कोर्स 05
गतिविधि 5 : सहपाठियों की भूमिका - अपने विचार साझा करें
अपने किशोरावस्था के वर्षों के बारे में सोचें जब
आपने अपने दोस्तों द्वारा मज़ेदार लागने वाली चीजों को करने की कोशिश की, जैसे चोरी
करना, ड्रग्स लेना या धूम्रपान करना। ऐसीस्थिति में आपने क्या किया? आपके विचार, भावनाएं
और रणनीतियां क्या थीं? ब्लॉग पोस्ट में अपने विचार साझा करें।
at the young age we formed a group and those who didn't gave us donation for holi .we trace passed to their house and plucked fruits and fire wood.
ReplyDeleteI was in studing in 11th class ,some time reading in seriously ,some time looked like a beautiful girl , some time to helped cooking with my family and some time to normal discussed about gossip.
DeleteWhen I was in 10th class, I had a friend it was well built very strong and more mature than me. Everybody in the class afraid of him, he used to chew talab rajshri tobeco blended pouches and so did I. One of my teacher noticed this and one day hi talked to me. On the same day I decided to Tu to leave such friendship and bad habits I still thank my teacher.
ReplyDeleteNityanand Puri Goswami
GHS kharkena
अपनी किशोरावस्था में ऐसा कभी नही किया है।
ReplyDeleteकिशोरावस्था के दौरान लगभग सभी छात्रों को इन विसंगतियों से गुजरना पड़ता है, लेकिन सही समय में बच्चों पर ध्यान देने से एवं उचित मार्गदर्शन से इन सभी समस्याओं से निपटा जा सकता है।
ReplyDeleteसभी किशोरावस्था क़े छत्रों को इसीतरह ki कठिनाई। से गुजरना होता है
Deleteसही है
Deleteसामन्यता देखा जाता हैं कि किशोरावस्था में 90% लडकियों को ऐसी स्थिति का सामना नही करना पड़ता है किन्तु 90% लडकों को इस परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता हैं ऐसी स्थिति में उन्हें संभालने के लिए एक शिक्षक की भूमिका बहुत अहम होती है|
ReplyDeleteमेरे स्कूल सहपाठी काफी अच्छे रहे है मै भी बुराईयो से दूर रही हू। हा थोडी मस्ती करते जैसे कोई दो लोग बैठे है तो पीछे से उनका दुपट्टा एक दुसरे के दुपटटे से बाँध देते। यहा पर मै एक अच्छी लड़की का रोल अदा करती और उनको इशारा कर देती। कोई दो दोस्त मे बातचीत नहीं हो रही हो तो मिलाने का प्रयास करते।
ReplyDeleteमेरे सहपाठी जिनके साथ मै रहती थी सभी अच्छे थे 1-2 लोग थे जो चोरी करते थे हम लोगो ने उसे समझाया,, अगर तुमने यह गन्दी चीज नहीं छोड़ी तो हम उनके साथ नहीं रहेंगे साथ ही साथ उसके परिवार को भी समझाया। कुछ ही दिनों में उसमे सुधार आ गया और चोरी करना छोड़ दिया।
ReplyDeleteमेरी किशोरावस्था में मैंने भी अपने दोस्तों तथा उनके द्वारा कही जाने वाली बातों का अनुसरण करा है मुझे आम अमरूद तथा बेर के बगीचों में चोरी करना तथा उनका साथ देना अच्छा लगता था उस समय मैं उसे बहुत सही समझती थी परंतु घर में पढ़ने वाली डांट तथा सही गलत के निर्णय ने मुझे कई बार बचा कर रखा तथा मेरी किशोरावस्था को गलत दिशा में जाने से रोक लिया
ReplyDeleteमेरी किशोरावस्था में मै भी अपने दोस्तों और उनकी बातों से प्रेरित होता था मैं भी कई बार होमवर्क की चीटिंग कक्षा बंक करके घूमना तथा छोटी मोटी खाने पीने की चीजों जैसे फलों के बगीचे में फलों को चुरा कर खाना जैसी आदतों में बड़ी खुशी से साथ दिया परंतु कहीं ना कहीं उचित मार्गदर्शन तथा परिवार के भय ने गलत दिशा में जाने से रोक दिया
ReplyDeleteVery nice interactive session.
