplyDeleteTeklal sahu,p/s-khairkhunta,mahasamund, chhattisgarh
ReplyDeleteसभी बच्चों की परिवारिक परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं।हमें उसी हिसाब से सभी बच्चों के अभिभावकों से सामंजस्य बना कर चलना होगा।घर में पालक नहीं मिलते कहने मात्र से समस्याओं का समाधान होने वाला नहीं हैं।हम smc के सदस्यों का या फिर पड़ोसियों का या जागरूक युवा का सहयोग ले सकते हैं जो इन कार्यों को करने के इच्छुक हैं और बिलकुल कोई न कोई ऐसे व्यक्ति मिल ही जाते हैं जो "सर्व हिताय-सर्व सुखाय" को ध्यान में रखकर कार्य करतें हैं।कुछ पालक कामकाजी होने के कारण नहीं मिल रहें हैं उनसे हमारे वो स्वयं सेवी मिलकर हमारा काम कर सकते हैं।हमारे प्रयास से निश्चित रूप से तीनों के बीच समन्वय बनाकर बच्चों की सर्वांगीण विकास किया जा सकता हैं।
All children have different thinking abilities, as well as the family environment also affects the children, who should solve the problem with the parents meeting.
ReplyDeleteसभी पालको को विद्यालय परिसर में आयोजित पालक शिक्षक बैठक में सम्मलित होनी है और प्रति बैठक प्रति माह संपन्न होनी चाहिए जिसमे बच्चो के प्रति जुड़ाव व शिक्षकों को बच्चो को पढ़ाने वाली शैली ,पालको के सुझाव दोनों संपन्न होनी चाहिए
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याएं अलग अलग होती हैं। अतः उन समस्याओं को जानने के लिए पलकों से मिलकर ही समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चे कभी ऐसे रिएक्ट करते हैं,रोते रहते है,पलक से संपर्क करने पर वे बताते है स्कूल ही नहीं आना चाहता। भय लगता है।प्यार से समझएं जाने पर कुछ समय रहता है।
ReplyDeleteकुछ बच्चे का स्वभाव शैतानी का ही, वे अपनी कक्षा में ही नहीं रुकते,अन्य कक्षा मै घूमते रहते रहते हैं।
पालक कहते है,घर में भी ऐसा ही करता है।
पालक कुछ सुझाव देते है हैं।
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ReplyDeleteबच्चों के लिए प्रथम पाठशाला परिवार होती है अतः बहुत कुछ अपने माता-पिता से सीख करके बच्चा विद्यालय आता है सभी पालको को विद्यालय परिसर में आयोजित पालक शिक्षक बैठक में सम्मलित होनी है और प्रति बैठक प्रति माह संपन्न होनी चाहिए जिसमे बच्चो के प्रति जुड़ाव व शिक्षकों को बच्चो को पढ़ाने वाली शैली ,पालको के सुझाव दोनों संपन्न होनी चाहिए
ReplyDeleteहमारे स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश छात्रों के पालकगण फैक्ट्री में काम करते हैं जिसकी वजह से उनसे कम मुलाकात होती है । छुट्टी के दिन उनसे मिल कर उन्हें जानकारी देनी पड़ती है।बच्चों का जुड़ाव अपनी माता से अधिक होता है। माताऐं घर में उपलब्ध सामग्री से अपने बच्चों को सिखा सकती हैं।
ReplyDeleteबच्चों के माता पिता मजदूरी करते हैं या खेती करते हैं वे बच्चों को गाय बैल, बकरी चराने के काम मे लगा देते है जिसके कारण बच्चे नियमित स्कूल नहीं आते जिसके कारण उनकी पढा़ई में मन नहीं लगता |
ReplyDeleteअजीत चौहान
कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
ReplyDeleteपालक बच्चों के साथ पढाई के लिए नहीं कहते या उनके साथ नहीं बैठते सिर्फ स्कूल के भरोसे ही रहते हैं
ReplyDeleteशिक्षक और पालक का परस्पर संवाद अति आवश्यक है। बच्चों को समस्याओं को दूर करने बच्चों की गतिविधियों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है।
ReplyDeleteTeacher parents and students me samnvay bahut jaruri hai.eske abhav me hme apne lakshy tk nhi phuch pate
ReplyDeleteज्यादातर पालक Ptm मे शामिल नही होते है, साथ ही वे यह जानने मे रूचि नही लेते कि आखिर बच्चों को शाला में क्या पढ़ाया जा रहा है, क्या गृहकार्य दिया गया है बच्चा गृहकार्य करके शाला गया है या नही। शालेय गतिविधियों में पालकों की उदासीनता बच्चों के शैक्षणिक विकास में बाधक बनती है, अगर पालक जागरूक हो जाए तो सीखने- सिखाने से जुड़ी समस्याओं का हल यूं ही निकल आएगा। Smc और माता पिता मासिक बैठकों मे चर्चा करके बच्चों के सीखने मे आने वाली मुश्किलों का हल निकालें, कई बार पालकों से भी सीखने के नए तरीकों के बारे मे पता लगता है जिससे शिक्षकों को मदद मिलती है। पालक अपने बच्चे के बारे में बात करें कि उसे किस विषय और किस अवधारणा पर समझ बनाने में दिक्कत आ रही है और क्यों आ रही है।
