माड्यूल-4

गतिविधि 4:  सामाजिक मानदंड और व्यवहार का विवरण

 

निम्नलिखित कथनों पर विचार करें और साझा करें कि कुछ संस्थानों / विचारों और प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता क्यों है

1.      पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं 

2.      लड़कियों का शीघ्र विवाह

3.      पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले

4.      दहेज प्रथा

5.      बेटियों पर बेटों को वरीयता

6.      मासिक धर्म की वर्जनायेँ

7.      लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध

8.      लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं

 

एक पल को रुकें एवं चिंतन करें। दिए गए चरणों का पालन करके ब्लॉग पर अपनी समझ साझा करें-

Comments

  1. 1. यदि संपत्ति आवश्यकता से अधिक हो, तो पुत्रियों को भी उसमें उनका अधिकार मिलना चाहिए।और यदि संपत्ति आवश्यकता से कम की श्रेणी में हो तो ऐसा नहीं होना चाहिए.. क्योंकि मेरे पड़ोस में मैंने देखा है।एक बुज़ुर्ग की बेटी अपने पिता से आकर कहती थी...मेरे हिस्से को बढ़ाकर दो वरना केस कर दुँगी।ऐसे कुछ और उदाहरण मैंने देखे हैं..मारपीट भी!

    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए... क्योंकि ऐसा कर देने से उन्हें उन सपनों को भूलना पड़ जाता है...जो कभी वह पूरा करना चाहती थी।

    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/पोषण करने का अधिकार सही नहीं है।महिला और पुरुष एकसमान है।

    4. दहेज प्रथा कैंसर के समान है।प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इसका प्रतिकार अनिवार्य होना चाहिये।

    5. माता-पिता बेटा और बेटी दोनों को एकसमान मानें।सोंच बदलें।

    6. मासिकधर्म की वर्जनाओं की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।

    7. एकसमान शिक्षा-संस्कार देकर बेटा-बेटी दोनों को समानता के नियम का पालन कराना चाहिए।

    8. लड़कियों को कभी भी पराएपन के भाव का अहसास नहीं कराना चाहिए।ऐसा करने से उसके अंदर असुरक्षित होने का भाव उत्पन्न हो सकता है।

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    1. बिंदु 1 से 8 तक प्रश्न करना चाहिए और सम भाव से हल होना उचित है।

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    2. यदि हम अपने आप से ये वादा कर लें कि हम जेंडर असमानता की शुरुआत अपने घर से ही करेंगे, और अपने बच्चों मे बचपन से ही ऐसे ही संस्कार डालें कि लड़के लड़की में कोई फर्क नहीं और वैसे ही संस्कार डालें तो शायद हम कुछ हद कई रूढ़ियों को तोड़ सकते हैं! धन्यवाद

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    3. 1 - पुत्रियों को भी संपत्ति का कानूनन अधिकार प्राप्त है इसलिए पुत्रों के समान पुत्रियों को भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 2- लड़कियों को भी लड़कों के सामान स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अधिकार है। 3- लड़कियां भी पुरुषों के समान सही देखभाल एवं पोषण कर सकती हैं। 4- दहेज प्रथा कानूनन अपराध है अतः सभी व्यक्तियों द्वारा इसका
      बहिष्कार करना चाहिए।
      -5- बेटे और बेटियां दोनों को सामान वरीयता मिलना चाहिए
      6- मासिक धर्म से संबंधित रोड़ी बात को खत्म करने की आवश्यकता है 7 - लड़कियों को भी सामान्य एवं स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए । 8- लड़कियों को भी परिवार का स्थाई सदस्यता मिलना चाहिए क्योंकि वह भी हमारे परिवार का हिस्सा होती हैं

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  2. भारत एक पुरुष प्रधान देश है जहां पर महिलाओं को दूसरा स्थान दिया जाता है जो कि अनुचित है जिस तरह से गाड़ी एक पहिए से नहीं चल सकती उसी तरह से जिंदगी रूपी गाड़ी के लिए भी पुरुष और महिला की जरूरत होती है इसीलिए महिलाओं को सम्मान के साथ पुरुषों के समान सभी अधिकार मिलना चाहिए

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  3. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए

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  4. परिवार के सभी सदस्यों को समान अधिकार देना चाहिए ऐसा नियम है पर कहीं कहीं नियम ही ऐसा है कि महिलाओं को अधिक प्राथमिकता देती है, उस पर भी विचार किया जाना चाहिए।

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  5. प्राचीन समय से ही भारत मे पुरूष प्रधानता रही है सारे ि‍निर्णय लेने का अधिकार पुरूषों को ही रहा है और महिलाऍ उपेक्षित रही है वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर ही अधिकार प्राप्‍त है ओैर सभी क्षेत्रों मे महिलाओंं को समान अवसर ि‍मिलना चाहिए इसलिये लडकियों से सभी भेदभाव वाली प्रथाऍ समाप्‍त होनी ही चाहिए

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  6. परिवार के सभी सदस्यों को समान अधिकार देना चाहिए।

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    1. वर्तमान समय मे महिलाओ को भी बराबरी का का अधिकार। प्राप्त है ।भारत एक पुरूष प्रधान देश है जहॉ पर महिलाएँ को दूसरा स्थान दिया जाता है।जो एकदम अनुचित है।सामाजिक परंमपरा व रूढियोके कारण महिलाओ को सामाज मे समानता का दर्जा नही मिल पाता

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  7. Equal rights should be given to the daughters.

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  8. Equal rights must be given to the girl child.

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  9. महिलाओं को भी बिना किसी पक्षपात के सभी जगह सम्मान और उनके जो अधिकार है मिलना चाहिए।

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  10. महिलाओं को भी समान अधिकार के लिए कानून बन चुके है, आवश्यकता बस इस बात की है कि इसे लागू करने में हमारी अपनी सहभागिता कितनी है।

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  11. महिलाओं को समाज के हर क्षेत्र में,हर कार्य में, हर दिशा मेंं,हर प्रकार से समानता का अधिकार है।

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  12. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  13. 1.हर औलाद का संपत्ति पर समान अधिकार होना चाहिए।
    2.लड़कियों का विवाह शीघ्र नहीं, सही उम्र में करना चाहिए।
    3.पुरूष ही नहीं महिला भी देखबाल व पोषण कर सकती है।
    4.दहेज प्रथा सभ्य समाज के लिए कलंक है,इसे कानूनन और सामाजिक जागरूकता से बंद किया जाना चाहिए।

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  14. हमारे समाज में हालांकि अभी तक ऐसा माना जा रहा था की पुत्र ही परिवारिक संपत्ति का कानूनी रूप से उत्तराधिकारी होगा परंतु अब पुत्र के साथ-साथ पुत्रियों को भी बराबर का हक प्राप्त है जहां तक बात करें हम लड़कियों की शीघ्र विवाह की तो इसका एक कानूनी प्रक्रिया में उम्र तय किया गया है उसके तहत ही लड़कियों का विवाह करना चाहिए पुरुष देखभाल करने वाली या पोषण करने वाले हमारे समाज में माने जाते हैं परंतु अब लड़कियां भी आगे आई हैं और शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जिस क्षेत्र में लड़कियों ने अपनी व रीता प्रदर्शित न की हो रही बात दहेज प्रथा की तो दहेज प्रथा अभी भी एक सामाजिक अभिशाप है और इसमें पुरुषों को आगे आकर इस प्रथा को खत्म करना होगा साथ ही साथ इस में भी महिलाएं आगे आएं और अपनी साहस दिखाएं और ऐसे लड़कों को तिरस्कार करें जो दहेज के बगैर शादी करने की इच्छुक नहीं होते हमारे परिवार में अभी भी बेटियों पर बेटों को वरीयता दी जाती है कि यही बाहर जाकर काम करेगा वीडियो को तो चूल्हा चौका करना है परंतु अभी वर्तमान में ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि बेटियां जो है बेटों की अपेक्षा अधिक और साहसी निकल रही हैं जो कि पुरुषों के बराबरी क्या उनसे काफी आगे निकल गई है मासिक धर्म की अपनी बनाए हैं जो अभी कुछ रूढ़ीवादी परिवारों तक ही सीमित है बाकी कई पढ़े-लिखे घरों में यह खत्म होने की कगार पर है क्योंकि लड़कियां मासिक धर्म होने के बावजूद भी घर के यहां तक की किचन में खाना बना रही हैं लड़कियों की और लड़कियां परिवार की स्थाई सदस्य हैं तो यह काफी हद तक अभी हमारे समाज में मान्य है क्योंकि लड़कियों को शादी करके एक न एक दिन पुरुष के घर जाना ही है और यह मान्यता जो है ना जाने कब खत्म हो इसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन लड़कियों की जो शारीरिक गतिशीलता प्रतिबंध है समाज में बढ़ रही घटनाओं की वजह से कम होने का नाम नहीं ले रही है क्योंकि लड़कियां जब घर से बाहर होती हैं तो माता पिता और उसके परिवार के सभी सदस्य चिंतित रहते हैं जब तक कि वह आप तो इस प्रकार से लड़कियों पर प्रतिबंध है वह समाज उत्थान और जागरूकता के आने की वजह से ही खत्म किया जा सकता है

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  15. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  16. महिलाओं को भी समान अधिकार के लिए कानून बन चुके है, आवश्यकता बस इस बात की है कि इसे लागू करने में हमारी अपनी सहभागिता कितनी है।
    (kk siware)

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  17. (1) पुत्र हो या पुत्री पारिवारिक संपत्ति पर समान अधिकार है।(2)लडके हो या लडकी किसी का भी कम उम्र में विवाह करना कानूनन अपराध है।
    (3)महिलाएँ भी अपने परिवार का बखूबी पालन कर रही हैं।
    (4) दहेज लेना और देना अपराध है।
    (5) बेटा-बेटी दोनों समान हैं।
    (6) मासिक धर्म की वर्जनाएँ रूढिवादी विचारहै।हाँ शारीरिक स्वच्छता भी जरूरी है।
    (7) अति सर्वत्र वर्जयेत्।
    (8) लडकियाँ परिवार की स्थायी सदस्य हैं।

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  18. आज महिलाऐ पुरुषों के साथ कन्धे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। सभी क्षेत्रों उनका योगदान सराहनीय है। अपवाद स्वरूप कुछ की मानसिकता अभी भी नहीं बदली है। ( विनोद साहू)

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  19. 1. पारिवारिक संपत्ति मे पुत्र और पुत्री दोनों को बराबर का हिस्सा दिया जाना चाहिए। अक्सर यह देखा जाता है कि लड़कों को व्यापार करने या किसी अन्य कार्य के लिए पारिवारिक संपत्ति को बेचा जाता है, जबकि लड़कियों के मामले में सोचा जाता है कि यह तो शादी करके ससुराल चली जाएगी, इसके लिए क्यूं पैसे खर्च करें, यह गलत है।
    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह उचित नही है उनको भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर समाज में अपने लिए बेहतर स्थान प्राप्त करने का अधिकार है।
    3. महिलाएं भी पुरूषों की भांति परिवार की देखभाल और पोषण अच्छी तरह से कर सकती है।
    3. दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप है यह प्रथा पूरी तरह से समाप्त होनी चाहिए , इस प्रथा की वजह से आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियों को ससुराल मे शारीरिक व मानसिक यातनाएं दी जाती है जो सर्वथा अनुचित है।
    4. बेटियां किसी भी मामले मे बेटों से कम नही हैं, दोनो को समान वरीयता दी जानी चाहिए, बेटियों ने अपनी काबिलियत हर क्षेत्र मे साबित की है।
    5. मासिक धर्म एक पूर्णतः सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, इससे जुड़ी रूढ़िगत धारणाओं को दूर करने की आवश्यकता है।

    6. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाना अनुचित है, उन्हे अपनी इच्छानुकूल कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
    7. पुत्र और पुत्री दोनों एक ही माता पिता की संतान होती है, इसलिए जिस तरह से पुत्र को परिवार का स्थायी सदस्य माना जाता है एक पुत्री को भी मानना चाहिए।