ReplyDeleteमेरे साथ सकारात्मक सहपाठी दबाव रहा है अतः मुझे इस प्रकार किसी भी नकारात्मक कार्य की आवश्यकता नहीं हुई। मेरे और सहपाठियों के मध्य हमेशा एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा रही।
ReplyDeleteकिशोरावस्था में मेरे साथ सकारात्मक दबाव ज्यादा रहा।कुछ परिस्थितियों में सहपाठियों का नकारात्मक दबाव बना, परंपरागत पारिवारिक सोच के कारण मैं
ReplyDeleteगलत कार्य से स्वयं को बचा पाया।
गौरीशंकर यादव
प्राचार्य
शास.हाईस्कूल बुटाकसा
जिला-राजनांदगांव
किशोरा वस्था मे सकारात्मक व नाकारात्मक दबाव रहा। एक दो बार कक्षा बंक कर घुमने मे साथ दिया। परंतु बड़ो के मार्गदर्शन ने सही रस्ता दिखाया।
ReplyDeleteसहपाठियों का नकारात्मक दबाव रहा पर माता-पिता के सहयोगी प्रवृत्ति व हमारे शिक्षक के साथ मिलकर अपने विचारों से अवगत कराने के कारण हम इस नकारात्मक दबाव से बाहर आ गए व नकारात्मक प्रवृत्ति में डूबे हमारे सहपाठियों को भी हमने इस से बाहर निकालने का प्रयास किया।
ReplyDeleteसही बात है
Deleteकिशोरावस्था में किसी के प्रति पजेसिव होना आम बात होती है।जिसके वजह से झगड़ा होना आम बात होती है। उस समय गुट ज्यादा बनता था।
ReplyDeleteकिशोरवस्था छात्र जीवन का अहम् पड़ाव होता है जहाँ विद्यार्थी विविध मनोदशाओ और जैविक परिवर्तनो से होकर गुजर रहा होता है और सक्रमण के इस दौर में अपने सहपाटी या bench mate को सर्वोपरि मानता है और सकारात्मक या नकारात्मक पहलुओ का अक्षरसह अनुकरण करता है और उसे अपने परिवार और शिक्षक से ऊपर रखता है अतः सहपाठी का भी यह कर्त्तव्य बन जाता है कि सहपाठी अपने मित्र या विश्वासपात्र को भटकने न दे
ReplyDeleteमैंने अपनी किशोरावस्था मे ऐसी कुछ भी नाकारात्मक चीजें न तो अपने सहपाठियों के व्यवहार में देखी थी और न ही ऐसी विचार मन मे कभी आया था।
ReplyDeleteकिशोरावस्था विद्यार्थी जीवन का महत्व पूर्ण समय होता है । सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के व्यवहार हमारे सहपाठी की होती है ।
ReplyDeleteमुझे भी किशोरावस्था में कुछ बुरी आदतों वाले सहपाठी मिलें लेकिन मैं अपने आप को किसी अज्ञात प्रेरणा से उनके जैसा होने से बचा पाया ।आज मैं खुद ख़ुशनसीब मानता हूँ नहीं तो मैं भी बुरी आदतों में लिप्त होता ।
सुरेश कुमार मेश्राम व्याख्याता
शासकीय हाई स्कूल अमलीडीह धमतरी
मेरे पास इस समय पालकों से जुड़ाव था और बड़े भाई लोगो का इस कारण ऐसा किशोर अवस्था में इस सभी से मै दूर था