ReplyDeleteस्कूल में बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षक तथा पालक का परस्पर संवाद अति आवश्यक है परंतु किन्ही कारणों से पालक स्कूल तक आने में तथा बच्चों की पढ़ाई के संबंध में जानकारी लेने में रुचि नहीं लेते जिसके चलते शिक्षक बच्चों की घर की गतिविधियों को जान नहीं पाते तथा बच्चों के बारे में पालकों से चर्चा ना होने से बच्चों की गतिविधियों का पता नहीं चल पाता|
ReplyDeleteकई बच्चे लंबी अनुपम प्रीति के चलते कमजोर हो जाते हैं परंतु पालक फिर भी ध्यान नहीं देते उनकी सोच में शिक्षक प्रतिदिन बच्चों को घर से बुलाकर ले जाने वाली धारणा रहती है शिक्षक बच्चों के घर तक जाकर उन्हें प्रतिदिन लेकर आए या अपनी शैक्षणिक गतिविधि के अंतर्गत बच्चों को पढ़ाएं|
कुछ वर्षों पहले जब विद्यार्थी किताब कॉपी स्कूली गणवेश की खरीदी स्वयं करते थे तो उनका कदर भी किया करते थे परंतु आज स्थिति यह हो गई है की सारी सुविधा निशुल्क होने के बाद भी पालक बच्चों की पढ़ाई के लिए कम से कम एक घंटा भी नहीं निकाल पा रहे हैं |
यदि पालक बच्चों को जितना कक्षा में पढ़ा जाता है उसका ही एक बार रिवीजन घर पर करा दें तो ऐसा कोई बचा नहीं जो कमजोर हो जाए|
धन्यवाद्
बच्चों के लिए स्कूलों में शिक्षकों द्वारा विभिन्न प्रकार के गतिविधियां संचालित किया जाता है। ताकि अधिगम बेहतर हो और वांछित परिणाम एवं कौशल विकास प्राप्त हो सके। कुछ कठिनाइयां आती है तो शिक्षक अपने स्तर पर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं लेकिन बिना पालक समुदाय के सहयोग बिना पूर्णतः सफलता प्राप्त नहीं होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पालक समुदाय को अपने कार्य व्यवसाय में व्यस्तता अधिक है जिसके कारण न ही अपने बच्चों को और न ही शाला में शिक्षकों को मिलने का समय एवं सहयोग दे पाते हैं। जिसके कारण समस्या ज्यों का त्यों बनी रहती है।
ReplyDeleteSharad Kumar Soni
Primary School Mahora
Baikunthpur
सभी बच्चों की परिवारिक परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं।हमें उसी हिसाब से सभी बच्चों के अभिभावकों से सामंजस्य बना कर चलना होगा।घर में पालक नहीं मिलते कहने मात्र से समस्याओं का समाधान होने वाला नहीं हैं।हम smc के सदस्यों का या फिर पड़ोसियों का या जागरूक युवा का सहयोग ले सकते हैं जो इन कार्यों को करने के इच्छुक हैं और बिलकुल कोई न कोई ऐसे व्यक्ति मिल ही जाते हैं जो "सर्व हिताय-सर्व सुखाय" को ध्यान में रखकर कार्य करतें हैं।कुछ पालक कामकाजी होने के कारण नहीं मिल रहें हैं उनसे हमारे वो स्वयं सेवी मिलकर हमारा काम कर सकते हैं।हमारे प्रयास से निश्चित रूप से तीनों के बीच समन्वय बनाकर बच्चों की सर्वांगीण विकास किया जा सकता हैं।
ReplyDeleteSharad Kumar Soni
Primary School Mahora
Baikunthpur
Baikunthpur
सभी बच्चों की समस्या अलग अलग होती है अतः पलकों से मिलकर ही उन समस्याओं का समाधान हो सकता है
ReplyDeleteहमारी शाला में पालक की सहभागिता के लिए मातृत्व समेल्लन करवाया और जब मताये आई तो उनके साथ बच्चो के अधिगम और अन्य विषयो पर चर्चा की गई
ReplyDeleteअधिकाँश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते और न ही दिन में उन से संपर्क ही हो पाता है।
ReplyDeleteबच्चे अपने माता - पिता से बहुत कुछ सीख कर आते हैंं। बच्चों की कक्षा में नियमित उपस्थिति न हो पाना आम समस्या है।पालक संपर्क के बावजूद स्थिति में सुधार न हो पाना चिंता का विषय है।कुछ बच्चों के पालक श्रमिक वर्ग के होते हैं जो अपनी बच्चों के बारे में ज्यदा ख्याल नहीँ रखते हैं।बहुत से बच्चों से पूछने पर पता चलता है कि उनके माता-पिता उन्हें घर की देखरेख की जिम्मेदारी सौपकर काम में निकल जाते हैं।घर में माता-पिता उनके प्रथम गुरु होते हैं अतः विद्यालयी शिक्षा में उनकी सहभागिता भी बेहद ज़रूरी है।