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  20. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।
    प्राचीन समय से ही भारत मे पुरूष प्रधानता रही है सारे ि‍निर्णय लेने का अधिकार पुरूषों को ही रहा है और महिलाऍ उपेक्षित रही है वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर ही अधिकार प्राप्‍त है ओैर सभी क्षेत्रों मे महिलाओंं को समान अवसर ि‍मिलना चाहिए इसलिये लडकियों से सभी भेदभाव वाली प्रथाऍ समाप्‍त होनी ही चाहिए

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  21. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।
    प्राचीन समय से ही भारत मे पुरूष प्रधानता रही है सारे ि‍निर्णय लेने का अधिकार पुरूषों को ही रहा है और महिलाऍ उपेक्षित रही है वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर ही अधिकार प्राप्‍त है ओैर सभी क्षेत्रों मे महिलाओंं को समान अवसर ि‍मिलना चाहिए इसलिये लडकियों से सभी भेदभाव वाली प्रथाऍ समाप्‍त होनी ही चाहिए

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  22. महिलाओं को भी समान अधिकार के लिए कानून बन चुके है, आवश्यकता बस इस बात की है कि इसे लागू करने में हमारी अपनी सहभागिता कितनी है।महिलाये भी आगे बढ़ रही है।

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  23. 1 पुत्र या पुत्री हो संपति में समान अधिकार हो।केवल पुत्र ही संपत्ति का अधिकारी है,यह धारणा बदलनी होगी।
    2 कम उम्र में विवाह नही होनी चाहिए।आत्मनिर्भर होने का मौका उन्हें भी मिले।
    3 महिलाएं भी देखभाल कर सकती,वे इस मामले पुरुषों से अच्छा कर सकती है।
    4 दहेज के विवाह से कोई संबंध न हो।
    5 बेटा व बेटी में कोई भेद न हो।
    6 यह एक प्राकृतिक शरीरिक क्रिया है, इस पर किसी प्रकार का गलत सोच न हो ।
    7 किसी भी शरीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध न हो।
    8परिवार की अस्थायी सदस्य न हो कर दो परिवारों को जोड़ने वाली कड़ी होती है।


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  24. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  25. वर्तमान समय मे महिला व पुरुष में भेदभाव करना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है। अतः आज के वैज्ञानिक युग मे महिलाओ को भी पुरुषों की ही तरह दर्जा प्राप्त होना चाहिए, उन्हें भी पुरुषो के बराबर अधिकार व सम्मान मिलना चाहिए।

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  26. आज के युग में लड़कियां लड़कों से मामले में पीछे नहीं है जिस तरह से एक गाड़ी के दो पहिए मैं से यदि एक पहिया निकल जाए तो गाड़ी नहीं चल सकती उसी प्रकार महिला और पुरुष समाज के दो पहिए हैं जिसमें महिलाओं को भी पुरुष की बराबरी का अधिकार होना चाहिए अन्यथा समाज रूपी गाड़ी चल नहीं पाएगी इसीलिए हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिलना चाहिए साथ ही हमारे पुरानी रीति-रिवाजों और रूढ़ीवादी विचारों को खत्म करना होगा

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  27. Teklal sahu
    P/s-khairkhunta
    Pithora-mahasmund
    Chhattisgarh pin-493552
    1.बेटा-बेटी का स्थान माता-पिता व समाज की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2.लड़कियों को भी उनके सपनों को पूरा करने का अधिकार देना चाहिए तब उनके इच्छा के अनुरूप सही उम्र में विवाह करनी चाहिए।
    3.महिलाएं भी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं वो भी एक पुरूष की भांति देखभाल करने में सक्षम हैं।
    4.दहेजप्रथा पूर्णतः बन्द हो।समाज में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
    5.बेटी-बेटा का हैं, अधिकार।
    शिक्षा, सेहत पूरा प्यार।।
    दोनों समान हैं कोई भी भेदभाव नहीं होना चाहिए।
    6.यह एक प्राकृतिक शारिरिक क्रिया हैं।मासिक धर्म की वर्जनाओं की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।
    7.लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध अनुचित हैं उन्हें भी अपनी क्षमता अनुरूप कार्य करने देना चाहिए।
    8.दो-दो कुलों की लॉज को,ढोंती हैं बेटियां।
    यदि सोना हैं बेटे, तो मोती हैं बेटियां।।
    किसी को कम नहीं आंकना चाहिए उन्हें भी परिवार की स्थायी सदस्य मानना चाहिए।

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  28. लड़कियों को भी पूरा हक है,, जितना लड़के का होता है,,, भेदभाव नही होना चाहिए।।
    सभी क्षेत्रों में बेटियो का योगदान होना चाहिए।।

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  29. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  30. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए

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  31. Mahilao ko bhi bina kisi pakshapaat ke sabhi jagah sammaan or unke jo adhikar hai vo milna chahiye

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  32. 1 kanun me to sudhar hua hai prntu abhi yah utna samaj me iska palan nhi ho rha hai l
    2.ldkiyo ki bivah ki umar 18 sal ker di gyi hai l
    3ab purush oor mahilaye dono hi her shetr me jagruk hai sudhar ho rha hai l
    4dahej prtha per purn rup se prtibandh lgana chahiye l
    5betiyo per beto ka dabaw nhi hona chahiye l
    6 betiyo ko beto jyaisa hi samajhna chahiye l

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  33. Sabhi chijo ka mul jad shiksa h sabhi ko saman rup se shiksha dene se sabhi problem solve hogi.

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  34. सभी क्षेत्रों में लड़कियों का भी योगदान हो,अच्छी शिक्षा से सम्भव है।

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  35. सभी अपने विचार धाराओं को महिला के प्रति समानता के भाव से ही देखना और समझना और उतनी ही उत्साह से महिलाओं को प्रेरित करना जिससे हम समानता का अधिकार को मूल रूप दे सकें

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  36. बेटे और बेटियों दोनों को अपने संपत्ति बराबर देना चाहिए । 2बेटियों का बाल विवाह कभी भी नही करना चाहिए बेटियां भी बेटों के समान देश के भविष्य हैं । 3. दहेज प्रथा पूरा ही बंद होना चाहिए4. माता पिता बेटों और बेटियों को एक समान माने 4. लड़कियों को कभी भी किसी भी तरह के प्रतिबंध करना अनुचित है।

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  37. बेटा बेटी को समान अधिकारहोना चाहिए।

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  38. समाज में महिलाओं को भी पुरुषों के समान अधिकार मिलना चाहिए । किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं करना चाहिए।

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  39. माता पिता को अपने घर मे बेटी बेटा क़ो एक सामान लेकर चले।

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  40. जेंडर भिन्नता की अवधारणा समाप्त होनी चाहिये । आज लड़कियां , लड़कों से बेहतर काम करती हैं । अनुशासन , नियमितता , धैर्यशीलता , सहनशीलता आदि गुण लड़कियों में अधिक पाई जाती हैं ।
    पुत्रियों को वारिस होने का समान अधिकार है । पुरुष प्रधानता या पितृसत्तात्मकता की प्राचीन व्यवस्था को परिवर्तन करने की आवश्यकता है ।

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  41. परिवार के सभी सदस्यों को समान अधिकार देना चाहिए।यह अच्छी शिक्षा से ही संभव है।

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  42. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  43. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए

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  44. 1/ माता-पिता की सम्पत्ति पर पुत्र एवं पुत्री का समान अधिकार होना चाहिए। क्योंकि दोनों एक ही माता-पिता की सन्तानें हैं। और आजकल तो कानून में भी इसका प्रावधान है।
    2/ लडकियों का शीघ्र विवाह होना उचित नहीं है, क्योंकि लड़कियाँ कम उम्र में शारीरिक एवं मानसिक रूप से विवाह के लिए तैयार नहीं होतीं हैं। बल्कि उन्हें अपने जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए पूरा अवसर देना चाहिए जैसे लडकों को दिया जाता है।
    3/ यह कहना सर्वथा अनुचित है कि पुरुष ही परिवार का देखभाल करने वाला होता है, मैंने कई ऐसे परिवार देखे हैं जहाँ पुरुष के होने के बाद भी महिला ही परिवार की देखभाल करती है। परन्तु हमारा समाज पुरूष प्रधान होने के कारण पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है। किन्तु वास्तविकता में देखा जाए तो परिवार में पति-पत्नी समान रूप से अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं तभी परिवार चलता है।
    4/ जब नवविवाहित दम्पति अपना वैवाहिक जीवन आरम्भ करते हैं तो उन्हें गृहस्थी चलाने के लिए आवश्यक सामग्री जोड कर दिया जाता था। इस प्रथा में कालान्तर में विकृति आ गयी और ये दहेज प्रथा के रूप में समाज एक बडी समस्या बन गया।
    5/ यह समाज में सामान्य रूप से देखा जाता है कि बेटियों के स्थान पर बेटों को अधिक महत्व दिया जाता है। बेटियों को पराया धन कहा जाता है। किन्तु बेटों के समान बेटियों को भी समान अवसर समान अधिकार मिलना चाहिए।
    6/ मासिक धर्म एक शारीरिक प्रक्रिया है इसको लेकर जो वर्जनाएँ की जाती हैं वह उचित नहीं है। किन्तु वर्तमान समय में लड़कियाँ एवं महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान भी अपना व्यवसाय, नौकरी आदि में बिना किसी बाधा के अपने दायित्वों का निर्वहन करतीं हैं।
    7/ लडकियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है। उन्हें भी अपनी शारीरिक क्षमता एवं दक्षता को बढाने का पूरा अवसर मिलना चाहिए।
    8/ भले ही बेटियां विवाहित हो कर पराए घर चलीं जातीं हैं किन्तु माता पिता एवं भाई के लिए वह कभी परायी नहीं होतीं।

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  45. 1. यदि संपत्ति आवश्यकता से अधिक हो, तो पुत्रियों को भी उसमें उनका अधिकार मिलना चाहिए।और यदि संपत्ति आवश्यकता से कम की श्रेणी में हो तो ऐसा नहीं होना चाहिए.. क्योंकि मेरे पड़ोस में मैंने देखा है।एक बुज़ुर्ग की बेटी अपने पिता से आकर कहती थी...मेरे हिस्से को बढ़ाकर दो वरना केस कर दुँगी।ऐसे कुछ और उदाहरण मैंने देखे हैं..मारपीट भी!

    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए... क्योंकि ऐसा कर देने से उन्हें उन सपनों को भूलना पड़ जाता है...जो कभी वह पूरा करना चाहती थी।

    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/पोषण करने का अधिकार सही नहीं है।महिला और पुरुष एकसमान है।

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  46. 1. यदि संपत्ति आवश्यकता से अधिक हो, तो पुत्रियों को भी उसमें उनका अधिकार मिलना चाहिए।और यदि संपत्ति आवश्यकता से कम की श्रेणी में हो तो ऐसा नहीं होना चाहिए.. क्योंकि मेरे पड़ोस में मैंने देखा है।एक बुज़ुर्ग की बेटी अपने पिता से आकर कहती थी...मेरे हिस्से को बढ़ाकर दो वरना केस कर दुँगी।ऐसे कुछ और उदाहरण मैंने देखे हैं..मारपीट भी!