ReplyDeleteकक्षा 8वीं मे सहपाठियों संग गुडाखु घिसना सीख गया जिसका परिणाम आज तक भुगत रहा हूँ ।ब्यसन आदमी को अपने वश मे कर लेता है ऐसा उस समय कोई मार्गदर्शन नहीं मिल पाया।
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteकिशोरावस्था जीवन का एक ऐसा पढ़ाव होता है जहाँ अच्छा और बुरा दोनों होता है।
अगर संगत अच्छी मिल गई तो हमारा भविष्य बन जाता है और संगत गलत मिल गया तो फिर पूछो ही नही... जीवन बर्बाद होने में भी वक्त नही लागता।
किशोरावस्था में अपनी मन की बातों को,हम क्या महसूस कर रहे हैं इन सब बातों को अपने परिवार वालों के साथ बताने में झिझक महसूस होता है। इस अवस्था में हम अपने सखियों या दोस्तों से वह चीज शेयर करते हैं।
मेरी किशोरावस्था में मेरी सबसे अच्छी सहेली मेरी मां रही जिनसे मैंने हर चीज शेयर किया। किशोरावस्था में भी ऐसे उतार-चढ़ाव आए पर ऐसी कोई घटना नहीं है,जिसे मैं शेयर कर सकूं।
किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें हमें बड़ों की या हमारे शिक्षकों की दिशा निर्देश की आवश्यकता होती है।सही गलत की पहचान करने की क्षमता इस अवस्था में नही होती है।
श्रीमती हेमलता बोगिया
व्याख्याता(गणित)
शास. हाई स्कूल, माकड़ी
किशोरावस्था में ये लगभग सभी के साथ होता है संगती अच्छी मिल जाने पर एक नई दिशा मिल जाती है
ReplyDeleteकिशोरावस्था के दौरान अपने दोस्तों के साथ मजेदार लगने वाली चीजें तो करते थे जैसे - बीते नापना जिसका बीते सबसे छोटा होता था उससे ₹1 लेना l उस दिन का लंच टाइम में चना खिलाना उसी का होता था खुशी होती थी एक अच्छा अनुभव था साथियों के साथ प्रतिस्पर्धा होती रहती थी पर ऐसा कोई भी नकारात्मक कार्य का सामना नहीं करना पड़ा l
ReplyDeleteमेरे स्कूल के सहपाठी काफी अच्छे रहे हैं। मैं इन बुराइयों से दूर रहा हूं कुछ परिस्थितियां मैं सहपाठियों का नकारात्मक दबाव बना कई बार कक्षा बंक्कर घूमने का साथ दिया पर माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों के सही मार्गदर्शन एवं दबाव पिताजी के द्वारा हमारे एचएम से अवगत कराने के कारण नकारात्मक दबाव से बाहर आ गए साथ ही हमारे सहपाठी भी इससे बाहर निकलने का प्रयास किया।
ReplyDeleteमुझे हमेशा अपने सहपाठियों एवम् घर से सहयोग एवम् प्यार मिला अत: नकारात्मक बातो की तरफ ध्यान ही नहीं गया ।
ReplyDeleteKishoravastha me milne waala uchit margdarshan kisi bhi kishore ya kishori ko pathbhrasht nhi hone deta.ek shikshak k roop me hme kishorvay balak balikao ka uchit margdarshan karna chahiye.