ReplyDeleteबच्चों के लिए प्रथम पाठशाला परिवार होता है। बच्चे परिवार से बहुत कुछ सीखकर विद्यालय आता है।
ReplyDeleteबच्चों की पहली पाठशाला परिवार ही होता है । परिवार से ही बहुत कुछ सीखकर विद्यालय आता है।
ReplyDeleteबच्चों की पहली पद्दसाला परिवार ही होता है
ReplyDeleteग्रामीण परिवेश में अधिकांश बच्चों के माता पिता अपने कामकाज एवम् शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी के कारण बच्चों के शिक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते और उनको शाला की PTA,SMC की बैठको में बुलाए जाने पर वे नहीं आते फलस्वरूप बच्चों से सम्बंधित समस्यायों/कठिनाइयों का समाधान नहीं हो पाता जिससे बच्चों की प्रगति प्रभावित होती है अतः पलकों को बच्चों के शिक्षा के प्रति जागरूक रहना चाहिए और बच्चों से सम्बंधित समस्या/कठिनाई को शिक्षकों के साथ मिलकर समाधान करना चाहिए।
ReplyDeleteहमारी शाला में पालक की सहभागिता के लिए मातृत्व समेल्लन करवाया और जब मताये आई तो उनके साथ बच्चो के अधिगम और अन्य विषयो पर चर्चा की गई
बच्चों के द्वारा होमवर्क पूर्ण न करना, पालकों से बात करके बच्चों को नियमित होमवर्क पूर्ण करने हेतु मद्द करने का सलाह व नहीं समझने पर शिक्षक से सम्पर्क करने को कहकर, समस्या को हल किया जा सकता है, इस प्रकार पालक भी बच्चों के सीखने में सहयोग कर सकते हैं
ReplyDeleteविद्यालय में रखी जाने वाली बैठक में अभिभावक सम्मिलित नहीं होते हैं और अपनी तथा बच्चों की समस्याओं को शेयर नहीं करते हैं तो छात्रों के घरेलू गतिविधि के बारे में हम शिक्षकों को पता नहीं चल पाता और हम भी अपनी समस्या अभिभावकों को साझा नहीं कर पाते हैं। अतः अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए बालक पालक और शिक्षक में पारस्परिक संबंध और साझेदारी का होना आवश्यक है ।
ReplyDeleteसभी बच्चों की समस्याए अलग-अलग होती है।अतः उन समस्याओ को जानने के लिए पालकों से मिलकर ही उन समस्याओ को दूर किया जा सकता है।
ReplyDeleteपेरेंट्स मीटिंग में अधिकांश पालक उपस्थित नहीं होते क्योंकि अधिकांश पालक सीमांत कृषक और मजदूर वर्ग के हैं और उन्हें प्रतिदिन खेती और मजदूरी के लिए बाहर जाना पड़ता है । घर का वातावरण भी पढ़ाई के लिए उपयुक्त नहीं है । पालक बच्चों का होमवर्क भी नहीं देखते। अतः अच्छे परिणाम के लिए विद्यार्थी पालक और शिक्षक को आपस में सार्थक साझेदारी बनाने आवश्यक है।
ReplyDeleteHmare bcche aise ghro se aate h jha parents ghro ko tala a k chle jate h baccho ko school k bhrose chod kr isliye mera parents se baccho ko pdane ki ummid glat h ...
ReplyDeletePrantu parents ko apne baccho ko sirf bithajye0 ttha ptidin schoolbhej
अधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
ReplyDeleteOk
ReplyDeleteबालक,पालक,शिक्षक तीनों की सहभागिता
ReplyDeleteबच्चों के लिए प्रथम पाठशाला परिवार होती है अतः बहुत कुछ अपने माता-पिता से सीख करके बच्चा विद्यालय आता है सभी पालको को विद्यालय परिसर में आयोजित पालक शिक्षक बैठक में सम्मलित होनी है और प्रति बैठक प्रति माह संपन्न होनी चाहिए जिसमे बच्चो के प्रति जुड़ाव व शिक्षकों को बच्चो को पढ़ाने वाली शैली ,पालको के सुझाव दोनों संपन्न होनी चाहिए
ReplyDeleteBacchon ke liye ghar hi unke Pratham Paathshala hota hai abhibhavakon ki bhi jimmedari hoti hai ki shikshakon ke साथ-साथ bacchon ke Vikas ke Madhyam se bacchon ka Vikas Mein Unki buniyadi Saksharta aur sankhya Gyan prapt karne mein Sahyog Karen
ReplyDeleteहमारे स्कूल के
ReplyDeleteअधिकांश पालक श्रमिक वर्ग से होने के कारण वे न तो संपर्क के लिए स्कूल आ पाते हैं और न ही दिन में उनसे संपर्क ही हो पाता है। क्योंकि वे नजदीक के शहर व खेतों में मजदूरी करने जाते है।कुछ पालक ऐसे भी है, जो शहर में रहकर मजदूरी करते हैं, और अपने साथ बच्चे को भी ले जाते हैं,इस कारण बच्चे लम्बे समय तक स्कूल नहीं आ पाते , जिससे वे शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।