    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए... क्योंकि ऐसा कर देने से उन्हें उन सपनों को भूलना पड़ जाता है...जो कभी वह पूरा करना चाहती थी।

    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/पोषण करने का अधिकार सही नहीं है।महिला और पुरुष एकसमान है।

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  47. 1. पुत्र और पुत्री दोनों का स्थान माता-पिता की दृष्टि में समानता होनी चाहिए |
    2. लड़कियों की शारीरिक विकास एवं पढ़ाई पूरी करने के बाद विवाह करना चाहिए|
    3. महिला भी हर क्षेत्र में पुरुष की तरह कार्य करने में सक्षम है|
    4. दहेज प्रथा सामाजिक जागरूकता से ही बंद हो सकता है|
    5. बेटा और बेटी दोनों को एक समान समझना चाहिए|
    6. मासिक धर्म प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है सामाजिक जागरूकता से दूर होगा|
    7. लड़कियों की शरीर गतिशीलता पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए
    8. माता पिता की दृष्टि में दोनों में कोई अंतर नहीं होता वे घर के सदस्य होते हैं|

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  48. चूंकि पुरुष और महिलाएं दोनों प्रकृति की ही देन है अतः महिलाओं में होने वाली कुछ प्राकृतिक घटनाएं जो उचित समय अवधि पर उनके शारीरिक बदलाव के रूप में नजर आती हैं उन्हें समाज को स्वीकार करना चाहिए एवं उनसे एक सकारात्मक रवैया अपनाते हुए इस दौरान उनसे सहयोगात्मक व्यवहार भी प्रदर्शित करना चाहिए क्योंकि इस दौरान महिलाएं मासिक धर्म की पीड़ा से गुजरती रहती हैं ऐसे समय में समाज एवं परिवार में उन्हें अनेक अनेक रूढ़िवादी विचारों का सामना भी करना पड़ता है जैसे इस दौरान आचार को हाथ लगाना , पूजा स्थल पर प्रवेश न करना इत्यादि । इनमें से कुछ बातें सच भी हो सकती हैं परंतु यथार्थ के ज्ञान के अभाव में यह रूढ़िवादी परंपरा ही बनी रहेंगी एवं सत्य का ज्ञान हो ही नहीं पाएगा ।

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  49. Beta ho ya beti bono Ka Apne pita ki sampati par Saman adikar h.beti Ka vivah jaldi Nahi Karna Chahiye balki unko sakcham banakar hi vivah Karna Chahiye Jise Kisi prakar ki samasaya aane par wo iska samadhan Karne ke liye dusro par nirbhar na rahe.mata pita ko bete ke Saath Saath beti ko BHI uski kary chetr me aage badhane ke liye prerit Karna Chahiye.

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  50. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  51. * सामाजिक मानदंड में पुत्र को पारिवारिक सम्पत्ति का कानूनी उत्तराधिकारी माना जाता है। और पुत्री को पराया धन, जबकि पुत्र और पुत्री को पारिवारिक सम्पत्ति में समान उत्तराधिकारी माना जाना चाहिए।
    * लड़कियों को अच्छे से पढ़ाई-लिखाई कराकर उसे आत्म-निर्भर बनाना तथा सही समय पर विवाह कर देना चाहिए।
    * परिवार में केवल पुरुष ही पालन-पोषण नहीं कर सकते, जबकि महिलाएं भी पुरुषों की अपेक्षा दक्ष हैं।
    * दहेज-प्रथा समाज के लिए एक अभिशाप है।जिसे जड़ से समाप्त कर देना चाहिए।
    * बेटियों और बेटों को समान वरीयता देनी चाहिए।
    * महिलाओं के लिए मासिक धर्म एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है। जिसे महिलाएं बखूबी से निभाती हैं।
    * लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए। उन्हें अपनी इच्छानुकूल कार्य करने की अवसर देनी चाहिए।
    * लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य हैं।क्योंकि माता-पिता उसे पराया धन समझती हैं।

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  52. As the percentage of education of boys and girls are increasing there is no difference between the boys and girls and and their rights are equal.
    All the rituals regarding discrimination should be prohibited permanently.

    RADHAKRISHNA MISHRA

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  53. दहेज प्रथा खत्म कर सही समय मे लड़की का विवाह करना चाहिए।
    लड़का और लड़की मे भेद नहीं करना चाहिए।
    पुत्र हों या पुत्री , दोनों को समान नज़रों से देखना चाहिए।

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  54. ये विचार एवं मान्यताएं जो पुरातन समय से या कहा जाए कई पीढ़ियों से चली आ रही है जिनकी वजह से जेण्डर समानता की हम कल्पना नहीं कर सकते हैं इन मान्यताओं को बदल कर ही हम अपने परिवार,समाज,और राष्ट्र का विकास कर सकते हैं क्योंकि कहा जाता है कि जब एक बालक पढ़ता है तो स्वयं का विकास करता है परंतु एक बालिका साक्षर होकर अपना ,अपने परिवार का व संपूर्ण समाज का विकास करती है ।

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  55. पुरूष और महिलाओं के समानता का पाठ स्कूल और घर दोनो स्थानों पर पढ़ाया जाना चाहिए समानता की नजरों से देखेंगें तभी पुत्र और पुत्रियों को संपत्ति एवं अन्य पर अधिकार समानता से लागू हो पाएंगे लड़कियों का शीघ्र विवाह दहेज प्रथा बेटों को वरीयता बेटियों की मासिक चक्र में वर्जनायें उनकी शारिरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध तथा लड़कियों को परिवार की सदस्य नही मानना समाज की बहुत बड़ी समस्या है इसे हर हाल में समाप्त होना चाहिये

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  56. जेंडर से जुड़े अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर अपने दृष्टिकोण में वैज्ञानिकता को अपनाना होगा ।लिंग के आधार भेदभाव बंद करना होगा ।

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  57. महिलाओं को भी बिना किसी pakshpat के सभी जगह सम्मान और उनके जो अधिकार है मिलना चाहिए।

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  58. पुत्र या पुत्री हो संपति में समान अधिकार हो।केवल पुत्र ही संपत्ति का अधिकारी है,यह धारणा बदलनी होगी।
    2 कम उम्र में विवाह नही होनी चाहिए।आत्मनिर्भर होने का मौका उन्हें भी मिले।
    3 महिलाएं भी देखभाल कर सकती,वे इस मामले पुरुषों से अच्छा कर सकती है।
    4 दहेज के विवाह से कोई संबंध न हो।
    5 बेटा व बेटी में कोई भेद न हो।
    6 यह एक प्राकृतिक शरीरिक क्रिया है, इस पर किसी प्रकार का गलत सोच न हो ।
    7 किसी भी शरीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध न हो।
    8परिवार की अस्थायी सदस्य न हो कर दो परिवारों को जोड़ने वाली कड़ी होती है।

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  59. पुत्र या पुत्री हो संपति में समान अधिकार हो।केवल पुत्र ही संपत्ति का अधिकारी है,यह धारणा बदलनी होगी।
    2 कम उम्र में विवाह नही होनी चाहिए।आत्मनिर्भर होने का मौका उन्हें भी मिले।
    3 महिलाएं भी देखभाल कर सकती,वे इस मामले पुरुषों से अच्छा कर सकती है।
    4 दहेज के विवाह से कोई संबंध न हो।
    5 बेटा व बेटी में कोई भेद न हो।
    6 यह एक प्राकृतिक शरीरिक क्रिया है, इस पर किसी प्रकार का गलत सोच न हो ।
    7 किसी भी शरीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध न हो।
    8परिवार की अस्थायी सदस्य न हो कर दो परिवारों को जोड़ने वाली कड़ी होती है।

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  60. जगत राम कश्यप ( शिक्षक )

    माध्यमिक शाला:- केरगांव
    विकासखंड/ जिला :- गरियाबंद

    पिता की संपत्ति पर पुत्र- पुत्रियों का बराबर का अधिकार होना चाहिए। इसमें लिंक आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव करना पूर्णता गलत है।

    लड़कियों का विवाह करने में शीघ्रता करना भी गलत है क्योंकि बहुत सी लड़कियां अपने आगे पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं फिर भी पालकों द्वारा विवाह कर दिया जाता है जो गलत है।

    दहेज प्रथा समाज के लिए एक अभिशाप है इस कुप्रथा को सब के प्रयास से दूर किया जा सकता है ।

    प्रायः देखने में मिलता है की बेटियों पर बेटों की अपेक्षा ज्यादा बंदिशें लगाई जाती है अर्थात लड़कों को प्राथमिकता दिया जाता है जो गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए ऐसे करने से लड़कियों में हीन भावना आते हैं जिससे वे अपना विकास सही ढंग से नहीं कर पाते हैं

    मासिक धर्म महिलाओं की एक शारीरिक क्रिया का अंग है इसे इसी रूप में लेना चाहिए और इस समय उन पर किसी प्रकार की वर्जना या प्रतिबंध करना ठीक नहीं ।

    लड़कियों की गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाना लड़कियों और लड़कों में असमानता को पबताता है,हमें चाहिए कि लड़के और लड़की में बिना भेदभाव के दोनों को सभी शारीरिक गतिशीलता में भाग लेने देना चाहिए ताकि दोनों का शारीरिक विकास अच्छे से हो सके।

    लड़कियों को परिवार का अस्थाई सदस्य इसलिए मान लिया जाता है क्योंकि विवाह के उपरांत वह दूसरे परिवार में चले जाते हैं ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है परिवार को चाहिए कि उसे अपने परिवार के भी स्थाई सदस्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। और इसे लड़की के ससुराल पक्ष के परिवार को भी स्वीकार करना चाहिए और अपने मातृ पक्ष के संपूर्ण दायित्व का निर्वहन करने के लिए प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए।

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  61. 1. पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार होना चाहिए। इस रूढ़िवादिता को दूर करना नितांत आवश्यक है। जितनी आवश्यकता संपत्ति की एक पुत्र को होती हैं उतनी ही आवश्यकता पुत्री को भी हो सकती है। लिंग के आधार पर चयन करना सर्वथा गलत हैं।

    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह करना उनमे शारीरिक कमजोरी के साथ ही मानसिक कमजोरी भी लाता हैं। भारतीय समाज मे शीघ्र विवाह अनचाहे रूप से उनके सपनों को तोड़ कर रख देता हैं जो वे अपने भविष्य के लिए देखती हैं।

    3. सबसे पहले तो इस मिथक को तोड़ने की जरूरत हैं कि पुरुष ही देखभाल और पोषण करने वाले होते है। जबकि हमेशा से ही देखा जा रहा है कि महिलाएं ही अपने परिवार के सदस्यों की देखभाल पुरुषो से अधिक करती है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण आपके व हमारे घर की महिलाएं हैं।

    4. दहेज प्रथा का अभिशाप आज भारतीय समाज मे शिक्षित होने के बाद से और बढ़ता जा रहा हैं। इस पर कठोर नियम बनाये जाने की आवश्यकता हैं।

    5. बेटियो की अपेक्षा बेटो को लैंगिक आधार पर वरीयता देना सर्वथा अनुचित हैं। जबकि इसे काबिलियत के आधार पर लागू करने की पहल करनी चाहिए।

    6. मासिक धर्म पर सभी को शिक्षित करने की आवश्यकता हैं।

    7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध नही लगाया जाना चाहिए बल्कि उन्हें लड़को के समतुल्य कार्य करने के समान अवसर देने चाहिए।

    8. लड़कियों को सदैव ही पराया धन मानने की रूढ़िवादी धारणा भारतीय समाज मे विद्यमान हैं।इसे शिक्षा के माध्यम से बदलने की विशेष आवश्यकता हैं।

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  62. १.बेटी बेटा दोनों को समान रूप से देखना चाहिए।बेटी को भेदभाव की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।२. बेटियों का शारीरिक विकास और सही उम्र में करना चाहिए।३. आज के समय में बेटी बेटा से कम नहीं है वो भी अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता है।४.दहेज प्रथा को हटा देना चाहिए इसकी वजह से रिश्तों में दरार पैदा होता है कई बार ऐसा होता है कि दहेज की वजह से ब बेटियां आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।५. माता पिता को बेटी बेटा को एक समान रुप से रखना चाहिए। भेदभाव नहीं करना चाहिए।६. मसिकधर्म की वर्जनाओ की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।७. लड़कियों को उनके योग्यता के अनुसार शारीरिक गतिविधि करने दे।उसमे प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए।८. बेटियों के शादी के बाद भी उसे बेटो की तरह हक देना चाहिए।इसमें पूरे समुदाय के लोगो को अपना सोच बदलना चाहिए।