ReplyDeleteनिष्ठा एप में यह जो भी समस्याएं बताई गई हैं वह इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए बहुत ही सामान्य सी चीज है। इनको इन समस्याओं से पार पाने के लिए उचित मार्गदर्शन एवं प्रेम पूर्वक व्यवहार की आवश्यकता होती है। हमारे द्वारा कक्षा में जो भी चीजें की जाती है उनमें हमें इस आयु वर्ग के बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। खून की मनोवैज्ञानिक सामाजिक एवं विभिन्न प्रकार की अवस्थाओं का ध्यान रखकर ही शिक्षण की विधियां संपूर्ण की जानी चाहिए तभी शिक्षण अपने आप में परिपूर्ण हो पाएगा।
ReplyDelete6, 2021 at 11:31 PM
ReplyDeleteनिष्ठा एप में यह जो भी समस्याएं बताई गई हैं वह इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए बहुत ही सामान्य सी चीज है। इनको इन समस्याओं से पार पाने के लिए उचित मार्गदर्शन एवं प्रेम पूर्वक व्यवहार की आवश्यकता होती है। हमारे द्वारा कक्षा में जो भी चीजें की जाती है उनमें हमें इस आयु वर्ग के बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। बच्चों की मनोवैज्ञानिक सामाजिक एवं विभिन्न प्रकार की अवस्थाओं का ध्यान रखकर ही शिक्षण की विधियां संपूर्ण की जानी चाहिए तभी शिक्षण अपने आप में परिपूर्ण हो
Mai aaj ki paristhiti ke adhar par apne anubhav sajha kar rahi hun. Pahale aur aaj ke samay me antar hai . Pahale samajik maryadaa ka dar bahut tha isiliye kuch bhi galat karane ke bare me sochane se pahale parents ka khayaal rahahta tha. Aaj samay kuch aur hai. Fashion, status aur apne apko ko best dikhane ki hod si lagi hai jisme " yen ,Ken, prakaren" wali soch ho gayi hai. Nasha karana aam baat hi gayi hai. Chori bhi achchi lifestyle aur friends me dabav banane ke liye ki ja rahi hai. Mere vichar me-
ReplyDelete1. Sahi ya galat kisi kahani ya mahapurushon ki jeevan gatha ke adhar par samajhaya jaye .
2. Isi tarah apne aap ko achche samajik prani kr roop me viksit karane ke liye bhi aas- paas ki ghatanaon aur newspapers ka Sahara lekar apni baat rakhi jaye.
Aisa karane se unka manobal bhi badhega aur bina hurt hue samajh bhi viksit hogi.
किशोरावस्था आँधी तूफान की तरह होती है जिसका पारिवारिक पृष्मेंठभूमि व संस्कार बेहतर होते है उनके पैर नही उखड़ते अन्यथा किशोर जलजला मे बहते ही जाते है तब शिक्षक, सहपाठी अथवा सहोदर ही सही व प्रभावी मार्गदर्शन करते है! मै भी अपने दोस्तों और उनकी बातों से प्रभावित व प्रेरित होता था !
ReplyDeleteDuring my childhood days i never got indulged in any wrong acts. My teachers and parents guided me to good habits and prevented me in committing anything wrong .
ReplyDeleteसौभाग्य से मुझसे ये त्रुटियां शायद नहीं हुई है। सो इसके बारे में लिख न पाऊं।
ReplyDeleteसी एम साहू
व्याख्याता शास उच्च मा वि दारगांव
hm sabhi kishorawashtha se gujre hai mera anubhaw h maine apne kishorawastha meya yu kahe kisorawastha se pahle kai buri buri adate apne sathiyo se aur kuchh apne se elder ne mujhe sikhai jinme achhi km aur kharab jyada thi aur mujhe unfortunately koi sahi margdarshan krne wala nahi tha mai aj tak un buri adato ke mansik prabhaw se grasit hu, kosis rehti h hm apne student ko sahi margdarshan de unhe samjhe we khulkr anpi samsya bata sake .
ReplyDeleteइस उम्र में प्रायः सभी व्यक्ति कुछ ऐसे काम कर जाते हैं किसे नहीं करना चाहिए मैं भी इन परिस्थितियों का सामना किया हूं पढ़ने के समय में खेलने के लिए चला जाता तालाब में डुबकी लगाता पेड़ों पर चढ़ता
ReplyDeleteपढाई करने के समय में उपन्यास पढता था गुचुल खेलता था
ReplyDeleteकिशोरावस्था शारीरिक मानसिक बदलाव का अवस्था होता है इसलिए शिक्षक को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें और हमेशा अच्छे संस्कार प्रदान करें
ReplyDeleteताराचंद कौशिक
(स.शि.)
शास.उ.मा.वि.चोगरीबहार
जिला जशपुर
किशोरावस्था मे मुझे 🚬 करने की
ReplyDeleteलत पड रही थी एक दिन धरवालो को पता चला गया धरवालो ने समझया और बुरी संगती को छोड़ने को कहा। ऐसे दोस्त को छोड़ दिया। पढ़ाई पर ध्यान देने लगा।और धुम्रपान से छुटकारा पाया।
मेरे सहपाठी लगभग सभी अच्छे थे। लेकिन सहपाठियों को देखकर मैं भी धूम्रपान की ओर बढ़ रहा था, लेकिन मैंने समय रहते स्वयं को संभाल लिया।
ReplyDeleteBilkul hamne bhi apne us age mein k eksek sahpathi k sath padoshi ke aam k ped par Patthar mar kar aam girate the. aur chhillaker batate ki aam gila h fir ve hame aam diya karte the .ye karya roj lunch ki chhutty me kerte the. us samay achchha lagta tha.par next class me jane ke bad aam girana band ker diya.bahut din bad jab hamne dadaji( jinke aam ko girate the). Ko bataya to be hus diye aaur bole ki mujhe sab pata tha beta.per yeh karya thik nhi tha bad mein realised kiya.
ReplyDeleteमैंने किशोरावस्था में मित्रों के साथ चोरी, धूम्रपान, विद्यालय से भागना जैसे कार्य किये किन्तु इनके दुष्प्रभावों को शीघ्र ही समझ गया और सभी बुराइयों से बच गया। इसके पीछे मेरी पारिवारिक पृष्ठ्भूमि सर्वाधिक कारगर रही।
ReplyDeleteधर्मेन्द्र प्रसाद सारस्वत
प्रभारी प्राचार्य
शा. उ. मा. वि. चिल्हाटी
बचपन की क्रमिक विकास होती है।इस कड़ी में किशोरावस्था विद्यार्थी जीवन का महत्व पूर्ण समय होता है । सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के व्यवहार हमारे सहपाठी की होती है । मुझे भी किशोरावस्था में कुछ बुरी आदतों वाले सहपाठी मिलें लेकिन मैं अपने आप को किसी अज्ञात प्रेरणा से उनके जैसा होने से बचा पाया ।आज मैं खुद ख़ुशनसीब मानता हूँ नहीं तो मैं भी बुरी आदतों में लिप्त होता । मेरे सहपाठी आज उतनी उन्नति नही कर पाए है। इसका कारण बस ये बुरी आदतें ही है।
ReplyDeleteमेरा किशोरावस्था में मैंने भी अपने दोस्तों तथा उनके द्वारा कही जाने वाली बातों का अनुसरण करा है उनका साथ देना अच्छा लगता था मेरे सभी साथी अचछे थे घर के कठोर अनुशासन तथा सही गलत के निर्णय ने मुझे इन कार्यों से बचा कर रखा तथा मेरी किशोरावस्था को गलत दिशा में जाने से रोक लिया |
ReplyDeleteपरिवार का सकारात्मक दबाव हमेशा रहा फिर भी यदि मम्मी पापा को कोई बात समझानी होती थी तो वे अपने बचपन के उदाहरण या कहानी के माध्यम से समझाते रहते थे |
ReplyDeleteमेरे साथ सकारात्मक सहपाठी दबाव रहा मुझे इस प्रकार किसी भी नकारात्मक कार्य की आवश्यकता नहीं हुई मेरे और सहपाठी के बीच हमेशा एक सकारात्मक स्पर्धा रही
ReplyDeleteश्री मति एम बी बंजारे
प्राचार्य
SAGES --SELUD
Distt.-----Durg
किशोर बालक बालिकाओं को किस प्रकार समझना चाहिए उनकी क्या क्या समस्याएं होती हैं उसका कैसे निराकरण करना चाहिए उसे इस मॉड्यूल में बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है
ReplyDeleteमैं अपने सहपाठियों के साथ केवल अध्ययन अध्यापन संबंधी क्रियाकलापों में ही व्यस्त रहता था और हम आपस में साझेदारी द्वारा विभिन्न विषय वस्तु से संबंधित जानकारियां आपस में साझा करते थे
ReplyDeleteकिशोरावस्था को संघर्ष और तूफान की अवस्था कहा जाता है, पर किशोरावस्था के मेरे सहपाठी अध्ययन में ब्यस्त रहते थे। किसी अप्रिय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा।
ReplyDeleteKishoravastha Mein Hamari kaksha Mein Naitik Shiksha ka ek kalkand Hota tha jismein Shikshak dwara Kahani ke Madhyam se Hamen alag alag sikhe di jaati thi Jaise bado Ka aadar Karna Chhori nahin karna lalchi nahin karna aur ghar per Pita Ke dwara bhi Hamare doston aur doston ke sath Khele Jane Wale khelon batchit per pura Dhyan rahata tha Parivar Mein acche aur bure kamo par khulkar Charcha Hoti Thi Isliye Ham kishoravastha Se Lekar Aaj Tak galat Karya se Dur rahe. ismein Mata Pita aur Shikshak ki Bhumika aham hoti hai .