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  63. महिलाओं को समानता का अधिकार है, इस्के लिये कई आवश्यक कानून बने हुए हैं, हमें इन कानूनों को लागू करवाने में योगदान देना चाहिये। और जागरुकता फैलाना चाहिए।

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  64. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  65. १.बेटी बेटा दोनों को समान रूप से देखना चाहिए।बेटी को भेदभाव की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।२. बेटियों का शारीरिक विकास और सही उम्र में करना चाहिए।३. आज के समय में बेटी बेटा से कम नहीं है वो भी अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता है।४.दहेज प्रथा को हटा देना चाहिए इसकी वजह से रिश्तों में दरार पैदा होता है कई बार ऐसा होता है कि दहेज की वजह से ब बेटियां आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।५. माता पिता को बेटी बेटा को एक समान रुप से रखना चाहिए। भेदभाव नहीं करना चाहिए।६. मसिकधर्म की वर्जनाओ की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।७. लड़कियों को उनके योग्यता के अनुसार शारीरिक गतिविधि करने दे।उसमे प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए।८. बेटियों के शादी के बाद भी उसे बेटो की तरह हक देना चाहिए।इसमें पूरे समुदाय के लोगो को अपना सोच बदलना चाहिए

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  66. महिला हो या पुरुष दोंनों को समान अधिकार मिलना चाहिए।

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  67. इस समस्या के समाधान हेतु स्कूलों को महत्वपूर्ण भूमिका निभाना होगा खास कर शिक्षक की भूमिका अहम है । महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना जागृत करने की जरूरत है ।

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  68. कुछ संस्थानों/विचारों और प्रथाओं को बदलने कि आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि जेंडर के बीच में अंतर जैविक और प्राकृतिक है इस अंतर के कारण उनसे उनके हक और अधिकार कम नहीं होता और न ही उनके जीवन निर्वहन कि स्वतंत्रता, समानता को हनन करने का अधिकार प्रकृति ने किसी को दिया है

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  69. कुछ संस्थानों/विचारों और प्रथाओं को बदलने कि आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि जेंडर के बीच में अंतर जैविक और प्राकृतिक है इस अंतर के कारण उनसे उनके हक और अधिकार कम नहीं होता और न ही उनके जीवन निर्वहन कि स्वतंत्रता, समानता को हनन करने का अधिकार प्रकृति ने किसी को दिया है

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  70. There should be a equal rights for both men and women irrespective of any other factors which differentiate them

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  71. बेटा बेटी दोनों को समान रूप से देखना चाहिए lलड़कियां जब पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बन जाए तब उसका विवाह करना चाहिए l पिता की संपत्ति में पुत्र पुत्री का सामान का अधिकार होना चाहिए lलड़कियों को परिवार का अस्थाई सदस्य नहीं मानना चाहिए मासिक धर्म महिलाओं की एक शारीरिक क्रिया का अंग है इसे इन्हीं रूप में लेना चाहिए और इस समय उन पर किसी भी प्रकार की प्रतिबंध नहीं करना चाहिए

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  72. परिवार में सभी सदस्यों का समान अधिकार होना चाहिए। चाहे वो लड़का हो या लड़की। समाज में विभिन्न प्रकार के जो कुरीतियां है। दहेज प्रथा, बाल विवाह, लड़का -लड़की में भेद करना, लड़का को ज्यादा महत्व देना और लड़की को कम महत्व देना आदि। अर्थात् इन सभी कुरीतियों को सुधारने की आवश्यकता है, तभी हम अच्छा समाज की कल्पना कर सकते हैं।

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  73. 1 पुत्र व पुत्री का सम्पति पर समान अधिकार होना चाहिए।
    2 लड़कियों का विवाह शीघ्र ना करके उसके सही उम्र में करना चाहिए।
    3 पुरुष ही नही महिला भी देखभाल व पोषण कर सकती है।
    4 दहेज प्रथा सभ्य समाज के लिये कलंक है।
    5 बेटे व बेटियों को समान समझना चाहिये।
    6 यह शारीरिक क्रिया है।
    7 शारीरिक गति शीलता पर प्रतिबंध लगाना अनुचित है।
    8 माता पिता के नजरिये में कोई अंतर नही होना चाहिए एवं विवाह के उपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  74. बेटा बेटी को समान अधिकार होना चाहिए।

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  75. Pita Ki sampati me putra our putri Ka sman adikar Hona Chahiye ldkiyo Ka Sadi jldi ni Krna Chahiye langik bhed bhav ni Krna Chahiye masik dhram dhram Ki rudhivadita ko dur Krna Chahiye prachin pramprao par m

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  76. 1. कानूनी रूप पुत्री को भी माता पिता की सम्पत्ति में समान अधिकार दिया जाना चाहिए
    2. इस दिशा में परिवर्तन हो रहा है
    3. पोषण करने वाले महिलाओं भी होती हैं
    4.दहेज प्रथा का सभ्य समाज मे कोई स्थान नही होना चाहिए
    5. बेटी बेटा एक समान
    6. यह एक लैंगिक विविधता है
    7. नही होना चाहिए
    8. सामाजिक रूढ़ि का समापन होना चाहिए

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  77. संविधान की जानकारी , कानून की जानकारी एवं कानूनी शिविर के माध्यम से अपने हक एवं अधिकार को जानना
    समझना तथा कर्तव्य एवं अधिकार को जानना । शिक्षा जीवन का आधार है ।

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  78. परिवार के सभी सदस्य चाहे लड़की हो या लड़का सभी को समान अधिकार देना चाहिए।

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  79. भारत एक पुरुष प्रधान देश है जिसमें पुरुष को ज्यादा महत्व दिया जाता है लेकिन इस रूढ़िवादी को छोड़कर आज के युग में महिलाएं भी सभी क्षेत्र में पुरुषों के समान कार्य कर रहे हैं तो हमें मिला पुरुष को एक समान अधिकार देना चाहिए किसी को छोटा बड़ा समझना अशिक्षा के भाव के कारण है शिक्षा के कारण सबको समान अधिकार मिलना चाहिए

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  80. लड़कियों को भी पूरा हक है,, जितना लड़के का होता है,,, भेदभाव नही होना चाहिए।।
    सभी क्षेत्रों में बेटियो का योगदान होना चाहिए।।

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  81. 1. पुत्र और पुत्री समान रुप से पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी है, इस सोच के साथ समाज को आगे बढ़ने की जरूरत है!
    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह उनके व्यक्तित्व विकास में बहुत बड़ी बाधा है अतः शारीरिक और मानसिक रूप से विवाह के लिए तैयार होने पर ही विवाह करनी चाहिए !
    3. इस रुढ़िवादी धारणा को छोड़कर यह समझना होगा कि स्त्री पुरुष समान रूप से देखभाल / पोषण करने वाले हैं!
    4. दहेज प्रथा समाज में शोषण ,लैंगिक भेदभाव और आर्थिक अपराध को जन्म देता है! अतः इस प्रथा को शत् प्रतिशत समाप्त करना चाहिए!
    5. दोनों को समान मानकर व्यवहार करना चाहिए!
    6. यह एक शारीरिक विकास के अन्तर्गत सामान्य एवं अनिवार्य प्रक्रिया है यह समझ विकसित करने की आवश्यकता है!
    7. लड़कियों को भी समान रूप से बगैर किसी प्रतिबंध के अवसर देने चाहिए!
    8. गलत धारणा है दोनों समान रूप से परिवार की स्थायी सदस्य हैं!

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  82. भारत एक पुरुष प्रधान देश है जहां पर महिलाओं को दूसरा स्थान दिया जाता है । जो कि अनुचित है ,जिस तरह से गाड़ी एक पहिए से नहीं चल सकती उसी तरह से जिंदगी रूपी गाड़ी के लिए भी पुरुष और महिला की जरूरत होती है इसीलिए महिलाओं को सम्मान के साथ पुरुषों के समान सभी अधिकार मिलना चाहिए।

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  83. APARNA ALI,TEACHER,M/S TELASI
    1)Give equal property to son & daughter,because both have equal rights.
    2)After marriage, girls could not fulfil her ambitious.
    3)Both,man& woman
    take care their family.
    4)Dowry system Will be delete from society.
    5)Equal right should be given to son& daughter.
    6)Right Education should b given about mensuration.
    7)Give equal treat to both.(son&daughter).
    8)Parents give equal responsibility to daughter & son,then she feel that, I am permanent member of the family.

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  84. परिवार में पुत्र हो या पुत्री दोनों को समान अधिकार एवं सम्मान मिलना चाहिए।

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  85. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए

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  86. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। माता-पिता बेटा और बेटी दोनों को एकसमान मानें।सोंच बदलें।

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  87. इन सभी प्रश्नों का हल एक ही है शिक्षा
    शिक्षा ही सारी रूढ़िवादी विचारों को हटाकर समाज मे एक नई रोशनी लाती हैं ।आज शहरों में लडक़े लड़कियों में कोई भेदभाव नही जो पढ़ना चाहे कैरियर चुनने की आजादी खानपान लालन पालन एक सा किया जा रहा है।

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  88. महिला व पुरुष दोनों को हर क्षेत्र में समान अधिकार मिलना चाहिए। अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

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  89. लड़कियों में जेंडर असमानता सिर्फ उनके विकास में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज व देश के विकास में बाधक है।

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  90. 1) पुत्र पहले कानूनी तौर पर संपत्ति का अधिकार रखता था पर अब नए कानून के अंतर्गत लड़कियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है।
    2) लड़कियों का जल्द विवाह कराना परिवार अपनी सेक्स जिम्मेदारी को जल्द पूर्ण करना मानते हैं पर लड़कियों को पढ़ने लिखने और उनको सही समय पर विवाह कराना माता-पिता की जिम्मेदारी है
    3) पुरुष को घर का मुखिया माना जाता है क्योंकि पुरुष कमा कर लाता है पर यह धारणा खत्म होनी चाहिए आज लड़कियां पढ़ लिख कर घर चलाने के सक्षम है
    4) दहेज प्रथा समाज की एक गंदी सोच का नतीजा है यह उसी तरह काम करता है जैसे हम बाजार में सामान बेचते हैं अब यह प्रथा धीरे धीरे खत्म हो रहा है और इसे जल्द खत्म करने के लिए हमें लड़कियों को पढ़ाना और उनको सक्षम बनाना जरूरी। दहेज प्रथा कानूनी रूप से भी सही नहीं है।
    5) बेटियों पर बेटों का वरीयता करना गलत है उन्हें भी समान अधिकार है।

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  91. 1-पहले बिन्दु पर हम बात करे तो यह एक सोच का विषय है, इसलिये इसे स्थिति पर छोड देना चाहिये, क्युकि अधिकार तो दोनो का है।
    2-लडकी का जल्दी विवाह या देर से, यह बात लडकी पर निर्भर होनी चाहिये।
    3-समय बदल गया है, अधिकार बराबर तो देखभाल भी बराबर की होनी चाहिए
    4- दहेज प्रथा समाप्त होनी चाहिए लेकिन बडे घरों मे लडकी की डिमांड बहुत होती है
    5-स्थिति के अनुसार सबको समान अधिकार
    6-मैं इसके पक्ष में बिलकुल नहीं
    7-ऐसा कोई काम नहीं जो लडकी न कर सके लेकिन प्रकृति ने उन्हे पुरूषों से अलग बनाया है तो कुछ जगहों पर प्रतिबंध सही है
    8-जब तक बेटी की शादी न हो जाये वह घर की ही सदस्य है, शादी के बाद सरकारी रिकार्ड के लिए एक जगह से नाम हटाना पडता है।

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  92. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  93. 1 जिस तरह पुत्र एवं पुत्री दोनों की अपने परिवार के प्रति समान जिम्मेदारी एवं कर्तव्य होते हैं उसी प्रकार अन्य चीजों मे भी दोनों का समान अधिकार है चाहे वह सम्पति ही क्यों न हो।