ReplyDeleteकिशोरावस्था में बहुत सारे सकारात्मक एवम नकारात्मक विचार आते हैं। मैं हमेशा कक्षा के प्रथम पंक्ति के बेंच पर बैठता था जिससे मुझे सकारात्मक सहपाठी मिले।इसलिए ऐसा विचार मेरे मन में आया ही नहीं।
ReplyDeleteकिशोर अवस्था में दोस्तों साथ और दबाव में कभी कभी छोटी छोटी चोरी करना, उनके साथ घरवालों से छिपकर नाटक, टीवी देखने जाना, क्रिकेट एवं अन्य खेल खेलने जाना आदि। लेकिन घरवालों को ज्यादा खराब लगे ऐसे कामों से हमेशा दूर रहे। कुछ दोस्त तो हमेशा गलत कामों से दूर रहते थे। मन में तो बहुत गलत कामों के लिए विचार आते थे लेकिन माता पिता के डर से उन कामों से बचे रहे।
ReplyDeleteAisa nahi hua kabhi
ReplyDeleteI was not allowed to go to friends houses at distant places but gone to there without permission of parents
ReplyDeleteमैंने ऐसा कोई काम नहीं किया।
ReplyDeleteकिशोरावस्था में सहपाठीयों का नाकारात्मक दबाव रहा,किन्तु पिता जी का सकारत्मक प्रभाव रहा ,कुछ मजेदार मस्तियाँ भी की,खेलों के प्रति काफी रुझान रहा फिर अच्छे सकारत्मक सोच वाले दोस्तों के साथ शिक्षण प्रभाव पूर्ण रहा।
ReplyDeleteकिशोरावस्था में सभी को सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक प्रभाव से और प्रत्येक की जीवन में सकारात्मक पक्ष और नकारात्मक पक्ष आता है और देखा जाए तो सभी अपने किशोरावस्था में कई प्रकार की गतिविधि से गुजरे हैं। कभी-कभी जिज्ञासा बस कई प्रकार के चीजों को जानने एवं स्वाद लेने के लिए पीना खाना और ऐसे कई चीज हैं जिसे हम किशोरावस्था में मस्ती स्वरूप करते हैं स्वभाविक चीज है ,जो समय के साथ चलता है और समय के साथ खत्म भी हो जाता है जब आदमी धीरे धीरे अपनी समझ विकसित करने लगता है ,तब एकाएक छुट जाता है।
Deleteमै जब 9वी क्लास में थी, तो गुडाखु कर रहीं थी, कि मुझे चक्कर आने लगा फिर मैंने उन दोस्तों के साथ छोड़ दिया
ReplyDeleteमैंने कक्षा दसवीं में एक बार चना की खेत से चना चुराया था। वह भी अपने हॉस्टल वाले दोस्तों के साथ फिर ऐसा हमने कभी दोबारा प्रयास नहीं किया।
ReplyDeleteApni padai aur khel par dhyan
ReplyDeleteहॉ हम स्कूल के पास के घरों से इमली और अमरूद चुरा कर खाते थे,और खुद को सही साबित करने के लिए कहते थे कि भुख लगने पर कि गई चोरी ,चोरी नही कहलाती।😊😄😀
ReplyDeleteमैं हमेशा कक्षा के प्रथम पंक्ति के बेंच पर बैठता था जिससे मुझे सकारात्मक सहपाठी ज्यादामिले। पढ़ाई के साथ साथ कभी दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर लेते थे,लेकिन गलत कार्य नही करते थे।