    2 लड़कियों को भी अपने जीवन को पूर्ण इच्छा एवं स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार है। उन्हें अपने अनुसार जब भी उचित समय की अनुभूति हो तब विवाह करने की इच्छा जाहिर कर सकते हैं,

    3 ऐसा किसी भी पुस्तक में नहीं लिखा है कि केवल पुरुष एक घर चला सकते हैं बल्कि महिलाएं भी भरण पोषण कर सकती हैं।

    4 दहेज प्रथा एक पुरानी रूढ़ीवादी प्रथा है जो धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है लेकिन अब एक किन्ही क्ष्े त्रों में यह प्रथा पाए जाते हैं हम विद्यालय में बच्चों को अच्छी शिक्षा दे करके इस प्रथा को पूरी तरीके से समाप्त कर सकते हैं।

    5 आज भी हम बेटियों पर बेटों की वरीयता देख सकते हैं अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो चार से पांच बेटियों के बाद भी पुत्र के मोह मे संतान उत्पत्ति करते हैं।

    6 मासिक धर्म शरीर की एक सामान्य क्रिया है इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की रोक टोक, छुआछूत या प्रतिबंध नहीं की जानी चाहिए।

    7 दोनों को ही समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

    8 यह एक निम्न मानसिकता है जबकि इसे ऐसा बोला जा सकता है कि बेटियों के दो दो घर होते हैं।

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  94. पुरुष प्रधान समाज वाली सोच को बदलना होगा। तभी समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार व सम्मान मिल पाएगा।

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  95. वर्तमान समय मे महिला व पुरुष में भेदभाव करना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है। अतः आज के वैज्ञानिक युग मे महिलाओ को भी पुरुषों की ही तरह दर्जा प्राप्त होना चाहिए, उन्हें भी पुरुषो के बराबर अधिकार व सम्मान मिलना चाहिए।

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  96. समानता का अधिकार होना चाहिए।
    समाज में फैले कुरीतियों को दूर करने के लिए सब को आगे आना चाहिए।

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  97. 1.हर औलाद का संपत्ति पर समान अधिकार होना चाहिए।
    2.लड़कियों का विवाह शीघ्र नहीं, सही उम्र में करना चाहिए।
    3.पुरूष ही नहीं महिला भी देखबाल व पोषण कर सकती है।
    4.दहेज प्रथा सभ्य समाज के लिए कलंक है,इसे कानूनन और सामाजिक जागरूकता से बंद किया जाना चाहिए।

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  98. 1,समानता का अधिकार के लिए
    2,सामाजिक रुढिवादी कुरीतियो से निजाद पाने
    3,भेद-भाव को हटाने के लोए
    4,मानव बल, मानव संपति का उचित प्रयोग के लिए,
    5देश के सर्वांगीण विकास के लिए,बहुमुखी विकास के लिए
    6, बढते अपराधो को रोकने के लिए

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  99. प्राचीन काल में शिक्षा के अभाव में लोगों की सोच संकीर्ण भावनाओं से ग्रसित होने के कारण बेटियों के प्रति नकारात्मक सोच रखते थे आज वर्तमान समय में लोगों के शिक्षित होने से लड़कियों को भी लड़कों के सामान दर्जा दिया जा रहा है।

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  100. सभ्य और सुशिक्षित, विकसित समाज के लिए, सम्पूर्ण मानव जाति व देश के विकास के लिए इन सामाजिक रूढ़िवादी प्रथाओं को दूर करना बहुत आवश्यक है। जो कि उचित शिक्षा के द्वारा ही संभव है।

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  101. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए

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  102. परिवार के सभी सदस्यों को समान अधिकार देना चाहिए। उस मिलन का भेदभाव नहीं करना चाहिए कि वह महिला या पुरुष सबको समानता का अधिकार होना ही चाहिए।

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  103. पुरुषों के समान महिलाओं को भी से
    अधिकार मिलना चाहिये।

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  104. प्राचीन काल से ही भारत पुरूष प्रधान देश रहा है सारा निर्णय लेने का अधिकार पुरूषों का ही रहा है और महिलाऍ उपेक्षित रही है वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर अधिकार प्राप्‍त है ओैर सभी क्षेत्रों मे महिलाओंं को समान अवसर दिया गया है इसके बाद भी अशिक्षा के कारण कुछ क्षेत्रों में भेदभाव हो रहा है, लडकियों से सभी भेदभाव वाली प्रथाऍ समाप्‍त होनी चाहिए।

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  105. 1.पुत्र हो या पुत्री पारिवारिक संपत्ति पर दोनों का समान अधिकार होना चाहिए।
    2.लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए, उनकी शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता नहीं होने से आगे चलकर विभिन्न प्रकार के समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    3.समाज में भ्रम है कि पुरुष ही देखभाल करने वाले एवं पोषण करने वाले होते हैं, महिलाएं भी परिवार की अच्छी देखभाल और पोषण करने में सक्षम हैं।
    4.दहेज प्रथा एक समाजिक अभिशाप है, इसका दोनों पक्ष से विरोध करने की आवश्यकता है।
    5.बेटियों और बेटों को समान वरीयता एवं अधिकार देना ही होगा तभी समानता का अधिकार का पालन होगा।
    6.मासिक धर्म एक प्राकृतिक क्रिया है महिलाओं में यह किसी प्रकार का छुआछुत नहीं इसे हमें समझना होगा।
    7.लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, क्योंकि इतिहास काल से लेकर आज तक देखा जाए तो लड़कियां लड़कों से भी अधिक शासन की बागडोर संभालने तथा विज्ञान की क्षेत्र हो सभी जगह लड़कों से अच्छा प्रर्दशन रहा है।
    8.लड़कियां परिवार की अस्थायी सदस्य नहीं होती बल्कि दो परिवारों को जोड़कर दोनों परिवारों के स्थायी सदस्य की भूमिका निभाती है।

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  106. बेटियों में क्षमता की कोई कमी नहीं है वह हर क्षेत्र में आगे बढ़ने में सक्षम है परन्तु हमारे यहां पुरुष प्रधान समाज उन्हें हतोत्साहित करने में कमी नहीं करते इसलिए पुरानी रूढ़िवादी सोच को बदलकर बेटियों को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें।

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  107. देश व समाज में महिला व पुरुषों को सभी क्षेत्र में समान अधिकार मिलना चाहिए

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  108. Desh aur samaj me mahilaon vopurushon kosabhi kshetra me saman adhikar milna chahiye

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  109. pita ki sampatti par Putra putri donon ka saman Adhikar Hai ladkiyon ka Vivah jab chahe tab bhi karna chahie portion kabhi paar Mela donon ka hai Dahej pratha Puri tarah se band hona chahie Mata pita ko badalne chahie bilkul hai usko aana chahie

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  110. Mahila Ho Puri show ladki ho ya ladki Ho har Kshetra mein sabhi Ko saman Adhikar milna chahie

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  111. हमारा देश पुरष प्रधान है किंतु महिलाए भी कम नही है आज वह कंधे सेकंधे मिलाकर चल रही है
    1 पढ़ना सभी का जन्म सिद अधिकार लडकी को पैरो मे खडे होना आवशयक है
    2 बालविवाह पहले होता था अब सबजागरुक है
    3 संपति मे बेटी का अधिकार है जो उसे मिलना निशचित है

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  112. 1.पारिवारिक संपत्ति में पुत्रियों को भी उसमें उनका अधिकार मिलना चाहिए।

    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए, क्योकि लडकिंयो के जीवन में भी उनके कुछ लक्ष्य होते जिन्हे वे पूरे करना चाहती है इसलिए उनको मोका देना चाहिए ।

    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/पोषण करने का अधिकार सही नहीं है।महिला को भी पुरूष के बराबर अधिकार मिलना चाहिए।

    4. दहेज प्रथा एक बिमारी है जो मनुष्य के सोंच को भी बिमार कर देती हैं।

    5. माता-पिता बेटा और बेटी दोनों को समानता का अधिकार दें।

    6. मासिकधर्म की वर्जनाओं की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।

    7. एकसमान शिक्षा-संस्कार देकर बेटा-बेटी दोनों को समानता के नियम का पालन कराना चाहिए।

    8. लड़कियों को कभी भी पराएपन के भाव का अहसास नहीं कराना चाहिए।ऐसा करने से उसके अंदर असुरक्षित होने का भाव उत्पन्न हो सकता है।

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  113. वर्तमान में ये सभी चीजें बदल रही है
    बेटियों को भी बेटों की तरह अधिकार दिए जा रहे है और उनकी सुख सुविधाओं का ख्याल रखा जा रहा है
    और उनके सपनों और उनके आकांक्षाओं का भी सम्मान किया जा रहा है...

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  114. बेटी किसी भी स्तर में बेटों से कम नही हैं ।सामाजिक, राजनीतिक,आर्थिक सभी क्षेत्रों में उत्थान के लिए बेटियों के हित में रूढ़िवादी परंम्परा को बदलना ही सभी के लिए श्रेष्ठ है।

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  115. बेटी किसी भी स्तर में बेटों से कम नही हैं ।सामाजिक, राजनीतिक,आर्थिक सभी क्षेत्रों में उत्थान के लिए बेटियों के हित में रूढ़िवादी परंम्परा को बदलना ही सभी के लिए श्रेष्ठ है।

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  116. बेटा बेटी दोनों को समारोह से समझना चाहिए भिन्न प्रकार के अंतर नहीं करना चाहिए।

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  117. बेटा बेटी दोनों को समान रूप से समझना चाहिए कोई प्रकार का अंतर नहीं करना चाहिए

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  118. कॉरपोरेट बोर्ड कंपनी की कामयाबी तय करते हैं, ऐसे में यहां ऐसे लोग होने चाहिए जो सक्षम हैं, चाहे वह महिला हो या पुरुष। यही तर्क संसद पर भी लागू होता है, कानून बनाने वाले निकाय में सैध्दांतिक रूप से ही सही सक्षम लोग होने चाहिए, न कि लैंगिक आधार पर।शिक्षा के हथियार से लैस करने और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच से महिलाएं समाज में ज्यादा मजबूत स्थान बना सकती हैं और महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन भी कर सकती हैं और वास्तव में अपने अधिकारों की सुरक्षा भी कर सकती हैं। इसके बदले हम कॉरपोरेट बोर्ड में महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग पहले से ही सुन रहे हैं। इससे और घटिया विचार शायद ही हो सकता है।

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  119. शिक्षा के हथियार से लैस करने और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच से महिलाएं समाज में ज्यादा मजबूत स्थान बना सकती हैं और महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन भी कर सकती हैं और वास्तव में अपने अधिकारों की सुरक्षा भी कर सकती हैं।दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है।

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  120. लड़की और लड़के में कोई भेद नहीं करना चाहिए। दोनों को ही हर क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त है। घर में भी लड़की को समान अधिकार देने चाहिए। पिता के संपत्ति में पुत्री का समान अधिकार है किन्तु दहेज प्रथा को समाप्त करना चाहिए। विवाह के बाद भी पुत्री अपने माता-पिता की पुत्र के समान ही देख भाल भी करें। कर्त्तव्य भी समान रूप से निभाने चाहिए।

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  121. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार मिलना चाहिए

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  122. 1. पुत्रऔर पुत्री दोनों को पारिवारिक सम्पत्ति पर समान अधिकार होना
    2.लड़कियों का विवाह भी लड़को के समान सही उम्र में हो
    3. पुरुषों के समान महिलाएं भी देखभाल एवं पोषण कर सकती है
    4. दहेज प्रथा कानूनी रूप से अपराध है
    5. बेटा, बेटी एक समान
    6. मासिक धर्म को किसी भी कार्य में बाधक न माना जाए
    7. लड़कियों की शारिरिक गतिशीलता पर पाबंदी न हो
    8. लड़कियां शादी के बाद ससुराल चली जाती है ,फिर भी उसे परिवार की सदस्य मानना

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  123. Sabhi ko saman shiksha dena chahiye ling bhed nhi kiren balikao ko shiksha deve.