ReplyDeleteThese things never attracted me in my teenage years as my parents were very affirmative about discussing these topics and their consequences
ReplyDeleteकिशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जब मन नई क्रिया कलाप करने को कहता है यदि इस समय सही देखभाल न मिले तो मन विचलित हो कर कुसंग मे फँस जाता है मेरा मन भी ऐसी अवस्था मे ग्रसित हो गया था परंतु उस समय सही दिशा मिल गयी जिसे आज मै निकल गया और दूसरों के लिए एक उदहरांन के रूप मे अपने को सामने रख आने वाली पीढी को बचाने की शिक्षा दे रहा हू।
ReplyDeleteकिशोरावस्था जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था होती है इस अवस्था में व्यक्ति शारीरिक मानसिक बदलाव और दबाव को महसूस करता है मेरे स्कूली जीवन में भी सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के सहपाठी परिवेश का अनुभव हुआ है।
ReplyDeleteमेरे विचार से अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग व्यक्ति कभी भी गलत मार्ग पर अग्रसर नही हो सकता। जिम्मेदारियां व्यक्ति को गलत मार्ग और गलत संसर्ग से हमेशा दूर रखती हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील होना बहुत जरुरी है।
ReplyDeleteअपने किशोरावस्था में मेरे कई ऐसे दोस्त थे जिनकी बुराइयां मुझे आकर्षित करती थी परंतु अपने आप को उनसे दूर रख कर भावनाओं को नियंत्रित कर लिया।
ReplyDeleteMai bhi anya sathiyo ki bhanti apne ek mitra mi shath dusre guar ke aam ke ped ke nikat jaker aam giraker jor se chillate thebki aam gira h .vahan ke dada bolte the ki-: jao use le lo" aur hm use uthaker maje se khate the .yeh karya aam k rahte ham karte the .bad me hame khud ko bura lag aur hamne dada ji bol diya ki aam hm swaym girate the.tb dada ji ,hase aur bole mujhe pata tha.bachpan me hame lagta hai ki bado ko hamari galti ka pata nhi hota h.per h anbhigya hote hai.
ReplyDeleteAdolescence is called the period of storm, because at this time physical, social and emotional development keeps happening, we have also faced them in this stage, this period is definitely a state of disorientation.I also found negative partners but I never chose the wrong path.