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  124. निश्चित रूप से भारतीय समाज पितृसत्तात्मक है।हालांकि अब इसमें बदलाव होना शुरू हो गया है तथापि अभी भी काफी कुछ करना बाकी है।
    महिलाओं को पुश्तैनी संपत्ति में समानता का कानूनी हक तो मिल गया है लेकिन सामाजिक तौर पर इसे पुर्णतः ग्रहण नहीं किया गया है।इस भेदभाव पूर्ण विचारों को बदलने की आवश्यकता है।।
    परिवार का पोषण महिलाएँ भी कर सकती है और कर भी रही हैं।दहेज की कुप्रथा को कुछ अंशों में अब सामाजिक बुराई के रूप में देखा जाता है,इस बात पर अब समाज जागरूक हो रहा है।लड़कियों के शीघ्र विवाह कर देने से अधिकांश मामलों में उनकी प्रगति रुक जाती है और वे वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं कर पाती हैं।
    मासिक धर्म का आना एक प्राकृतिक व्यवस्था है, इससे संबंधित वर्जनाएँ महज़ दकियानूसी है।
    इस प्रकार कई रूढ़ परंपरा अभी भी समाज में व्याप्त है जिसमें आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।

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  125. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार मिलना चाहिए

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  126. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार मिलना चाहिए

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  127. महिलाओं को भी समाज के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार मिलना चाहिए

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  128. इन्द्र सिंह चन्द्रा, उच्च वर्ग शिक्षक , शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला काशीगढ़ , विकास खण्ड - जैजैपुर, जिला- जांजगीर -चांपा , (छ.ग.)

    1. पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता के दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2. लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्म निर्भर हो जाए तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/ पोषण करने का अधिकार सही नहीं है। महिला और पुरुष एक समान हैं।
    4. विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
    5. बेटी और बेटा दोनों भगवान की देन हैं । दोनों को समान दृष्टिकोण से समझना चाहिए।
    6. यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है। मासिक धर्म की वर्जनाओं की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।
    7. लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है उन्हें अपना क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8. लड़कियों को कभी भी पराए पन के भाव का एहसास नहीं कराना चाहिए ऐसा करने से उसके अंदर असुरक्षित होने का भाव उत्पन्न हो सकता है।

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  129. पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी तो है ही बेटी भी उतना ही उत्तराधिकारी है जितना पुत्र का।
    लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए।
    पुरुष और महिलाएं दोनों ही देखभाल एवं पोषण करने में सक्षम है।
    दहेज़ प्रथा कानूनन अपराध है।
    बेटियों पर बेटो को वर्यता से सहमत हूं।
    मासिक धर्म एक प्राकृतिक है और उसके ऊपर जो सारी रूढ़िवादी है उसे दूर करना चाहिए।
    लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
    लडकियां परिवार की अस्थाई सदस्य है।

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  130. सभी का बराबर अधिकार होना चाहिए।

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  131. लड़की लड़का में भेदभाव नहीं करना चाहिए, समाज मे दोंनो को समान भागीदारी देना होगा तभी परिवार, समाज, राज्य एवं देश का कल्याण होगा।

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  132. यदि हम अपने आप से ये वादा कर लें कि हम जेंडर असमानता की शुरुआत अपने घर से ही करेंगे, और अपने बच्चों मे बचपन से ही ऐसे ही संस्कार डालें कि लड़के लड़की में कोई फर्क नहीं और वैसे ही संस्कार डालें तो शायद हम कुछ हद कई रूढ़ियों को तोड़ सकते हैं! धन्यवाद

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  133. लड़कियों को भी लड़कों की तरह संपत्ति में समान हिस्सा दिया जाना चाहिए।
    लड़कियों का विवाह भी एक समय के बाद ही करना चाहिए।
    आज महिलाएं भी घर संभाल रही है परिवार का पोषण कर रही है।
    दहेज टोटल बंद करना चाहिए
    लड़कियों को भी लड़कों के समान समान अधिकार देना चाहिए।

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  134. लड़के लड़कियों में अंतर करने की वर्तमान स्थिति नहीं है। सभी को समान अधिकार है। सम्पत्ति में लड़की का हक भी उतना ही है जितना लड़के का। दहेज देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी जब लड़की को घर की बेटी माना जाएगा। ये सभी मान्यताएं बदलने की जरूरत है।

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  135. रूढिवादी विचारों मे बदलाव की जरूरत है
    1-लडके/लडकियों को पिता की सम्पत्ति मे बराबरी का अधिकार है कानूनी अधिकार है बन गए हैं।
    2) लडकियों के विवाह निश्चित आयु में होनी चाहिये।
    3)आज के युग में महिलाएं ही भी पति के साथ साथ काम कर रही हैं।
    4)दहेज प्रथा समाजिक बुराई है उसे बंद करनी चाहिए।
    5)बेटा एवं बेटियों मे अंतर समाप्त होनी चाहिए।
    6)मासिक धर्म के अंतर को समाप्त कि जरूरत है।
    7)लडकों के समान लडकियों को भी पूरी आजादी दी जानी चाहिए।
    8)लडकियों को परिवार की आस्थाई सदस्य होनी चाहिये

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  136. Ek bade jagrukta abhiyan ki jaroorat hai kyoki Abhi bhi kathani aur karani me antar dekha ja sakta hai.

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  137. आज के समय के लड़के व लड़कियां कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं संपत्ति पर भी लड़का व लड़की दोनो का सामान अधिकार है।दहेज प्रथा एक कुरीति है जिसे बन्द करना चाहिए तथा लड़कियों की शादी उनके सक्षम होने पर ही करना चाहिए। आज स्त्रियां भी कार्य कर रही हैं व घर का पालन पोषण भी कर रही हैं । मासिक धर्म की रूढ़ियों को खत्म करना चाहिए वैसे पहले की अपेक्षा आज के समय मे रूढ़ि वादिता काफी कम हो चुकी हैं लड़के व लड़कियों को समान अवसर प्रदान किये जा रहे हैं परंतु अभी भी कुछ क्षेत्रों में रूढ़िवादिता कायम है ।

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  138. वर्तमान समय की मांग यही है कि अब जेंडर सम्बन्धित पुरानी मान्यताओ एवम असंगत रूढ़िवादी नियमो और परंपराओं को सिरे से खारिज किया जाकर समानता स्वीकार्यता और वैज्ञानिक विचारधारा को अपनाकर समाज मे एक लैंगिक संतुलन लाया जाए।जैविक एवम नैसर्गिक शारीरिक भिन्नता को स्वीकार कर घर समाज और देश के समग्र विकास में सभी की महती भूमिका होनी चाहिए।

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  139. बिंदु क्र.1से 8 जेंडर असमानता को दर्शाता है।समय परिवर्तनशील है,इसलिए आज पुराने विचारों और प्रथाओं को बदलना ही होगा।आज महिलाएं पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चल रही है ,तभी हमारा देश हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है।महिलायों को भी पुरुषों की भांति आर्थिक,सामाजिक,पारिवारिक,राजनीतिक,सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में बराबरी का हक पाने का अधिकार है,जो उसे मिलना ही चाहिए।लिंग भेद अनुचित है।

    दिलीप कुमार वर्मा
    सहायक शिक्षक(L.B.)
    शा.प्रा.शा.सुन्द्रावन
    वि.ख.-पलारी
    जिला-बलौदाबाजार(छ. ग.)

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  140. वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबरी का अधिकार प्राप्त है।विभिन्न संस्थाओं विचारों और प्रथाओं को आज के इस वर्तमान युग मे बदलने की आवयकता है।
    देश वा समाज मे महिला व पुरुषों को सभी क्षेत्र मे समान अधिकार मिलना चाहिए।

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  141. वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबरी का अधिकार प्राप्त है।विभिन्न संस्थाओं विचारों और प्रथाओं को आज के इस वर्तमान युग मे बदलने की आवयकता है।
    देश वा समाज मे महिला व पुरुषों को सभी क्षेत्र मे समान अधिकार मिलना चाहिए।

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  142. वर्तमान समय में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबरी का अधिकार प्राप्त है।विभिन्न संस्थाओं विचारों और प्रथाओं को आज के इस वर्तमान युग मे बदलने की आवयकता है।
    देश वा समाज मे महिला व पुरुषों को सभी क्षेत्र मे समान अधिकार मिलना चाहिए।

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  143. 1.हर औलाद का संपत्ति पर समान अधिकार होना चाहिए।
    2.लड़कियों का विवाह शीघ्र नहीं, सही उम्र में करना चाहिए।
    3.पुरूष ही नहीं महिला भी देखबाल व पोषण कर सकती है।
    4.दहेज प्रथा सभ्य समाज के लिए कलंक है,इसे कानूनन और सामाजिक जागरूकता से बंद किया जाना चाहिए।

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  144. 1-- पिता के संपत्ति पर दोनों का बराबर अधिकार है।
    2--लड़कियों के विवाह की आयु 18 वर्ष है ,वह अपना चुनाव कर सकती है ।
    3 लड़कियों भी माता पिता का पालन करती है
    4दहेज प्रथा के लिए समाज संवेदनशील बने ।
    5 --- बेटा और बेटियां दोनो समान है ।।
    6 -- मासिक धर्म तो ,जैविक विभिन्नता है। जो कि स्वाभाविक और प्राकृतिक है ।
    7 -- आज लड़कियों भी सभी खेल खेलती है ।
    8--- लड़की भी स्थाई सदस्य है ।

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  145. 1.यदि बेटी का विवाह नही हुआ है या फिर बेटी तलाकशुदा या फिर विधवा या असहाय है तो उसे अपने पिता की संपत्ति पर कानूनी अधिकार होना चाहिये। 2.लड़कियों को प्रायः पराया धन समझा जाता है इसलिए उनका शीघ विवाह करने की सोचा जाता है जो कि बहुत गलत है। लड़कियों को भी लड़को की तरह अपना कैरियर बनाने और अपने विवाह करने के लिए समय देना चाहिए। हमारे समाज मे ये धारणा आम है कि यदि लड़कियों की शादी में देर हो रही है तो जरूर लडकी में कुछ खराभी है। 3. पुरूष देखभाल करने वाले होते है यह भी बात गलत । लड़कियां भी देख भाल करती हैं।। 4. दहेज प्रथा समाज की एक गन्दी बीमारी है जो आज भी हमारे समाज मे व्यपात है। जिसे जड़ से समाप्त करने की जरुरत है।। 5. बेटियों पर बेटों को वरीयता यह भी समाज की एक गन्दी बुराई है। बेटों और बेटियों में किसी तरह का कोई भेद नही होना चाहिए।। 6. मासिक धर्म एक प्राकृतिक क्रिया है इसके कारण महिलाओं को हीन भावना से नही देखना चाहिए।। 7.लड़कियों की शारिरिक गतिशीलता लड़को के समान होना चाहिए उनमे किसी प्रकार का कोई भेदभाव नही होना चाहिये।। 8. यह मानना भी बहुत गलत है कि लड़कियां परिवार की अइस्थाई सदस्य हैं।

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  146. वर्तमान समय में महिला व पुरुष में भेदभाव करना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है।अतः आज के वैज्ञानिक युग में महिलाओं को भी पुरुषों की ही तरह दर्जा प्राप्त हो चाहिए,उन्हें भी पुरुषों के बराबर अधिकार व सम्मान मिलना चाहिए।

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  147. Aj bhi hamare desh aur samaj me lingbhed ki bhavna vyapt hai. In kuprathao ko samaj se dur karne ki avashyakta hai.

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  148. कुछ क्षेत्रों में निर्णय लेने का अधिकार आज भी पुरुषों को अधिक प्राप्त है। महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए हर क्षेत्र में महिलाओं को स्वतंत्र निर्णय लेने से वंचित नही किया जाना चाहिए।लड़का और लड़की दोनो को समान अधिकार मिलना चाहिए।

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  149. वर्तमान समय में पुत्र पुत्री में भेदनहीं करना चाहिए। आप कानूनी हक से पुत्री को भी अपने माता-पिता के जय जाद में बराबरी का हकदार है अतःहमें कानूनी लड़ाई लड़ने की आवश्यकता न हो इसलिए बचपन से पुत्र और पुत्रियों में अच्छे संस्कार डालें और उनमें आपसी भेदभाव ना करें।

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  150. Ladhka ladhki dono me antar nai karna chahiye

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  151. 1. पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता के दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2. लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्म निर्भर हो जाए तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/ पोषण करने का अधिकार सही नहीं है। महिला और पुरुष एक समान हैं।
    4. विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
    5. बेटी और बेटा दोनों भगवान की देन हैं । दोनों को समान दृष्टिकोण से समझना चाहिए।
    6. यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है। मासिक धर्म की वर्जनाओं की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।
    7. लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है उन्हें अपना क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8. लड़कियों को कभी भी पराए पन के भाव का एहसास नहीं कराना चाहिए ऐसा करने से उसके अंदर असुरक्षित होने का भाव उत्पन्न हो सकता है।

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  152. यदि हम अपने आप से ये वादा कर लें कि हम जेंडर असमानता की शुरुआत अपने घर से ही करेंगे, और अपने बच्चों मे बचपन से ही ऐसे ही संस्कार डालें कि लड़के लड़की में कोई फर्क नहीं और वैसे ही संस्कार डालें तो शायद हम कुछ हद कई रूढ़ियों को तोड़ सकते हैं! धन्यवाद

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  153. लङका और लङकी मे भेद न करते हुए दोनो को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता प्रदान करते हुए हम सबको प्रयासरत रहकर समाज को उन्नत बनाना चाहिए।

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  154. लड़कियो की शादी शीघ्र ही करना चाहिऐ उन्हे शारीरिक तौर पर मजबूत होने देने चाहिऐ। पिता की जायदाद मे बराबर हिस्सा मिले। परिवार और समाज मे उसकी बातो को महत्व मिले।

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  155. वर्तमान समय में महिला व पुरुष में भेदभाव करना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है! बेटे को वरीयता देना गलत है. आज के वैज्ञानिक युग में महिलाओं को भी पुरुषों की ही तरह सम्मान मिलना चाहिए. उन्हें भी पुरुषों के बराबर अधिकार व सम्मान मिलना चाहिए ।

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  156. लडकी और लडका दोनो को समानता का अधिकार मिलना चाहिए, क्योकि वर्तमान में लडकियॉ हर क्षेत्र में आगे आ रही है ।अब लडकियॉ कोई भी ऐसा कार्य नही है जो कर न सके।
    लडकियो की विवाह कम उम्र में नही करनी चाहिए तथा जितना हो सके पढाई में अधिक ध्यान देना चाहिए।
    बेटिया पढेगी तो समाज तथा देश के विकास में योगदान देगी।

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  157. सचमुच में आज देखो तो कई शेत्रों में लड़कियां , लड़कों से बेहतर प्रदर्शन कर रही. इसका कारन यही है की माता पिता लड़कों पर कोई नियंत्रण या पाबन्दी नहीं रखता क्योकि वाही देखभाल पालना पोषण करने वाला है , कुल को बढ़ने वाला है , उत्तराधिकारी है . वहीँ लड़कियों पर अनेक पाबन्दी है . सारा उपदेश लड़कियों के लिए है . इसका परिणाम यह आ रहा है की लड़कियां ज्यादा जिम्मेदार ,इमानदार और सुयोग्य है . वहीँ आजकल लड़के बुरी संगती , नशा , अशिष्ट व्यव्हार , ईमानदारी की कमी और अन्य दुष्टाचरण बढ़ रहा है . लड़का और लड़कियों पर सामान व्यव्हार करनी चाहिए . पाबंदियां दोनों पर हो . बच्चा कहाँ गया है दोनों का सामान ख्याल राखी जानी चाहिए

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  158. मुझे समाज की इस रवैया से सख्त ऐतराज है जिसमें बेटियों को इस रूढ़िवादी विचारधारा से जूझना पड़ता है बेटा हो या बेटी दोनों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान देना चाहिए जिससे बेटियों को इन आठ प्रकार के चरणों से गुजरने से बचाया जा सके

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  159. बेटा या बेटियां दोनों को ही समान दृष्टिकोण से देखना चाहिए हर एक व्यक्ति को समाज को और इस सारे संसार को ताकि कभी भी बेटियों के साथ या बेटों के साथ किसी प्रकार का भी गलत व्यवहार ना हो सके इस बात का हमें ही नहीं बल्कि पूरे समाज को ध्यान रखना चाहिए कि बेटा और बेटी दोनों ही समान होते हैं किसी को भी ऊपर नीचे नहीं करना चाहिए

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  160. 1.पुत्र और पुत्री का परिवार की संपत्ति पर समान अधिकार होना चाहिए 2. लड़कियों का विवाह सही उम्र में करना चाहिए 3. महिलाएं भी हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं और वह भी देखभाल करने में सक्षम होती हैं 4. दहेज प्रथा कानूनी तौर पर बंद होनी चाहिए 5. बेटियों और बेटों का स्थान माता-पिता के दृष्टि में समान होना चाहिए 6. मासिक धर्म एक शारीरिक प्रक्रिया है इससे जुड़ी रूढ़िवादी धारणाओं को दूर करने की आवश्यकता है 7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाना अनुचित है उन्हें शारीरिक क्षमता के अनुकूल कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए 8. माता पिता को पुत्री के विवाह के पश्चात भी स्थाई सदस्य समझना चाहिए

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  161. जब हम समाज मे समानता कि बात करते हैं तो सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए चाहे वह पुरुष हो या स्त्री परंतु हमे यह भी ज्ञात होने चाहिए कि समानता के अंतर्गत अधिकारों के साथ कर्तव्यों और दायित्वों की भी अहम भूमिका होती है जिसमें पुरुषों के साथ स्त्रियों की भी सहभागिता होनी जरूरी है ।
    कहने से तात्पर्य लाभ के दृष्टिकोण से समानता की गुहार सही नही इसमे कर्तव्यों का भी स्थान हो ।

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  162. Samaj Ko Apne drishtikon Mein Parivartan karna chahie jisse Ki Beta aur beti ko samaj mein sthit Ke Liye ladna Na Pade donon ko Saman Adhikar aur Saman Samman Milana chahie

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  163. बेटा हो या बेटी दोनों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान देना चाहिए । जिससे बेटियों को इन 8 प्रकार के चरणों से गुजरने से बचाया जा सके , एवं बेटियों को इन रूढ़िवादी विचारधाराओं से कभी जूझना ना पड़े।

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  164. लड़की लड़का भेदभाव नहीं करना चाहिए

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  165. जेंडर संबधी भेदभाव को हमे मिटाने की शुरुआत अपने घर से करना चाहिए।बेटा हो या बेटी दोनों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान देना चाहिए । जिससे बेटियों को इन 8 प्रकार के चरणों से गुजरने से बचाया जा सके , एवं बेटियों को इन रूढ़िवादी विचारधाराओं से कभी जूझना ना पड़े।

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  166. बेटा हो या बेटी दोनों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान देना चाहिए । जिससे बेटियों को इन 8 प्रकार के चरणों से गुजरने से बचाया जा सके , एवं बेटियों को इन रूढ़िवादी विचारधाराओं से कभी जूझना ना पड़े।

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  167. बेटा हो या बेटी दोनों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान देना चाहिए । जिससे बेटियों को इन 8 प्रकार के चरणों से गुजरने से बचाया जा सके , एवं बेटियों को इन रूढ़िवादी विचारधाराओं से कभी जूझना ना पड़े।
    जेंडर संबधी भेदभाव को हमे मिटाने की शुरुआत अपने घर से करना चाहिए।बेटा हो या बेटी दोनों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार और सम्मान देना चाहिए । जिससे बेटियों को इन 8 प्रकार के चरणों से गुजरने से बचाया जा सके , एवं बेटियों को इन रूढ़िवादी विचारधाराओं से कभी जूझना ना पड़े।

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  168. 1.कानूनी तौर पर पुत्र एवं पुत्रियाँ दोनों
    पारिवारिक संपत्ति के बराबर हकदार
    होते है फिर भी लड़कियॉं ससुराल जानें
    के बाद भाई के लिए छोड़ जाती है
    क्योंकि अपनें बिताए बचपन के घर को
    वह सुखी देखना चाहती है।
    2.लड़कियों का शीघ्र विवाह अशोभनीय
    कृत्य है। जिस तरह लड़कों के काबिल
    होनें के बाद उनका विवाह करते हैं उसी
    तरह लड़कियों को भी अच्छी शिक्षा के
    बाद काबिल होनें पर विवाह करना
    चाहिए ताकि अपनें नई पीढ़ी का मार्ग
    प्रशस्त कर सकें क्योंकि मॉं ही किसी
    व्यक्ति का पहला गुरू होता है।
    3 . आजकल केवल पुरूष ही पोषण/
    देखभाल करने वाला कहना गलत है |
    महिलाएं भी आजकल पुरूषों के साथ
    कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है तथा
    परिवार का पोषण कर रही है।
    4 . दहेज़ प्रथा एक सामाजिक बुराई है ।
    आजकल इनका स्वरूप बदल गया है
    लेकिन खत्म नहीं हो पाया जो
    लड़कियों के लिए एक अभिशाप बन
    गया है।
    5 बेटियों की जगह बेटों को वरीयता देनें से
    बेटियाें में हीन भावना पन्ने लगती है।
    6. मासिक धर्म एक जैविक प्रक्रिया है।
    जिस तरह हममें अन्य क्रिया होती है।
    7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर
    प्रतिबंध लगाना अनुचित है।
    8. लड़कियॉं कभी भी अस्थायी सदस्य नहीं
    होती वे जहॉं भी रहे हर पल अपनें
    बचपन के घर से जुड़ी रहती है तथा हर
    सुख-दुख:को अंतर्मन से एहसास करती
    है अतः वह स्थाई सदस्य ही रहती है।
    यह तो देखनें वालों का अपना-अपना
    नजरिया होता है।
    हमें चाहिए कि लड़का लड़की में भेदभाव किए बिना दोनों को समभाव से स्वीकार करें।


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  169. Laws have been made for equal rights for women too, women have the right to equality in every sphere of society, in every work, in every direction, in every way

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  170. परिवार में बेटा बेटी का एक समान अधिकार होना चाहिए

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  171. एक समान shikchha देकर लकड़ी लकड़ा दोनों को समान अधिकार देना चाहिए।

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  172. 1.माता-पिता की सम्पति पर बेटियों का भी बराबर अधिकार होना ही चाहिए। 2.जब लड़कियां चाहे और सही उम्र में विवाह होने चाहिए। 3.आजकल महिलाएं भी अपने घर की जिम्मेदारी निभाती है। 4.दहेज लेना-देना दोनों बंद करना ही होगा।यह हमारे समाज के लिए अभिशाप है। 5.माता पिता की नजरों में बेटाबेटी दोनों को समान देखना चाहिए। 6. मासिक धर्म के समय परिवार का सहयोग अत्यंत आवश्यक है। इसे कोई बीमारी नहीं मानना चाहिए। यह प्राकृतिक है। 7. लड़कियों को शारीरिक गतिशीलता पर रोक लगाना बिल्कुल गलत है। गतिशीलता पर रोक के कारण ही हमारे समाज में लड़कियां खेल के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाती हैं। 8.हमें यह धारणा या पूर्वाग्रह बिल्कुल हटा देनी चाहिए कि लड़कियां शादी के बाद पराई हो जाती है। लड़कियां भी परिवार की अटूट हिस्सा है वह जब चाहे आ सकती है जब चाहे जा सकती है ।

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  173. महिलाओं को समाज, परिवार में किसी प्रकार का भेद -भाव नहीं होना चाहिए समान व्यवहार करना, अच्छी शिक्षा देना।

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  174. मेरे विचार में निम्न कहावत सही है - " बेटा . बेटी एक समान ' नर नारी एक समान " इस कथन का पालन करते हुए हर समुदाय के लोगों को चाहिए कि वे लड़का और लड़की दोनो को प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार प्रदान करें। जेन्डर भेद न करे। धन्यवाद !