ReplyDeleteChandrashekhar Gajbiye
Hr.sec.sch. Chawand
जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तब हमारा ५ लोगों का ग्रुप था और सभी सहेलियाँ पढाई में काफी अच्छी थी। हमलोगो के बीच पढाई को लेके कम्पटीशन चलता था जब मैं पढाई से ब्रेक लेती थी तब बागवानी या कुकिंग करती थी। कभी कोई किसीको चिढ़ाने की कोशिश करते थे तो उनको भी हमलोग बीच में ही रोक देते थे।
ReplyDeleteChampeshwari Bhatt
G. H. S. S. Guma
किशोरावस्था में मुझे सकारात्मक दोस्त मिले थे। परिवार का प्यार था ।पिताजी हमारे बीच नहीं रहे उनकी कमी हमे हर पल महसूस होती थी । हम गलत काम करने की सोच भी नही सकते थे ।
ReplyDeleteकिशोरावस्था में सर्वाधिक सहयोग माता पिता एवं शिक्षक का चाहिए होता है।
ReplyDeleteअपने किशोरावस्था में मैं बहुत शर्मिला और दब्बू प्रवृत्ति का था क्योंकि मेरी ऊंचाई कम थी और मैं बहुत दुबला पतला था। मैं लड़कियों से बात करने से झिझकता था। अपने कुछ सहपाठियों की संगति में मैंने कामक्रीड़ा के फुटेज वाले एडल्ट फिल्में भी देखी और फिर कभी - कभी यौन संतुष्टि के लिए हस्त मैथुन करने लगा था।
ReplyDeleteब्रजेश कुमार शर्मा व्याख्याता
शा.हाई स्कूल खेकतरा
कई बार हम सभी मित्र गण फल तोड़ने के लिए कक्षा के बीच में भाग जाया करते थे...जिससे हमारे शिक्षक हमे समझाते थे की यह अच्छी बात नहीं है , जिससे की उनके द्वारा बार बार समझने पर हम सभी समझ गए
ReplyDeleteकिशोरावस्था में मुझे सकारात्मक दोस्त मिले।साथ ही माता पिता का सहयोग मिला।
ReplyDeleteकिशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बालक को अवस्था के अनुरूप कार्य करने के लिए उसके भावनात्मक विचारों में उद्दंडता प्रेरित करती है ऐसी स्थिति में यह अवस्था बच्चों को गलत कार्य करने के लिए प्रेरित करती है इसमें घर परिवार के सदस्यों के द्वारा सामाजिक सहपाठी कार भूमिका निभाने और बच्चों की उद्दंडता सुधार किया जा सकता है इनके साथ साथ बच्चों में जो बुराइयां व्याप्त होती जाती है उस बुराइयों को समाप्त करने के लिए कुछ शिक्षक की मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है और शिक्षक की मार्गदर्शन के माध्यम से उन बुराइयों को समाप्त करके उन्हें सही मार्ग पर लाया जा सकता है
ReplyDeleteकिशोरावस्था में अनेक प्रकार की दुविधाएं और गलत विचारों का सामना करना पड़ा, किन्तु अच्छे सहपाठी और दोस्तों के कारण नकारात्मकता अथवा गलत आदतों से बचने में हमेशा मदद मिली। जीवन में सही दोस्त का होना बहुत लाभदायक होता है।
ReplyDeleteऐसी स्थिती मेरे साथ नहीं आया है। सहपाठियों के द्वारा होली, विवाह कार्यक्रम एवं अन्य खुशी के अवसर पर शराब पीना और धूम्रपान करना शामिल होता है। ऐसी परिस्थिति में शामिल होकर व्यक्ती नशा करना सीखता है।
ReplyDeleteकिशोरावस्था में मुझे एक गलत आदत हो गया था। गुड़ाखू खाने का। वो भी किसी सहपाठी ने नहीं, मेरे एक रिश्तेदार ने सिखाया था। एक दिन मै गुड़ाखू खाने के बाद मे बेहोश होकर गिर पड़ी। मॉ - पापा परेशान कि हुआ क्या? होश आने पर मुझसे पूछा गया।और मै ने बता दिया। मुझे उसके साइड इफेक्ट के बारे में बताया गया। बाद मे पिटाई हुआ जमकर😂😀
ReplyDeleteDuring my school time I was having a very good friend circle, no one was having any bad habit. Every body was busy in scoring good marks.
ReplyDeleteसामन्यता देखा जाता हैं कि किशोरावस्था में 90% लडकियों को ऐसी स्थिति का सामना नही करना पड़ता है किन्तु 90% लडकों को इस परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता हैं ऐसी स्थिति में उन्हें संभालने के लिए एक शिक्षक की भूमिका बहुत अहम होती है|
ReplyDeleteकिशोरावस्था में इस तरह के विचार आना स्वाभाविक है। हमारा भी सामना ऐसे विचारों से हुआ लेकिन परिवार के अच्छे संस्कार के चलते व स्वयं वैचारिक स्वभाव होने के कारण इस तरह के नकारात्मक गतिविधि से अपने आप को बचा लिया ।
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