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  175. सावित्री कोसमा (सहायक शिक्षिका प्राथमिक शाला सलामपारा) संकूल-गोटाटोला विकास खंड-मोहला जिला-राजनंदगांव छत्तीसगढ़ राज्य

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  176. 1. यदि संपत्ति आवश्यकता से अधिक हो, तो पुत्रियों को भी उसमें उनका अधिकार मिलना चाहिए।और यदि संपत्ति आवश्यकता से कम की श्रेणी में हो तो ऐसा नहीं होना चाहिए.. क्योंकि मेरे पड़ोस में मैंने देखा है।एक बुज़ुर्ग की बेटी अपने पिता से आकर कहती थी...मेरे हिस्से को बढ़ाकर दो वरना केस कर दुँगी।ऐसे कुछ और उदाहरण मैंने देखे हैं..मारपीट भी!

    2. लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए... क्योंकि ऐसा कर देने से उन्हें उन सपनों को भूलना पड़ जाता है...जो कभी वह पूरा करना चाहती थी।

    3. केवल पुरुषों को ही देखभाल/पोषण करने का अधिकार सही नहीं है।महिला और पुरुष एकसमान है।

    4. दहेज प्रथा कैंसर के समान है।प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इसका प्रतिकार अनिवार्य होना चाहिये।

    5. माता-पिता बेटा और बेटी दोनों को एकसमान मानें।सोंच बदलें।

    6. मासिकधर्म की वर्जनाओं की रूढ़िवादिता को दूर करना चाहिए।

    7. एकसमान शिक्षा-संस्कार देकर बेटा-बेटी दोनों को समानता के नियम का पालन कराना चाहिए।

    8. लड़कियों को कभी भी पराएपन के भाव का अहसास नहीं कराना चाहिए।ऐसा करने से उसके अंदर असुरक्षित होने का भाव उत्पन्न हो सकता है।

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  177. यदि संपत्ति अधिक है तब बेटी को भी देना चाहिए। ‌। लड़कियों को भी अपनी स्वातंत्र्ता मिलनी चाहिए। केवल पुरुष देखभाल करने वाले या पोषण करनेवाले नहीं है । दोनों एक समान है। दहेज प्रथा को समाप्त करना है। बेटा बेटी दोनों एक समान हैं । हमें हमारा सोंच बदलना है। मासिक धर्म की वर्जनाओं की रुढ़ि वादियां को दूर करना है। लड़कियों और लड़कों को समान अधिकार मिलना चाहिए।

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  178. Ye sab purani parampara hai. Shiksha ke prasar k karan Dhire dhire ye parampara samapt ho rahi h .

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  179. यदि हम अपने आप से ये वादा कर लें कि हम जेंडर असमानता की शुरुआत अपने घर से ही करेंगे, और अपने बच्चों मे बचपन से ही ऐसे ही संस्कार डालें कि लड़के लड़की में कोई फर्क नहीं और वैसे ही संस्कार डालें तो शायद हम कुछ हद कई रूढ़ियों को तोड़ सकते हैं!

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  180. हर क्षेत्र में महिला को समानता का अधिकार है। महिलाओं को अपने हक के लिए जागरूक रहना चाहिए।

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  181. 1पुत्रियों को भी सम्पत्ती का समान अधिकार मिलना चाहिए।
    2 लड़कियों को लड़कों के समान स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार है।
    3 लड़कियों को सही देखभाल और पोषण का अधिकार मिलना चाहिए
    4दहेज प्रार्थना कानूनन अपराध है अतः सभी ब्यक्तियों को इसका बहिष्कार करना चाहिए।
    5बेटे व बेटियों को समान वरीयता मिलना चाहिए।
    6मासिक धर्म प्राकृतिक प्रक्रिया है इससे सम्बन्धित रुढ़िवादी विचार का परित्याग करना चाहिए।
    7 लड़कियों को लड़कों।के समान शिक्षा, खेल, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्रों में सहभागिता का अवसर प्रदान करना चाहिए।
    8 लड़कियों कोसदैव सम्बल प्रदान करना चाहिए।

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  182. जेंडर असमानता में समानता लाने के लिए हमें सर्वप्रथम अपने - अपने परिवार से ही शुरुआत करनी चाहिए , बेटे - बेटियों से समान व्यवहार, समान कार्य , समान अधिकार देना चाहिए। अपने आसपास पडो़सी और समाज में भी जागरुकता फैला सकते है । हम शिक्षक वर्ग इस समाजिक रूढि़वादियों को रोकने के लिये हमें हमारे स्कूल से ही शुरुआत करनी चाहिए, क्योकि शिक्षक ही अच्छे मार्गदर्शक और प्रेरणादाता है ।

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  183. महिलाओं को समाज के हर क्षेत्र हर कार्य हर प्रकार से समानता का अधिकार मिलना चाहिए

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  184. लड़की और लड़के में कोई अंतर नहीं है हमारा सामाज और सामाजिक रीति रिवाज ही जेंडर असमानता और रुढ़िवादीता को बढ़ावा देते हैं अत: हमें अपने घर से ही जेंडर असमानता को दूर करने का प्रयास करना चाहिए

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  185. 1पुत्र ही नहीं पुत्री भी पारिवारिक सम्पत्ति की कानूनी हकदार है। 2 लड़कियों की शादी जल्दी नहीं करनी चाहिए, जब तक लड़कियां शारीरिक मानसिक रूप से परिपक्व v apne सपनो को पूरा न कर ले। 3 केवल पुरुष ही नहीं महिला भी देखभाल करने व पालन पोषण करने में सक्षम हैं। 4 दहेज प्रथा एक जहर के समान है। दहेज न लेना न ही देना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी सुरक्षित रहे। 5 माता पिता अपने बेटी और बेटे को एक समान माने व दोनों को समानरूप से सम्मान दे। 6 मासिक धर्म संबंधी रूढ़िवादिता को समाप्त कर देना चाहिए ताकि लड़कियों को परेशानी न हो। 7। लड़का लड़कियां माता पिता के लिए समान होनी चाहिए, व दोनों के साथ समान व्यवहार करनी चाहिए।लड़कियों के शादी के पश्चात् भी स्थाई सदस्य मानना चाहिए पराया नहीं।

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  186. 1. पुत्र एवं पुत्री दोनों ही पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी होते हैं।
    २. लड़कियों का विवाह कानून में बनाई गई आयु के अनुसार ही करना चाहिए। अगर उनका कोई सपना है, और विवाह करने से वह टूट जाता है तो उन्हें पहले अपना सपना पूरा कर लेने की आज़ादी होनी चाहिए और विवाह के पूर्व उनसे पूछ भी लेना चाहिए।
    ३. लड़की या महिलाएं, पुरुष के समान देखभाल एवं पोषण कर सकती हैं। वह अपने और अपने परिवार की जिम्मदारी उठाने के काबिल होती है।
    4. दहेज प्रथा एक रोग के समान है और इसका बहिष्कार हर व्यक्ति को करना चाहिए।
    5. बेटा और बेटी दोनो ही एक समान हैं और माता पिता को दोनों को समानता का अधिकार देना चाहिए।
    6.मासिक धर्म की वर्जनायें एक रुदीवादिता विचारधारा है विज्ञान में इस मासिक धर्म के बारे में पूरी तरह से स्पष्ट किया गया है।
    7.लड़कियों के शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध लगाना नही चाहिए क्योंकि उनको समानता का पूर्ण अधिकार है।
    8.लड़कियां परिवार की स्थाई सदस्य है माता पिता को उन्हें समानता देनी चाहिए क्योंकि वे परिवार का एक हिस्सा है।

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  187. 1 पुत्र और पुत्री दोनों पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी होना चाहिए
    2 लड़कियों का शीघ्र विवाह नहीं करना चाहिए
    3 पुरुष के साथ महिलाएं भी परिवार की देखभाल और पोषण करने वाली होती है
    4 दहेज प्रथा को खत्म करना चाहिए
    5 बेटियों को भी बेटों के बराबर समझना चाहिए
    6 मासिक धर्म के समय लड़कियों पर किसी भी तरह की पाबंदियां नहीं लगानी चाहिए
    7 लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए
    8 लड़कियां परिवार की अस्थाई सदस्य हैं इस धारणा को भी बदलना चाहिए

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  188. कुछ एक को छोड़कर सब चीज आज सबके लिए हो गया है,स्वतः समय के साथ बदल रहा है|बात करें हिस्सेदारी की ,,तो है पुत्रों को दी जाती है क्योंकि यह ज्यादातर संपति पर निर्भर होता है,,लेकिन पुत्री को भी पूछा जाता है|

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  189. Pariwar k sabhi sadsyon ko saman adhikar milna chahiye chahe ladka ho chahe ladki

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  190. 1. दोनों समान संपत्ति की उत्तराधिकारी है।
    2. उन्हें पढ़ा लिखा कर अपने पैर में खड़े होने देना चाहिए।
    3. महिला भी कर सकती हैं।
    4. दहेज प्रथा को समाप्त करना चाहिए।
    5. नहीं करना चाहिए।
    6. सामान्य एवं उचित रखना चाहिए।
    7. पाबंद नहीं लगाना चाहिए।
    8. नहीं लड़कियां भी माता पिता की देखभाल जीवन भर कर सकती हैं।

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  191. 1-पुत्र हो या पुत्री दोनों का स्थान माता पिता की दृष्टि में समान होना चाहिए।
    2-लड़कियां जब पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर हो जाय तब उनकी इच्छा के अनुसार सही उम्र में विवाह होना उचित है।
    3-महिला भी हर छेत्र में आगे आ रही है।वे पुरुष की तरह देखभाल करने में सक्षम होती है।
    4-विवाह में दहेज नामक दानव का कोई स्थान नही होना चाहिए।
    5-बेटी और बेटे दोनों भगवान की देन है।दोनों को समान समझना चाहिए।
    6-यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है।
    7-लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों प्रतिबंध अनुचित है।उन्हें अपनी क्षमता अनुकूल कार्य करना चाहिए।
    8-माता पिता की नजरिये में दोनों में कोई अंतर नही होता इसलिये विवोपरांत भी अपने परिवार का स्थायी सदस्य समझना चाहिए।

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  192. लड़का हो या लड़की संपत्ति पर दोनों का समान अधिकार होता है दूसरा कम उम्र में विवाह कभी नहीं करना चाहिए लड़कियों को पहले आत्मनिर्भर होने देना चाहिए ताकि वह भी ग्रुप से अपने आप को कभी कम ना समझो महिलाएं भी देखभाल कर सकती हैं इस मामले में पुरुष से अच्छा काम करके दिखाती हैं दहेज एक कुप्रथा है और जो भी यह करता है कानून और उसे अपराध की श्रेणी में लाकर कड़ा से कड़ा दंड देना चाहिए बेटा और बेटी में कोई भेद कभी नहीं करना चाहिए यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है इस पर किसी प्रकार का गलत सोचना नहीं होना चाहिए किसी भी शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए परिवार की अस्थाई सदस्य ना होकर बेटी को दो परिवारों को जोड़ने वाली कड़ी माना जाना चाहिए

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  193. Putra aur putri me hum abhi bhi asamanata is bat ko swikar karate as rahe hai Jo ki sarvatha anuchit hai.padhe like aur sikshit hotel huye bhi hum purani dakiyanusi bat ko manate hai .aaj purushotam aur mahila her kshetra me kadam see Adam milakar chal rahe hai ladke aur ladakiyno me bhed karane wall ka Mai virodhi hnu.

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  194. कुछ विचाओ और प्रथाओ को बदलने की आवश्यक्ता इसलिए है क्यों कि ये लिंग भेद भाव को बढ़ावा देते है।

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